तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है
तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है
समझो इस जीवन को ये तो बहती धारा है।
प्यार इजहार के लिए वक्त यूँ जाया न कर
वक्त के साथ ये तो डूबता किनारा है।।
ये जो रंगीन लम्हे लेके जी रहे हो तुम
ये तो क्षण भर की खुशी मौसम-ए-बहारा है।।
जिन्दगी अनमोल तेरी ना लगा दाँव इसे।
लोग कहीं ये न कहे तू बहुत आवारा है।।
जा निकल जा रोक ले गीरते दरख्त को ।
बूढ़े माँ बाप तेरे बिन घर में बेसहारा हैं ।।
तू गुलिस्ताँ है चमन का तू एक सितारा है।
तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है।।
बाँके बिहारी बरबीगहीया
राज्य -बिहार बरबीघा( पुनेसरा)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद