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  • बेटी का दर्द पर कविता

    बेटी का दर्द पर कविता

    beti mahila
    बेटी की व्यथा

    अब तो लगने लगा है मुझको,
    कोख में ही माँ मुझको कुचलो।
    बाहर का संसार है सुंदर,
    ऐसा लगता है कोख के अंदर।
    पर जब पढ़ती हो तुम खबरें,
    हत्या, बलात्कार, जेल और झगड़े।
    नन्हा सा ये तन मेरा,भर उठता है पीड़ा से।
    विदीर्ण हो उठता कलेजा मेरा,अंतर में होती है पीड़ा।

    सुनकर माँ मुझको तकलीफ,
    जब होती है कोख के अंदर।
    सोचो क्या बीती होगी ?
    हुआ बलात्कार जिसके शरीर पर,
    शरीर की तो माँ छोड़ो बात,
    आत्मा तक हो गई घायल।

    पहले ही मर चुकी है जो,

    और उसे क्यूँ मारे हैं?
    विभत्स तरीके से करके हत्या
    रूह को उसके तड़पाते हैं।
    सहन नहीं होगा माँ,

    मुझसे ऐसा वातावरण जहाँ का।

    गर लाना चाहो मुझको धरती पर
    रणचंडी तुमको बनना होगा
    शीश नहीं अब जड़ को काटो
    मर्द बना जो फिरता है,

    नामर्द बनाकर उसको पटको।

    एक पक्ष की बात नहीं माँ
    मैं दोनों पक्षों को रखती हूँ।
    आधुनिकता की आड़ में माँ
    अश्लीलता मुझको दिखती है ।

    क्या?

    पहले कोई नारी सफलता सोपान पर चढ़ी नहीं।
    क्या?

    पहले की शिक्षाएं मार्ग भटकाया करती थीं।
    क्या?

    अश्लील कपड़ों में ही माँ,

    सुंदरता झलकती है।
    भारतीय परिधानों में भी ,

    नारी विश्व सुंदरी लगती है।
    कड़वा है पर सत्य है माँ,

    आग हवा से बढ़ती है
    किसी एक की बात नहीं
    पर गेंहू के साथ में माँ,

    घुन भी अक्सर पिसता है

    ना हो गंदा यह संसार,

    इसलिए पावन संस्कार बने।
    पावन विवाह को रखे बगल में,

    ये दुष्ट पापाचार करें।
    कई ऐसी जगहें निर्धारित है इस संसार में।
    ऐसी जगहों पर जाकर,

    मन अपना क्यूँ नहीं बहलाते।
    पर विकृत मानसिकता का,

    कोई इलाज नहीं है माँ
    हाथ जोड़ कर करूँ विनती मैं,
    हे मातृ शक्ति अब जागो तुम।
    मै बेटी हूँ मेरा दर्द अब माँ पहचानो तुम।
    **********************

    वर्षा जैन “प्रखर”

    दुर्ग (छत्तीसगढ़)
  • हम तो उनके बयानों में रहे -नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    हम तो उनके बयानों में रहे

    हम जब तक रहे बंद मकानों में रहे।
    वे कहते हैं हम उनके ज़बानों में रहे।1।

    उनके लिए बस बाज़ार है ये दुनियाँ
    गिनती हमारी उनके सामानों में रहे।2।

    मुफ़लिसी हमारी तो गई नहीं मगर
    हमारी अमीरी उनके तरानों में रहे।3।

    जो बड़े जाने-पहचाने लगते हैं अब
    कभी हम भी उनके बेगानों में रहे ।4।

    उसने घास नहीं डाली ये और बात है
    कभी हम भी उनके दीवानों में रहे।5।

    पूछो मत हमारे हालात की हकीकत
    हम तो केवल उनके बयानों में रहे।6।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    9755852479

  • समय का चक्र डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’ की कविता

    समय का चक्र

    चिता की लकड़ियाँ,
    ठहाके लगा रही थीं,
    शक्तिशाली मानव को निःशब्द जला रही थीं!

    रोकती रही मैं मगर सताता रहा
    ताकत पर अपनी इतराता रहा!

    भूल जाता बचपन में तुझे

    खिलौना बन रिझाती रही,
    थक जाता जब रो-रो कर
    पलना बनकर झुलाती रही!

    बुढ़ापे में असमर्थ हुआ तो
    लाठी बनकर चलाती रही,
    जीवन के संसाधनों में तेरे
    हरदम काम आती रही!

    देख समय का चक्र कैसे चलता है
    निःसहाय हो मानव तू भी
    एक दिन जलता है!

    मेरी चेतावनी है,मुझे पलने दे,
    पुष्पित,पल्लवित होकर फलने दे!

    वृक्ष का मित्र बनकर
    जीने का अधिकार दे,
    प्यार से जीना सीख!
    मुझे भी स्नेह,दुलार दे!

    डॉ. पुष्पा सिंह’प्रेरणा’

  • बेटियां सिर्फ होती पराई हैं…?- संतोष नेमा “संतोष”

    बेटियां सिर्फ होती पराई हैं

    दिल्ली
    हैदराबाद
    औऱ
    उन्नाव..!!
    कहाँ है
    बेटियों का
    सुरक्षित
    ठाँव..??
    शहर
    दर शहर
    दरिंदगी
    बदस्तूर
    जारी है.!!
    घटनाओं की
    खिलती
    रोज नई
    एक पारी है..!!
    नेता अब
    नित नए
    बयान
    फेंकते हैं..!
    ऐसे मौकों पर भी
    राजनीतिक
    रोटियां
    सेंकते हैं..!!
    क्या यही
    परिदृश्य
    है आज का..?
    हिंदुस्तानी
    सभ्य समाज का..!!
    कहाँ गए
    कानून के
    लंबे हाथ..?
    हम क्यों
    हो गए
    इतने अनाथ..??
    क्या हो गए
    हम इतने
    कमजोर..?
    अपराधियों पर
    नहीं चलता
    अब कोई जोर..??
    कब तलक
    बेटियाँ यूँ
    जलाई
    जाएंगी..?
    शैतानों के
    हाथों यूँ
    सताई
    जाएंगी..!!
    तथाकथित
    बुद्धिजीवी
    मौन हैं..!!
    ऐसी
    घटनाओं पर
    भी रखते
    कुछ अलग
    दृष्टिकोण हैं. !!!
    “संतोष”
    क्या हमारी
    मानसिकता
    यह बन
    आई है..!
    क्या बेटियाँ
    होतीं
    सिर्फ
    पराई हैं…???
    —————–

    @संतोष नेमा “संतोष”
  • न्याय प्रक्रिया में सुधार जरूरी है-संतोष नेमा “संतोष”

    न्याय प्रक्रिया में सुधार

    हैदराबाद
    कांड पर जो
    मानवाधिकार
    वाले उन्हें
    कल तक
    अनाचारियों को
    दानव कहते थे..!
    और बड़े ही
    बेफिक्री से
    रहते थे.!!
    आज उनका
    अंजाम देख
    उनकी
    मानवता
    जागी..!
    बोले बिन
    न्यायालय में
    अपराध सिद्ध हुए
    वो कहाँ हैं दागी..?
    यह सुन एक
    महिला
    बौखलाई..!
    बोली ये
    दोगली नीति
    कहाँ से आई..?
    हम भी
    न्यायालय के
    निर्णय को
    मानते हैं.!
    पर न्याय
    कब मिलेगा
    ये भी जानते हैं..!!
    निर्भया की
    सज़ा अभी
    बाकी है..!
    पिछले
    आठ वर्षों की
    यह झांकी है..!!
    इस पीड़ा को
    आप क्या
    समझेंगे.!!
    आप सिर्फ
    सबूतों को
    ही परखेंगे..!!
    “संतोष”न्याय में
    अनावश्यक देरी भी
    एक अन्याय है. !
    यह उस परिवार
    से पूछें
    जिनका जीवन
    स्याह है.!!
    वक्त रहते
    न्याय प्रक्रिया में
    सुधार जरूरी है.!!
    न्याय का
    नया आकार
    जरूरी है..!!
    अन्यथा
    जनता का
    आक्रोश
    न जाने क्या
    रंग लाएगा..?
    और ये
    खुशनुमा
    माहौल
    बदरंग हो जाएगा.!!
    देश में गर
    सुरक्षित बेटियां
    होंगी.!!
    “संतोष”
    तभी
    अमन चैन की
    रोटियां होंगी..!!
    ———————

    @संतोष नेमा “संतोष”