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  • हाँ ये मेरा आँचल-वर्षा जैन “प्रखर

    हाँ ये मेरा आँचल

    आँचल, हाँ ये मेरा आँचल
    जब ये घूंघट बन जाता सिर पर
    आदर और सम्मान बड़ों का
    घर की मर्यादा बन जाता है

    जब साजन खींचें आँचल मेरा
    प्यार, मनुहार और रिश्तों में
    यही सरलता लाता है
    प्यार से जब शर्माती हूँ मैं
    ये मेरा गहना बन जाता है

    मेरा बच्चा जब लड़ियाये
    आँचल से मेरे उलझा जाए
    ममता का सुख देकर आँचल
    हठ योग की परिभाषा बन जाता है

    आँचल में समाती हूँ जब शिशु को
    ये उसका पोषक बन जाता है
    ले कर सारी बलाएँ उसकी
    आँचल ही कवच बन जाता है

    यौवन की दहलीज़ में आँचल
    लज्जा  वस्त्र कहलाता है 
    ढलता आँचल एक पत्नी का
    समर्पण भाव दिखाता है

    क्या  क्या उपमा दूँ मैं इसकी
    बहू बेटी माँ पत्नी बहना
    आँचल हर रूप सजाता है
    आँचल हर रूप सजाता है ।


    वर्षा जैन “प्रखर”
    दुर्ग (छ.ग.)
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • बेटी हूँ आपकी-भागवत प्रसाद साहू

    बेटी हूँ आपकी

    कोख मे पल रही , शीघ्र जग में आऊ।

    नन्ही सी परी बन,जन जन को बतलाऊ।

    हूं बेटी मैं आपकी,दूध का कर्ज चुकाऊ।
    एक नही दो-दो कुल की,लाज बचाऊ।
    बेटी हूं आपकी……………….।

    पंख नही फिर भी,आसमान उड़ जाऊ।

    मंगल पर रख कदम,दुनिया को हसाऊ।।

    बेटा नही बेटी हु इस धरा की,आवाज दे चिल्लाऊ।
    तू कहे ना कहे,भारत की शान बढ़ाऊ।
    बेटी हूं आपकी………………..।

    खेल में अग्रज रह, देश को पदक दिलाऊ।

    प्रकृति से जुड़,बेटी की महत्ता बतलाऊ।

    बेटी होती है घर आंगन की शान,सबको समझाऊ।
    बेटी है तो कल है जन जन को बतलाऊ ।
    बेटी हूं आपकी……………….।

    भागवत प्रसाद साहू भटगांव वि.ख.बिलाईगढ़   

    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • गाय गरुवा के हड़ताल

    गाय गरुवा के हड़ताल

    गाय गरुवा के हड़ताल

    हमरो बनय राशन कारड चारा मिलय सरकारी ।
    सब्बो योजना ल छोड़ भर पेट मिलय थारी।
    जब तक पूरा न होवय गरुवा घुरुवा अउ बारी ।
    गाय गरुवा के हड़ताल रही जारी…….।

    छत्तीसगढ़ के चारो कोती हामर हावय चिन्हारी ।
    चाहे नेता चाहे बाबा चाहे ओ रास बिहारी।
    लोटा लोटा गोरस पियय चारा के नइये पुछारी ।
    गाय गरुवा के हड़ताल रही जारी …….।

    कोनो बइठे मांझा डहर कोनो दुकान के दुवारी।
    कतको ठोकाये गाड़ी घोड़ा अउ चिल्लाये नरनारी।
    हमरो अर्जी पहुंचादव भैया सरकार के दरबारी।
    गाय गरुवा के हड़ताल रही जारी …….।

    पान चबावत फुरसत बइठे भटगांव रोड दुवारी।
    हाथ जोड़ भागवत कहे अब उठ जा गऊ महतारी।
    गाय कहे जब तक न बनय गाय आवास सरकारी ।
    गाय गरुवा के हड़ताल रही जारी …….।

    भागवत प्रसाद साहू भटगांव वि.ख.-बिलाईगढ़

  • भारत माता रोती है -हृषिकेश प्रधान “ऋषि”

