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  • सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली कैसे लिखें (How to write SAYLI)

    सायली रचना विधान : सायली कैसे लिखें

    हाइकु
    hindi sahityik class || हिंदी साहित्यिक कक्षा
    • सायली एक पाँच पंक्तियों और नौ शब्दों वाली कविता है |
    • मराठी कवि विशाल इंगळे ने इस विधा को विकसित किया हैं बहुत ही कम वक्त में यह विधा मराठी काव्यजगत में लोकप्रिय हुई और कई अन्य कवियों ने भी इस तरह कि रचनायें रची  ।
    •  पहली पंक्ती में एक शब्द
    •  दुसरी पंक्ती में दो शब्द
    • तीसरी पंक्ती में तीन शब्द
    • चौथी पंक्ती में दो शब्द
    •  पाँचवी पंक्ती में एक शब्द और
    • कविता आशययुक्त हो |
    • इस तरह से सिर्फ नौ शब्दों में रचित पूर्ण कविता को सायली कहा जाता हैं |
    • यह शब्द आधारित होने के कारण अपनी तरह कि एकमेव और अनोखी विधा है |
    • हिंदी में इस तरह कि रचनायें सर्वप्रथम शिरीष देशमुख की कविताओं में नजर आती हैं |

    उदाहरण*=

    इश्क

    मिटा गया

    बनी बनायी हस्ती

    बिखर गया

    आशियाँ..

    *© शिरीष देशमुख*

    तुझे

    याद नहीं

    मैं वहीं बिखरा

    छोडा जहां

    तुने.. 

    © शिरीष देशमुख

    • सायली विधा में आप देखेगें कि हाइकु की भांती हर लाइन अपने आप में सम्पुर्ण है | 
    • बातचीत अथवा दुसरी विधा की कविताओं मे जैसे लाइन होती है उस तरह से वाक्य को तोड़ कर लाइन बना देने से ही सायली नहीं होती |  
  • सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)

    literature in hindi
    literature in hindi

    सेदोका रचना विधान
    सेदोका 05/07/07 – 05/07/07 वर्णक्रम की षट्पदी – छः चरणीय एक प्राचीन जापानी काव्य विधा है । इसमें कुल 38 वर्ण होते हैं , व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है । इस काव्य के कथ्य कवि की संवेदना से जुड़ कर भाव प्रवलता के साथ प्रस्तुत होने वाली यह एक प्रसिद्ध काव्य विधा है, जिसके आगमन से हिन्दी काव्य साहित्य की श्रीवृद्धि हुई है । उदाहरण स्वरूप मेरी एक सेदोका रचना यहाँ प्रस्तुत है, अवश्य देखें ——-

    मरु प्रदेश
    मेघों का आगमन
    है, जीवन संदेश
    सूखे तरु का
    तन मन हर्षित
    अलौकिक ये वेश ।

    टीप : वर्णक्रम – 05,07,07 – 05,07,07 । निर्दिष्ट भाव से आश्रित प्रत्येक पंक्तियाँ “हाइकु” की तरह स्वतंत्र होना इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है । दो कतौते से एक सेदोका पूर्ण होता है । आपके श्रेष्ठ सेदोका कविता बहार पर आमंत्रित हैं ।

    और पढ़ें : मनीभाई नवरत्न के सेदोका

    प्रदीप कुमार दाश दीपक के सेदोका

    01)
    कोमल फूल 
    सह जाते हैं सब
    व्यक्तित्व अनुकूल 
    वरना कभी 
    मसल कर देखो
    लहू निकालें शूल ।

    02)
    कंटक पथ
    सफर पथरीला
    साथी संग जीवन 
    कर लो साझा 
    होगा लक्ष्य आसान
    मिलेगी सफलता ।

    03)
    मरु प्रदेश 
    मेघों का आगमन
    है, जीवन संदेश 
    सूखे तरु का
    तन मन हर्षित 
    अलौकिक ये वेश ।

    04)
    बस गईं वे  —-
    खयालों में जब से 
    भले वो साथ नहीं 
    पर हम तो
    उनके साथ रहे
    कभी अकेले नहीं ।

    05)
    यादों के साये
    हवा के संग संग
    मानो खुशबू हैं ये
    भीतर आते
    बंद कर लो चाहे 
    खिड़की दरवाजे ।

    06)
    क्रय-विक्रय
    जीवन के सफर 
    कुछ नहीं हासिल 
    केवल व्यय 
    जिम्मेदारी के हाट
    गिरवी पड़े ठाठ ।

    07)
    बड़े अजीब
    खण्डहर निर्जीव
    देखने आते लोग
    चले जाते हैं 
    यही अकेलापन
    है उसका नसीब ।

    {08}

    पेड़ों का दुःख 
    कुल्हाड़ी की आवाज 
    सुन कर मनुष्य 
    रहता चुप
    धूप से तड़पती
    बूढ़ी पृथ्वी है मूक ।

        ~~●~~

        {09}

    मौसमी मार
    पेड़ हुए निर्वस्त्र 
    पत्तियाँ समा गईं 
    काल के गाल
    फूटो नई कोंपलें 
    क्यों करो इंतजार ?

       ~~●~~

    □ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”

    पद्ममुख पंडा स्वार्थी के सेदोका

    प्रचण्ड गर्मी
    सहता गिरिराज
    पहन हिमताज
    रक्षक वह
    है हमारे देश का
    हमको तो है नाज़

    वृक्षारोपण
    एक अभिवादन
    जो बना देता  वन
    पर्यावरण 
    सुरक्षित रखने
    खुश हो जाता मन

    नाप सकते
    मन की गहराई
    काश संभव होता
    समुद्र में भी
    हो फसल उगाई
    ग़रीबी की विदाई
     

    सत्यवादी जो
    परेशान रहता
    अग्नि परीक्षा देता
    पूरी दुनिया
    उसे हंसी उड़ाती
    वो चूं नहीं करता

    अंधा आदमी
    मन्दिर चला जाता
    खुद को समझाता
    उसे देखने
    जो दिखता ही नहीं
    आंखों के होते हुए

    उसके घर
    देर भी है सर्वदा
    अंधेर भी है सदा
    न्याय से परे
    मिलता परिणाम
    खास हो या कि आम

    जो करते हैं
    अथक परिश्रम
    क्या थकते नहीं हैं?
    सच तो यह
    कि बिना थके कभी
    काम ही नहीं होता!!

    अनवरत
    जीवन  रथ चले
    सुबह सांझ ढले
    मज़ाक नहीं
    कि परिवार पले
    बिना आह निकले

    मेरी कुटिया
    मुझे आराम देती
    मेरी खबर लेती
    बिजली नहीं
    तो भी प्रकाश देती
    ठंडक बरसाती

    सत्यवादी जो
    परेशान रहता
    अग्नि परीक्षा देता
    पूरी दुनिया
    उसे हंसी उड़ाती
    वो चूं नहीं करता

    अंधा आदमी
    मन्दिर चला जाता
    खुद को समझाता
    उसे देखने
    जो दिखता ही नहीं
    आंखों के होते हुए

    उसके घर
    देर भी है सर्वदा
    अंधेर भी है सदा
    न्याय से परे
    मिलता परिणाम
    खास हो या कि आम

    जो करते हैं
    अथक परिश्रम
    क्या थकते नहीं हैं?
    सच तो यह
    कि बिना थके कभी
    काम ही नहीं होता!!

    अनवरत
    जीवन  रथ चले
    सुबह सांझ ढले
    मज़ाक नहीं
    कि परिवार पले
    बिना आह निकले

    मेरी कुटिया
    मुझे आराम देती
    मेरी खबर लेती
    बिजली नहीं
    तो भी प्रकाश देती
    ठंडक बरसाती

    पद्म मुख पंडा स्वार्थी

    धनेश्वरी देवांगन धरा के सेदोका

    खिले कलियाँ
      नहा शबनम‌ में
      फूलों के मौसम में
      अलि  बहके
      बसंती बयार है
      अनोखा त्यौहार है
      **
      कली मुस्काये
      कैसी है आवारगी?
      छायी है दीवानगी
      दिल दहके
      उमंग अपार है
      प्यारा -सा संसार है
      **
      समा है हसीं
      मौसम है फूलों का 
      आनंद है झूलों का
      गुल महके 
      बागों में बहार है
      सोलह श्रृंगार है
      **
      शाम‌ मस्तानी‌

    रूत है जवां- जवां 
      गुल करे है  बयां
      पिक चहके
      कली में निखार है
      फिज़ा में खुमार है

    धनेश्वरी देवांगन ” धरा”

    क्रांति की सेदोका रचना

    जमाना झूठा
    बना साधु इंसान
    बेच रहा ईमान
    पैसों के लिए
    बन रहा हैवान
    होता  है बदनाम।।

    घिसे किस्मत
    चप्पल की तरह
    बदलता इंसान
    क्षण भर में
    बन जाता हैवान
    पैसों के लालच में।।

    मां की मूरत
    लगे खूबसूरत
    चंद्रमा की तरह
    रौशन करें
    बच्चों के जीवन से
    छंटता अंधियारा।।

    बने अमीर
    बेचकर जमीर
    कमाता है रुपया
    आज इंसान
    चैन के तलाश में
    खो बैठा है खुशियां।।

    बगैर वस्त्र
    सड़क के किनारे
    ठिठुर रहा बच्चा
    कठिन घड़ी
    कोई न देता साथ
    जरूरत के वक्त।।

    सड़क पर
    पेपरों से लिपटा
    अबोध बच्चा मिला
    सूरत प्यारा
    किस्मत का है मारा
    है कोई बेसहारा।।

    होते सबेरे
    खगों का कलरव
    लगता बड़ा न्यारा
    नन्हा परिंदा
    भर रहा उड़ान
    गगन की तरफ।।

    क्रान्ति, सीतापुर, सरगुजा छग

    सायली कैसे लिखें ( How to write SAYLI )

  • महंगाई -विनोद सिल्ला

     महंगाई

    महंगी  दालें  क्यों  रोज  रुलाती।
    सब्जी  दूर  खड़ी  मुंह  चढाती।।

    अब सलाद अय्याशी कहलाता है,
    महंगाई  में  टमाटर  नहीं भाता है,
    मिर्ची  बिन   खाए  मुंह  जलाती।।

    मिट्ठे फल ख्वाबों में  ही  आते  हैं,
    आमजन इन्हें नहीं खरीद पाते हैं,
    खरीदें  तो  नानी  याद  है आती।।

    कङवे करेलों के सब दर्शन करलो,
    आम अनार के फोटो सामने धरलो,
    सुनके  कीमत, भूख भाग जाती।।

    कैसे   होए   गरीबों   का  गुजारा,
    पेट  पर   पट्टी  बांधना  ही  चारा,
    पतीली  चुल्हे  पर  न  चढ पाती।।

    सिल्ला’ से मिर्च मसाले विनोद करें,
    एक आध दिन नहीं, रोज रोज करें,
    खरददारी      औकात     बताती।।

    विनोद सिल्ला, हरियाणा,

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    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • चन्द्रयान 2 पर कविता -डी.राज सेठिया

    चन्द्रयान 2 पर कविता

    काबिलियत है,पर मार्ग कठिन बहुत है।
    हासिल कुछ नही ,पर पाया बहुत है।

    हाँ नींद भी बेची थी,पर सकून बहुत पाया था।
    हाँ चैन भी बेची थी,पर गर्व बहुत पाया था।।

    दुआएं थी सवा सौ करोड़ लोगों की,वह क्या कम था।

    इसरो मैं भी भावुक हुँ,क्योंकि मैंने भी दुआ मांगा था।।

    जीवन के पथपर अल्पविराम तो आते हैं,पर पूर्ण विराम नहीँ।
    अंतरिक्ष के पटल पर नाम जरूर होगा,यह कोई संसय नहीँ।।

    प्रयास जरूर रंग लाएगी,तू हिम्मत मत हार।
    विक्रम रुका है इसरो नहीं,तू हौसला मत हार।

    डी.राज सेठिया
    कोंडागांव(छ.ग.)
    8770278506
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • विघ्न हरो गणराज-सुधा शर्मा

    विघ्न हरो गणराज

    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi
    भाद्रपद शुक्ल श्रीगणेश चतुर्थी Bhadrapad Shukla Shriganesh Chaturthi

    हे गौरी नंदन हे गणपति,प्रथम पूज्य  महराज।

    कृपा करो हे नाथ हमारे,विघ्न हरें गण राज।।

    घना तिमिर है छाया जग में, भटक रहा इंसान।  

    भूल गया जीवन मूल्यों को ,बना हुआ शैतान।।

     हे दुख भँजन आनंददाता,करिए  पूरी आस।

    रोग दोष सकल दूर करके,हरिए क्लेशविषाद ।।

    प्रथम पूजनीय हो प्रभू जी,पूजे सब संसार। 

    शुद्धि बुद्धि करिए गणराजा,हरिए सभी विकार।।

    दर्प दलन किया था आपने,देकर चंद्रदेव को शाप।

    कला हीन होकर तब भगवन,मिला विकट  संताप।

    काम क्रोध मद लोभ डूबकर,भूले जो सदचाह।

    पथ प्रदर्शक बनें बुद्धि प्रवर,दो विवेक की राह।।

    विनती इतनी है  गणनायक,हो शान्ति परिवेश। 

    मानवता सदभावना खिले,सदा सुखी हो देश।।

     सुधा शर्मा राजिम छत्तीसगढ़