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  • आर आर साहू के दोहे

    आर आर साहू के दोहे

    आर आर साहू के दोहे

    कहाँ ढूँढता बावरे,तू ईश्वर को रोज।
    करनी पहले चाहिए,तुमको अपनी   खोज।।

    शब्द मात्र संकेत हैं,समझ,सत्य की ओर।
    सूर्य- चित्र से कब कहाँ,देखा होता भोर।।

    बस प्रतीक को मानकर,हुई साधना बंद।
    माया से मिलता रहा,सपने का आनंद।।

    किसका दर्शन,किसलिए,चला भीड़ के संग।
    चाह-राह बेमेल है,ये कैसा है ढंग।।

    मंदिर में घंटी बजे,मन के छिड़े न तार।
    नाद ब्रह्म कैसे जगे,सोया हो जब प्यार ।।

    प्रेम-भक्ति का भी जहाँ,लगता हो बाजार ।
    माता का लगता नहीं,वहाँ कभी दरबार ।।

    मन में हो सद्भावना,जले प्रेम की जोत।
    अखिल- सृष्टि दरबार में,माँ का दर्शन होत।।
    ——– R.R.Sahu
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • अमित की कुण्डलियाँ

    अमित की कुण्डलियाँ

    माता भव भयहारिणी, करिये हिय भयहीन।*
    जगजननी जगदंबिका, जीवन कृपा अधीन।
    जीवन कृपा अधीन, मातु सुत तुम्हीं सम्हारो।
    विनती बारंबार, व्यथा से हमें उबारो।
    कहे ‘अमित’ कविराज, आप ही सुख-दुख दाता।
    सुनिये करुण पुकार, आज ओ मेरी माता।

    भव्य भवानी भाविनी, भवपाली हैं आप।
    संकट विकट उबारिए, हरिए मन अभिताप।
    हरिए मन अभिताप, अगोचर अज अविनाशी।
    दें वैभव वरदान, सिद्धि दात्री अमृताशी।
    कहे ‘अमित’ कविराज, जयति जय मातु शिवानी।
    विनती बारंबार, भक्त की भव्य भवानी।

    आदि अनंता मातु श्री, आप जगत आधार।
    आदरणीया आदिता, मानें जग आभार।
    मानें जग आभार, जीव की माँ आकारी।
    मिले स्नेह आशीष, बनें हम सत आचारी।
    कहे ‘अमित’ कविराज, शक्ति ही विश्व नियंता।
    *आदर सहित प्रणाम, हृदय से आदि अनंता।

    कन्हैया साहू ‘अमित’
    शिक्षक-भाटापारा छत्तीसगढ़

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  • माँ दुर्गा पिरामिड कविता

    माँ दुर्गा पिरामिड कविता

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं।शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    माँ दुर्गा पिरामिड कविता

    माँ!
    रूपा
    मोहिनी
    वर दात्री
    अरि मर्दनी
    संकट हरणी
    जय जगजननी ।
    माँ
    नेह
    उदधि
    आल्हादिनी
    सर्वव्यापिनी
    मंगल करणी
    सर्व  दुख हरणी ।
    माँ
    सृष्टा
    ब्रम्हाण्ड
    अतुलित
    त्रिगुण मयी
    मारण कारण
    हे काली कपालिनी।
    माँ!
    ज्योति
    स्वरूपा
    जगमग
    चिर उजास
    परम प्रकाश
    हे उर्जा स्त्रोतस्वनी।
    माँ
    बूँद
    विराट
    कण कण
    धरा गगन
    उदरपोषिणी
    नमन अन्नपूर्णे।
    माँ!
    दुर्गा
    कालिके
    शिव शक्ति
    मधुर स्मिता
    हे सिंह वाहिनी
    अस्त्र शस्त्र धारिणी।
    माँ!
    नित्या
    चंचला
    सदा सौम्या
    हिय वासिनी
    सर्व शान्ति रम्या
    हे शुभे शुभंकरी।
    माँ !
    श्रद्धा
    विश्वास
    नेह प्यास
    परम आस
    काया माया छाया
    बसती हर साँस।
    माँ !
    धारा
    ममता
    उज्जवल
    पावन नेहा
    सरल सरिता
    भरे जीवन प्राण ।
    माँ!
    सदा
    सरला
    क्षमा दात्री
    जीवन दायी
    पथ प्रदर्शक
    नौ दिन नवरात्रि ।
    सुधा शर्मा
    राजिम छत्तीसगढ़

  • चंद्रघंटा माता पर कविता

    दुर्गा या आदिशक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी मानी जाती हैं जिन्हें माता, देवीशक्ति, आध्या शक्ति, भगवती, माता रानी, जगत जननी जग्दम्बा, परमेश्वरी, परम सनातनी देवी आदि नामों से भी जाना जाता हैं शाक्त सम्प्रदाय की वह मुख्य देवी हैं। दुर्गा को आदि शक्ति, परम भगवती परब्रह्म बताया गया है।

    durgamata

    चंद्रघंटा माता पर कविता


           चंद्रघंटा देवी माता
           सौम्य शांत रूप भाता
                   अलौकिक स्वरूप है
                         श्रद्धा से मनाइए।।
               
    सिंह की सवारी करे
           हाथों में शस्त्रास्त्र धारे
                   सिर अर्द्धचंद्र घंट
                       स्वरूप निहारिये।।
                 
    स्वर्णिम रूप है प्यारा
         सारी दुनिया से न्यारा
                वरदान देती है माँ
                    ज्योत को जलाइए।।
                 
    भक्तों को निर्भय करे
           दुष्टो का संहार करे
                करे माँ दुखभंजन
                    भक्ति अपनाइए।।
                 
    दस हाथ शस्त्र धारे
          असुरों को सदा मारे
                रूप अनोखा जिनका
                      माता को मनाइए।।
                 
    ज्योत जले जगमग
           माता मिले पगपग
                 मिलकर करे पूजा
                       मन को लगाइये।।
                 
    मात चंद्रघंटा मिले
         जीवन खुशी से चले
               नवदुर्गा का रूप है
                     श्रद्धा को जगाइए।।
                   
    शिवशंकर भामिनी
          भुक्ति व मुक्तिदायिनी
                  देती अभयदान जो
                        साधना से पाइए।।

    ©डॉ एन के सेठी
            बाँदीकुई (दौसा)राज
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • सुनो राधिके- डा.नीलम

    सुनो राधिके


    सुनो राधिके
    हर बार तुम्ही 
    प्रश्न चिह्न बनी
    सम्मुख मेरे खडी़ रहीं
    हर बार ही मैंने
    तुमको हल करने का
    प्रयत्न किया
    पर…….
    राधिके तूने कब कब
    मुझको समझा
    जब भी मैने रास किया
    हर गोपी में
    तुझको ही देखा
    बांसुरी की हर साँस में
    तेरी ही धड़कन जानी
    कालिंदी की
    अल्हड़ लहरे
    मुझको तेरी अंगडा़ई लगे
    कदंब तने से
    जब जब लिपटा
    तुझसे ही लिपटा जैसे
    हर पात पात में
    तुझको देखा
    हर स्वास में तेरी
    आस रही
    तुमको मुझसे है शिकायत
    मैं क्यूं कंचन धाम गया
    क्या मुझमें रह कर भी
    इतना-सा ना जान 
    सकी प्रिये!
    थे जन्मदाता मेरे
    मिलने को आतुर वहाँ
    दुःख कितने झेले होंगे
    सुनो ना राधिके
    वक्त ने पुकारा था मुझे
    तभी तो
    राह मथुरा की गही
    करवट ले रही थीं
    परिस्थितियाँ
    और मुझे था
    अहम् किरदार निभाना
    अन्याय खडा़ था
    सर उठाए
    न्याय अंधों के पगतल में था
    फिर राधिके
    तुम तो नारी हो
    नारी की पीडा़ नहीं समझती
    सखी मेरी थी
    पीडा़ भुगत रही
    बेचारी पुत्रों संग थी
    वन वन भटक रही
    फिर …….
    द्रुपदा का अपमान
    कैसे तुम ना समझ सकीं
    भेजा था उद्धव को मैने
    दुःख हरने को
    पर……..
    तुमने तो उसका भी ना
    कहा माना
    भेज दिये 
    अनवरत अपने 
    बहते आँसू
    और फिर सवाल
    बन अनसुलझी
    सम्मुख मेरे
    आन खडी़ हो गयीं।

          डा.नीलम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद