देव,दनुज,नाग,नर,यक्ष,सभी
नित मेरी महिमा गाते हैं।
सत्ता सबसे ऊपर मेरी,
सब सादर सीस झुकाते हैं।।1
देव मैं महान शक्तिशाली,
हूँ अजर,अमर,अविनाशी मैं।
सर्वत्र मेरा ही शासन है,
नित प्रवहमान एकदिशीय मैं।।2
मेरी प्रवाह के साथ-साथ,
जो अपनी कदम बढ़ाते हैं।
पुरुषार्थी,परिश्रमी जन ही,
जीवन-फल लाभ उठाते हैं।।3
पूजते जन श्रद्धा-भक्ति से ,
हरदम फल पाते मन सन्तोष।
अति शीघ्र रीझ मैं जाता हूँ,
जैसे देवों में आशुतोष।।4
हैं ऋद्धि-सिद्धि मेरी दासी,
चाकरी बजातीं हैं नित प्रति।
मंगल करतीं हरदम उनका,
निष्ठा रखते जो मेरे प्रति।।5
स्वर्गस्थ कल्पवृक्ष,कामधेनु,
इच्छित दाता हैं देवों का।
देते नत मेरी आज्ञा से
फल,कर्मशील को कर्मों का।।6
नवनिधि-अष्टसिद्धियों का भी
दाता मानव मुझको जानो।
साधक पाते फल पूज मुझे,
तुम ब्रह्मगिरा अमृषा मानो।।7
हूँ रौद्ररूप भैरव मैं ही,
काल का काल मैं महाकाल।
देता हूँ दंड निकम्मों को,
जो कर्मच्युत और हैं अलाल।।8
जो मेरा रखते ध्यान नहीं,
करते रहते नित्य निरादर।
खर्राटे भर सोते रहते,
विचरते पशुवत जिंदगी भर।।9
अलसाये,अकर्मठ ही यहाँ,
किस्मत का रोना रोते हैं।
विधि हो जाते उनके विरूद्ध,
निकम्में जन मुझे खोते हैं।।10
खोकर मुझको रोते हैं जन,
अवसर की फिर से चाह लिये।
सर धुनते,मिंजते हैं हाथ,
क्यों तब हमनें यह नहीं किये??11
अवसर मिले नहीं बार-बार?
रुष्ट समय-देवता हो जाते।
अवज्ञा कर माया में भूले,
वे सफल कहो कब हो पाते??12
युगल किशोर पटेल
सहायक प्राध्यापक(हिन्दी)
शासकीय वीर सुरेंद्र साय महाविद्यालय गरियाबंद