             भारत माता रोती है

    जब-जब सीमा पर अपना,वीर सपूत खोती है ।
    तब भारत माता रोती है,तब भारत माता रोती है ।।

    सीने से लगाकर मां जिसको दूध पिलाती ।
    गोद में बिठाकर मां जिसको रोटी खिलाती ।
    छाती में लिटाकर  मां जिसको लोरी सुनाती। 
    बाहों में झूलाकर  मां जिसको रोज सुलाती ।
    जब कोई मांअपने लाल का,पुण्यतिथि मनाती है ।।
    तब भारत माता रोती है………..

    दो भाई आपस में जब रक्त की धार बहाते ।
    कुछ पाने की चाह में सब कुछ छोड़ जाते । 
    चंद – कौड़ियों के खातिर ईमान बेच जाते ।
    छीन कर निवाला औरों का अपना पेट भर जाते।
    ऐसे स्वार्थी कपूतों से,मां को घुटन सी होती है ।।
    तब भारत माता रोती है…………

    जब किसी निर्दोष को सरेआम पीटा जाता ।
    जब किसी शूरवीर का सबूत मांगा जाता।।
    अपने स्वार्थ साधने को भूमि को जिसने बांटा ।
    अपना घर भरने को, वनों को जिस ने काटा ।
    ऐसे अपराधी बेटों से,मां भी  शर्मिंदा होती है ।।
    तब भारत माता रोती है…………

    जब मां की छाती पर बारूद फोड़ा जाता ।
    जब मां की बेटी का आबरू लूटा जाता ।
    जब मां के संतानों का खून बहाया जाता।
    जब मां के आंचल को लोहे से छेदा जाता ।
    असह्य पीड़ा सहकर भी,मर-मर कर जब जीती है ।।
    तब भारत माता रोती है…………

      हृषिकेश प्रधान “ऋषि”
      ग्राम – लिंजीर
      तहसील – पुसौर
      जिला – रायगढ़  (छत्तीसगढ़ )
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • स्वरोजगार तुमको ढूंढना हैं/डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”

    “डीजेन्द्र कुर्रे की कविता ‘स्वरोजगार तुमको ढूंढना है’ में स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी गई है। यह कविता युवाओं को स्वरोजगार के महत्व को समझाते हुए उन्हें प्रेरित करती है कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए खुद को ढूंढें और अपने पैरों पर खड़े हों।”

    सारांश:

    “स्वरोजगार तुमको ढूंढना है” एक प्रेरणादायक कविता है, जिसमें डीजेन्द्र कुर्रे ने आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन की आवश्यकता को उजागर किया है। कविता में युवाओं को रोजगार के लिए अपने अंदर की क्षमताओं को पहचानने और अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया है। यह रचना आज के युग में स्वरोजगार की ओर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को स्पष्ट करती है।

    स्वरोजगार तुमको ढूंढना हैं

    ऐसी रोजगार नही चाहिए,
    जिसमें राजनीति की बू आती है।
    घूसखोर जिसमें पैसा लेते हैं,
    और डिग्रीयां देखी नहीं जाती हैं।

    पैसों की शान शौकत से वह, 
    रोजगार तो हासिल कर लेते हैं ।
    समाज में दिशा नहीं दे पाते वह,
    समाज में बदनाम हो जाते हैं ।

    गरीब घर का हैं वह बालक ,
    पढ़ाई में सबसे आगे रहते हैं ।
    नौकरी में पैसा ना दे पाने पर,
    नौकरी से वंचित रह जाते है।

    देश की अर्थव्यवस्था कह रही ,
    यह बात बिल्कुल सच्ची है ।
    बेरोजगारों की हालत से बढ़िया,
    भिखारियों की हालत अच्छी है।

    फिर भी पढ़ना मत छोड़ना,
    कर्म पर विश्वास तुमको करना हैं।
    सरकारी नौकरी न मिले तो क्या?
    स्वरोजगार तुमको ढूंढ़ना हैं।

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    रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसनाजिला महासमुंद (छ.ग.)मो. 8120587822
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद