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  • धूल पर दोहे

    धूल पर दोहे

    पाहन नारी हो गई,पाकर पावन धूल
    प्रभु श्रीराम करे कृपा,काँटे लगते फूल

    महिमा न्यारी धूल की,केंवट करे गुहार
    प्रभु पग धोने दीजिए,तभी चलूँ उस पार

    मातृभूमि की धूल भी,होता मलय समान
    बड़भागी वह नर सखी,त्यागे भू पर प्रान

    आँगन में सब खेलते,धूल धूसरित ग्वाल
    मात यशोदा गोद ले,चुमती मोहन गाल

    कृष्ण पाद रज धो रहे,बहा नैन जलधार
    भक्त सुदामा है चकित,देख मित्र सत्कार

    ✍ सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • बस तेरा ही नाम पिता

    बस तेरा ही नाम पिता

           
    उपर से गरम अंदर से नरम,ये वातानुकूलित इंसान है!
    पिता जिसे कहते है मित्रो,वह परिवार की शान है!!

    अच्छी,बुरी सभी बातो का,वो आभास कराते है!
    हार कभी ना मानो तुम तो,हर पल हमै बताते है!!

    वो नही है केवल पिता हमारे,अच्छे,सच्चे मित्र भी है!
    परिवार गुलशन महकाए,ऎसा ब्रंडेड ईत्र भी है!!

    वह धिरज और गंभिरता की,जिती जागती सुरत है!
    वही हमारे परिवार मे,ईश्वर की दुजी मुरत है!!
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                  (२)
    अनुशासित दिनचर्या उनसे,असिम ज्ञान भंडार है!
    गुस्सा भी है सबसे जादा,और सबसे जादा प्यार है!!

    मुश्किलो मे परिवार की,पापा ही एक हौसला है!
    उन्हीके कारण परिवार का,एक सुरक्षित घोसला है!!

    वो खूद की ईच्छाओ का हनन है,परिवार की पुर्ती है!
    परिवार मे पिता ही साक्षात,बड़ी त्याग की मुर्ती है!!

    अपनी आँखो के तारो का,बहुत बड़ा अरमान हो तुम!
    परिवार के हर शख्स की,सचमुंछ मे एक जाॅन हो तुम!!
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                    (३)
    रात को उठकर जो बच्चो को,उढ़ाते देखे कंबल है!
    जो मां के माथे की बिंदीया,परिवार का संबल है!!

    हमने जिनके कंधे चढ़कर,जगत मे देखे मेले है!
    परिवार की खूशियो खातिर,संकट जिसने झेले है!!

    गुरु,जनक,पालक,पोषक तुम,तुम ही भाग्यविधाता हो!
    जरुरत की सब पुर्ती हो तुम,तुम ही सच्चे ताता हो!!

    रहे सदा जीवनभर जगमे,बस तेरा ही नाम पिता!
    बच्चो सुनो कितने भी बड़े हो,करना सब सम्मान पिता!!
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    कवि-धनंजय सिते(राही)
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  • डाँ. आदेश कमार पंकज के दोहे

    डाँ. आदेश कमार पंकज के दोहे

    पाई पाई जोड़ के बना खूब धनवान ।

    संस्कार नहीं जानता कैसा तू नादान ।।

    करता लूट खसोट है वा रे वा इन्सान ।

    लालच में है घूमता बिगड़ गई सन्तान ।।

    क्यों तू लालच कर रहा करता फिरता पाप ।

    सोने सा अनमोल तन बना रहा अभिशाप ।।

    पंकज नित दिन दीजिए संतति को संस्कार ।

    ज्ञान विवेक जिनमें नहिं वह सब हैं बेकार ।।

    खूब तिजोरी भर रहे कुछ नहिं आया हाथ ।

    ढाई गज का कफन ही जायेगा बस साथ ।।

    पंकज मेरी मानिए करें सदा सत कर्म ।

    नश्वर यह संसार है सब ग्रंथों का मर्म ।।

    पंकज निर्बल को कभी नहीं सतायें यार ।

    उसकी छोटी हाय से मिट जाये परिवार ।।

    डाँ.आदेश कुमार पंकज,

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  • सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता

    सामाजिक बदलाव पर छत्तीसगढ़ी कविता
    छत्तीसगढ़ी कविता

    करलई होगे संगी ,करलई होगे गा।
    छानी होगे ढलई ,करलई होगे गा ।।
    पहिली के माटी घर ,मोला एसी लागे।
    करसी के पानी म ,मोर पियास भागे।
    मंझन पहा दन, ताश अऊ कसाड़ी म।
    टेढ़ा फंसे रे ,   हमर बिरथा-बाड़ी म।
    ए जमाना बदलई ,  करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी ,   करलई होगे गा ॥


    टीवी म झंपाके, लईका,सियान तको ।
    रेसटीप अउ फुगड़ी खेल नंदागे सबो।
    कइसे होही, हामर लइका के भविष्य ?
    मोबाईल गेम म आंखी बटरागे  दूनो।
    नइ होत गोठ बतरई,करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी,   करलई होगे गा ॥


    बईलागाड़ी लुकागे ,आ गय हे ट्रेक्टर ।
    फटफटी कुदात हें ,सइकिल हे पंक्चर।
    खरचा बढ़ा के ,बनथें अपन म सयाना।
    गरीबी कार्ड के रहत लें, मनमाने खाना।
    नइ होत हे कमई-धमई ,करलई होगे गा ।
    करलई होगे संगी,    करलई होगे गा ।।


    पहिली कस पहुना , कोई आवत नईये।
    बबा ह लईका ल,  कथा सुनावत नईये।
    कोठी म धान उछलत ,  भरावत नईये।
    गुरुमन ल चेला हर ,     डरावत नईये।
    मुर्रा लई कस होगे दवई,करलई होगे गा।
    करलई होगे संगी,     करलई होगे गा ॥
    (रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर, बसना)

    मनीभाई नवरत्न की १० कवितायेँ

     मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

  • 17 मई विश्व दूरसंचार दिवस के अवसर पर एक कविता

    विश्व दूरसंचार दिवस १७ मई को मनाया जाता है। यह दिन 17 मई 1865 को अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ की स्थापना की स्मृति में विश्व दूरसंचार दिवस के रूप में जाना जाता था। वर्ष1973 में मैलेगा-टोर्रीमोलिनोन्स में एक सम्मेलन के दौरान इसे घोषित किया गया। इस दिन का मुख्य उद्देश्य इंटरनेट और नई प्रौद्योगिकियों द्वारा लाया गया सामाजिक परिवर्तनों की वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए है।

    17 मई विश्व दूरसंचार दिवस[17 May - World Telecom Day]
    17 मई विश्व दूरसंचार दिवस[17 May – World Telecom Day]

    17 मई विश्व दूरसंचार दिवस के अवसर पर एक कविता

    चहल-पहल है,मची उथल पुथल ।
    आज कुछ और अलग कुछ कल।
    सूचना प्रसारण में आज हलचल।
    होती परिवर्तन देख लो प्रतिपल।
    बदल रही है जिंदगी ,हो गई तेज रफ्तार ।
    पल में देखो , बदल गई है सारा संसार ।।


    संदेशा लें जाता कोई संवदिया।
    फिर चली, दूरसंचार का पहिया।
    कबूतरों ने खत को पहुँचाया ।
    वही खत लेटर बाॅक्स में आया।
    तब हो गई थी ,पाण्डुलिपि का आविष्कार ।
    आजादी में भूमिका में थे, तब के अखबार ।

    फिर विज्ञान ने, दी अपनी दस्तक
    और तार से , झट संदेश पहुंचाया।
    तार के बाद संदेश अब, बेतार हुआ
    उपग्रह ने अंतरिक्ष में कदम जमाया।
    मानव जीवन आबाद हुआ,सपने भी साकार।
    जैसे -जैसे विकसित होने लगी दूरसंचार ।।


    संगणक ने बदल के रख दी तस्वीर ।
    तकनीकी चरम में गई,तोड़ के जंजीर ।
    आज मोबाइल यंत्र है , सब के हाथ ।
    आदमी कहीं जाये तो,जग रहता साथ ।
    देश-विदेश के खबर से, जुड़ी है ई-अखबार ।
    दुनिया पूरी देख सकें हम, टीवी में है संसार।

    (रचयिता :- मनी भाई भौंरादादर बसना )