विघ्न-नाश अरु सुमुख ये, जपे नाम जो द्वादश। रिद्धि सिद्धि शुभ लाभ से, पाये नर मंगल यश।।
ग्रन्थ महाभारत लिखे, व्यास सहायक बन कर। वरद हस्त ही नित रहे, अपने प्रिय भक्तन पर।।
मात पिता की भक्ति में, सर्वश्रेष्ठ गण-राजा।
‘बासुदेव’ विनती करे, सफल करो सब काजा।।
मुक्तामणि छंद
विधान:-
दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के। ‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
मुक्तामणि चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके विषम पद 13 मात्रा के ठीक दोहे वाले विधान के होते हैं तथा सम पद 12 मात्रा के होते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चरण कुल 25 मात्रा का 13 और 12 मात्रा के दो पदों से बना होता है। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। मात्रा बाँट: विषम पद- 8+3 (ताल)+2 कुल 13 मात्रा, सम पद- 8+2+2 कुल 12 मात्रा। अठकल की जगह दो चौकल हो सकते हैं। द्विकल के दोनों रूप (1 1 या 2) मान्य है।
फोन – 98266-24298 ई मेल [email protected] पता – अक्षरधाम, श्री राम मंदिर के सामने, इंद्रप्रस्थ कॉम्प्लेक्स के पास, ब्रह्मपारा , अम्बिकापुर, जिला – सरगुजा (छत्तीसगढ़) पिन – 497001
मुफ्ती अब्दुला जैसे वाचालों के मुँह पे ठोका ताला है ।।
भारत में एक विधान रहेगा दुनिया को समझाया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
बादाम खुवानी अखरोटों के बाग पुनः मुस्काये है ।
काश्मीर की गलियों ने फिर गीत खुशी के गाये हैं ।।
कश्यप के आश्रम में अब फिर से यौवन आया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
गंगा यमुना सब खुश हैं अरु झेलम भी हरषायी है ।।
केसर के फूल सजे देखो हर क्यारी मुस्कायी है ।।
मेघदूत के छन्दों को अब सबने मिलकर गाया है ।
सत्तर सालों में अब कोई नया उजाला लाया है ।।
डाँ. आदेश कुमार पंकज
डाँ. आदेश कुमार पंकज
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