हाँ ये मेरा आँचल
आँचल, हाँ ये मेरा आँचल
जब ये घूंघट बन जाता सिर पर
आदर और सम्मान बड़ों का
घर की मर्यादा बन जाता है
जब साजन खींचें आँचल मेरा
प्यार, मनुहार और रिश्तों में
यही सरलता लाता है
प्यार से जब शर्माती हूँ मैं
ये मेरा गहना बन जाता है
मेरा बच्चा जब लड़ियाये
आँचल से मेरे उलझा जाए
ममता का सुख देकर आँचल
हठ योग की परिभाषा बन जाता है
आँचल में समाती हूँ जब शिशु को
ये उसका पोषक बन जाता है
ले कर सारी बलाएँ उसकी
आँचल ही कवच बन जाता है
यौवन की दहलीज़ में आँचल
लज्जा वस्त्र कहलाता है
ढलता आँचल एक पत्नी का
समर्पण भाव दिखाता है
क्या क्या उपमा दूँ मैं इसकी
बहू बेटी माँ पत्नी बहना
आँचल हर रूप सजाता है
आँचल हर रूप सजाता है ।
वर्षा जैन “प्रखर”
दुर्ग (छ.ग.)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद