Blog

  • मां की आंचल पर कविता

    मां की आंचल पर कविता

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    मां की आंचल पर कविता

    mother their kids
    माँ पर कविता

    मां तुने अपने आंचल में सृष्टि को समेटा है,
    खुद दर्द सहके हमें जीवन दिया है,

    पलकों के झूले में मुझको झूला दे,
    लोरी सुना के तु फिर से सुला दे,

    आंचल में तेरी है सारा जहाँँ,
    वो मेरी प्यारी और न्यारी मां,

    दौलत सोहरत सब है मेरे पास,
    सिर्फ तु नहीं है मेरे पास,

    वक्त बदल रहा है कि बदल रहे हम, जाने कौन सी मजबूरी है हमारी,

    मां परीयों की कोई कहानी सुना दे,
    मां चांद पर एक छोटा सा घर बना दे,

    मां तेरी याद मुझे बहुत सताती है,
    पास आ जाओ थक गया हूं बहुत,

    मुझे अपनी आंचल में सुलाओ,
    उंगलियाँ फेर कर मेरे बालों में एक बार,
    फिर वही बचपन की लोरी सुनाओ ।।
    ✍?✍?
    *परमानंद निषाद*

  • संभव क्यों नहीं कविता-विनोद सिल्ला

    संभव क्यों नहीं कविता

    कामना है
    न हो कोई सरहद
    न हो कोई बाधा
    भाषाओं की
    विविधताओं की
    जाति-पांतियों की
    सभी दिलों में बहे
    एक-सी सरिता
    सबके कानों में गूंजे
    एक-से तराने
    सबके कदम उठें
    और करें तय
    बीच के फांसले
    यह सब
    नहीं है असंभव
    आदिकाल में था
    ऐसा ही
    फिर आज संभव
    क्यों नहीं

  • एहसास कविता

    एहसास कविता

    जब मै तुमको देखा तो
    मन मे हलचल होने लगी ।
    दिल में एक अहसास हुआ,
    लगा की मुझे प्यार होने लगा ।

    दिल धड़कने लगा जोर से,
    जब से तुमको मैने देखा है ।
    मेरे दिल को न जाने क्या हुआ
    जब से तुमको मैने देखा है ।

    नींद उड़ गई चैन खो गया
    दिल को क्या हो गया।
    मन में एक छवि दिखती
    ना जाने मुझे क्या हो गया ।

    आंखों ही आंखों प्यार हुआ है
    दिल में ये अहसास हुआ है ।
    दिल को मै कैसे समझाऊं
    दिल में तेरा जादू हुआ है ।

    मेरी आंखें लड़ी तेरे आंखों से
    पहली बार तो तुझे देखा है ।
    पहले कभी ऐसा नही हुआ है
    क्या प्यार की नजरों से तुझे देखा है ।

    तुझसे प्यार हुआ दिल धड़कने लगा
    तेरा ही अहसास हुआ है ।
    तेरे प्यार मे कैसा रंग बदला है
    मन ही मन में अहसास हुआ है ।

  • सुंदरता पर कविता

    सुंदरता पर कविता

    *प्रकृति की सुंदरता को देखकर,*
    *मेरा मन प्रसन्न हो गया,*
    *प्रकृति की गोद मे अपनी सारी जिंदगी यही कही खो गया,*
    *कभी सुखी धरा पर धूल उड़ती है,*
    *तो कभी हरियाली की चादर ओढ़ लेती है,*
    *प्रकृति की सुंदरता हो ना हो,*
    *उसमे सादगी होना चाहिए,*
    *प्रकृति मे खूशबू हो ना हो,*
    *उसमे महक होना चाहिए,*
    *प्रकृति मे हमेशा सुंदरता हो ना हो,*
    *प्रकृति की सुंदरता हमेशा,*
    *बनाये रखने की कोशिश करना चाहिए,*
    *प्रकृति हमारे जीवन के अमूल्य हिस्सा है,*
    *उसकी सुंदरता हमेशा बनाये रखो,*
    *और पेड़ लगाते जाओ।।*
    ✍?✍?
    *परमानंद निषाद*

  • हौसले पर हिंदी कविता

    हौसले पर हिंदी कविता

    हौसला हर व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण है, खासकर जब हम परिस्थितियों के खिलाफ स्थिर रहने के लिए अपना विश्वास खो देते हैं। यह हमें हार नहीं मानने की शक्ति और उत्साह प्रदान करता है, और हमें अग्रसर करने के लिए पुनः प्रेरित करता है।

    हिंदी कविता : हौसलों की उड़ान

    हौसले पर हिंदी कविता
    child climbs confidently up the ladder against the blue sky. copy space for your text


    हौसलों की उड़ान मत कर कमजोर,
    अभी पूरा आसमान बाकी है,
    परिंदों को दो खुला आसमान,
    सपनों को परिंदों सी उड़ान दो।


    यूं जमीन पर बैठकर,
    क्यूं आसमान देखता है,
    पंखों को खोल जमाना,
    सिर्फ उड़ान देखता है।
    तेरा हर ख्वाब सच हो जाए,
    रख जज्बा कुछ करने का ऐसा,
    कर भरोसा खुद पर इतना,
    कि तेरी सपनों की उड़ान नजर आए।


    सपनों की उड़ान लेकर चली,
    एक नन्ही सी जान,
    हौसले बुलंद थे उसके,
    छूना था उसे आसमान।
    सपनों की उड़ान आसान नहीं होती,
    इसके पीछे त्याग छुपा होता है,
    इसके ये सपनों की उड़ान हैं जनाब,
    यहां ऐसे ही उड़ना पड़ता है।

    हौसले की उड़ान भरकर,
    छू लूंगा मैं लक्ष्य रूपी आसमान,
    सफलता मेरे कदम चूमेगी,
    कदमों में होगा ये सारा जहां।।

    *परमानंद निषाद*

    हौसले पर हिंदी गजल

    कम भी नहीं है हौसले गिर भी पड़ी तो क्या हुआ।
    है जिन्दगी के सामने बाधा खड़ी तो क्या हुआ ।।
    चल दूँ जिधर खुद रास्ता मिलता मुझे ही जाएगा।
    टूटी अगर रिश्तों की’ इक नाजुक कड़ी तो क्या हुआ।।


    मैं ढूँढ लूँगी राह को अपना हुनर मैं जानती।
    वो साथ दे या बाँध ही दे हथकड़ी तो क्या हुआ।।
    सर पे बिठा रक्खा था मैंने बेवफा को आज तक।
    सारी हदों को तोड़कर मैं ही लड़ी तो क्या हुआ।।


    जब गीत सारे प्यार के मुरझा गये सहराहों में।
    फिर बारिशों की लग पड़ी रोती झड़ी तो क्या हुआ।
    इक भूल ने ही जिन्दगी जीना हमें सिखला दिया।
    गर वक्त की चोटें हमें खानी पड़ी तो क्या हुआ।।


    ताकत यही मैं टूटकर बिखरी नहीं हूँ आज तक।
    आराम की आई नहीं अब तक घड़ी तो क्या हुआ।।

    डॉ. सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया, असम