हिन्दी बिन्दी भूल गये
बड़े बड़े हैं छंद लिखैया,
सूनी किन्तु छंद चटसार|
हिन्दी बिन्दी भूल गये सब,
हिन्दी हिन्दी चीख पुकार||
है हैं का ही अन्तर भूले,
बिना गली खिचड़ी की दाल|
तू तू में में मची हुई है,
नोंचत बैठ बाल की खाल||
शीश पकड़ कर बैठ गये हैं,
सुर लय यति गति चिह्न विराम|
एक पंक्ति सुरसा-सी लम्बी,
एक पंक्ति की तंग लगाम||
छाँट भाव की सभी टहनियाँ ,
ठूँठ शब्द से माँगत छाँव|
कोयल की ज्यों छोड़ सभा को,
पाते काक सभा की काँव||
ग़ज़ल आज क्यों सिर पर बैठी,
कर लो थोड़ा सोच विचार |
छंद सनातन शास्त्र बताते,
क्यों नहिं होती फिर गुंजार||
तुलसी मीरा केशव भूषण,
दिनकर कबिरा सूर महान||
अभी समय है छंद ज्योति का,
हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान||
(वीर छंद विधान~31 मात्रा, 16,15 पर यति|
चरणान्त में वाचिक भार 21,कुल चार चरण, क्रमागत दो दो समतुकान्त)
दिलीप कुमार पाठक “सरस”
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद