जब भी सुनता हूँ नाम तेरा
तेरे आने की आहटें…
बढ़ा देती हैं धड़कनें मेरी !
मैं ठिठक-सा जाता हूँ-
जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
तेरे इश्क़ के जादूओं का असर..यूँ रहा
मेरी रूह बाहर रही,मैं ही तो अंदर रहा
ख़ुद से मिलने को अक्सर…
मैं बहक-सा जाता हूँ-
जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
मरु-थल में भी गुलों की बारिश
तेरे संग होने की रही है ख़्वाहिश
पलाश में गुलाबों का इत्र पाकर
मैं महक-सा जाता हूँ-
जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
ख़यालों की दुनिया से ज्यों चौंककर भागा
तेरी पायलों की धुन में बेसुध-मन ; नाचा
ख़ुद में, बेख़ुदी में..
मैं यूँ ही गुनगुनाता हूँ-
जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
इक भीनी-सी ख़ुशबू…दूर तलक से
ज़मीं से नहीं; है जब आती फ़लक से
अंतर्मन के उच्छवासों में फिर
मैं तुमको पा जाता हूँ-
जब भी सुनता हूँ नाम तेरा!!
© निमाई प्रधान’क्षितिज’
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद