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  • तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है -बाँके बिहारी बरबीगहीया

    तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है

    तू सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है 
    समझो इस जीवन को ये तो बहती धारा है।

    प्यार इजहार के लिए वक्त यूँ जाया न कर 
    वक्त के साथ ये तो डूबता किनारा है।।

    ये जो रंगीन लम्हे लेके जी रहे हो तुम
    ये तो क्षण भर की खुशी मौसम-ए-बहारा है।।

    जिन्दगी अनमोल तेरी ना लगा दाँव इसे।
    लोग कहीं ये न कहे तू बहुत आवारा है।।

    जा निकल जा रोक ले गीरते दरख्त को ।
    बूढ़े माँ बाप तेरे बिन घर में बेसहारा हैं ।।

    तू गुलिस्ताँ है चमन का तू एक सितारा है।
    तू  सम्भल जा अब भी वक्त ये तुम्हारा है।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया
    राज्य -बिहार बरबीघा( पुनेसरा)

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • रास नहीं क्यों आता है-राजकिशोर धिरही

    रास नहीं क्यों आता है

    शौचालय का अभियान चला,वंचित घर रह जाता है।
    बाहर जाते बच्चे उनके,रास नहीं क्यों आता है

    जाति भेद को करते रहते,जलते रहते बढ़ने से
    टाँग अड़ाते फिरते रहते,रोका करते पढ़ने से

    चाँद पर जा रही है दुनिया,बैरी के मन काले हैं
    खुले में शौच करने से ही,हत्या कर डाले हैं

    रंजिश रखते हैं वो दुश्मन,शौचालय कैसे होवे
    जान गई है जिन बच्चों की,पालक उनके ही रोवे

    सदियों से ही सुनते रहते,छुआ वाली कहानी को
    पी नहीं पाते वो नागरिक,हैण्डपम्प के पानी को

    शर्म नहीं है उन लोगो को,वीडियो बना डाले हैं
    कैसे कैसे हैं आरोपी,दिल में नफरत पाले हैं

    मध्यप्रदेश की भावखेड़ी,जात पात को पाते हैं
    मारे जाते भारत में,हम सब एक बताते हैं

    सख्त से सख्त सजा मिले अब,हत्या करने वालो को
    पता चले कानून बना है,छुआछूत के ख्यालों को

    राजकिशोर धिरही
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्य

  • आसाम प्रदेश पर आधारित दोहे-सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”

    आसाम प्रदेश पर आधारित दोहे

    ब्रह्मपुत्र की गोद में,बसा हुआ आसाम।

    प्रथम किरण रवि की पड़े,वो कामाख्या धाम।। 

    हरे-हरे बागान से,उन्नति करे प्रदेश।

    खिला प्रकृति सौंदर्य से,आसामी परिवेश।।

    धरती शंकरदेव की,लाचित का ये देश।

    कनकलता की वीरता,ऐसा असम प्रदेश।।

    ऐरी मूंगा पाट का,होता है उद्योग।

    सबसे उत्तम चाय का,बना हुआ संयोग।।

    हरित घने बागान में,कोमल-कोमल हाथ।

    तोड़ रहीं नवयौवना,मिलकर पत्ते साथ।।

    हिमा दास ने रच दिया,एक नया इतिहास।

    विश्व विजयिता धाविका,बनी हिन्द की आस।।

    सुचिता अग्रवाल “सुचिसंदीप”
    तिनसुकिया, आसाम
    [email protected]

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • प्रीत के रंग में-राजेश पाण्डेय *अब्र*

    प्रीत के रंग में

    गुनगुनाती हैं हवाएँ
    महमहाती हैं फ़िजाएँ
    झूम उठता है गगन फिर
    खुश हुई हैं हर दिशाएँ
                      प्रीत के रंग में
                      मीत के संग में,

    रुत बदलती है यहाँ फिर
    फूल खिल उठते अचानक
    गीत बसते हैं लबों पर
    मीत मिल जाते अचानक,

    रंग देती है हिना जब
    मन भ्रमर बनता कहीं पर
    गंध साँसों की बिखरती 
    सौ उमंगें हैं वहीं पर,

    हर बरस लगता है मेला
    लोग मिल जाते कहीं पर
    हाथ आए चाँद फिर तब
    ख्वाब पूरे हों वहीं पर
                       प्रीत के रंग में
                       मीत के संग में।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर
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  • क्या होती है निराशा – धनेश्वर पटेल

    क्या होती है निराशा

    लेती जो छीन जीने की आशा
    पेंचीदा है ,इसकी परिभाषा
    सवालों से घिरे बयां करते चेहरे,
    बता रहे क्या होती है निराशा।।

        खो गई मुस्कान कहीं दूर
        किस्मत में नहीं, वो भी मंजूर
        आंखो में छाई, काली घटा
        आंसू भी बरसने को मजबूर।।

    टूटे सपनों को फिर जोड़ना चाहूं
    जो साथ छोड़े,उन्हें छोड़ना चाहूं
    हवाएं भी अपना रुख बदल रही
    उन्हें भी अपनी तरफ मोड़ना चाहूं।।

         खुद ही सम्हल जाऊ या खुद को हताश कर दूं
         गिर कर उठ जाऊं या खुद का विनाश कर दूं
         रूठी- सी जिंदगी में अब बचा ही क्या है?
        आए जो निराशा दर पर मेरे,उसे भी निराश कर दूं।।

      धनेश्वर पटेल

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