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  • माँ पर कविता – अभिलाषा

    माँ पर कविता – अभिलाषा

    यहाँ माँ पर हिंदी कविता लिखी गयी है .माँ वह है जो हमें जन्म देने के साथ ही हमारा लालन-पालन भी करती हैं। माँ के इस रिश्तें को दुनियां में सबसे ज्यादा सम्मान दिया जाता है।

    mother their kids
    माँ पर कविता

    माँ पर कविता – अभिलाषा

    माँ तुम…………………………..
    दया ममता करुणा की मूरत हो…
    ईश्वर की सूंदर प्रतिकृति हो….
    सघन वन की घनी छाया हो…
    रेगिस्तान की तपती रेत हो…


    विराट विशाल आकाश का आशीर्वाद हो…
    रक्षिका बनी सिंहनी हो…..
    समुन्दर में उठती सैलाब हो…
    पहाड़ो की सुन्दर श्रृंखला हो…


    निर्झर झरने की मीठी सोता हो….
    फलदार वृक्ष की घनी छाया हो…
    धूप की उजली मुस्कान हो..
    स्निग्ध चाँदनी की कनात हो….


    चमकते टूटे तारों की शगुन हो…
    हिमानी ठंडी शीतल वर्षा हो….
    गंगा की पवित्र धारा हो …..
    अग्नि की गर्म ज्वाला हो….


    जीवन की मधुर धुन हो….
    मेरे हर दुखों को महसूस करनेवाली,
    दिल की गहराइयों से,
    बहती अश्रुधारा हो….


    माँ तुम……………
    निःशब्द प्रेम की गाथा हो….
    कैसे तुम्हे शब्दों में बाँध सकूँ….
    तुम असीमित विस्तार की ,
    परिभाषा हो माँ,
    मेरे जीवन की अभिलाषा हो………
    माँ……………………….
                 तुम्हारी प्रतिकृति 
                                       अभिलाषा अभि

  • दिल अपना तुझको दिया है

    दिल अपना तुझको दिया है

    नायक –
    दिल अपना मैने तुझको उपहार दिया है
    क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
    नायिका –
    हां हमने सनम तुम पर ऐतबार किया है
    लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
    नायक –
    यादों में रात सारी गुज़ारते हैं हम
    ख़्वाबों में भी बस तुमको पुकारते हैं हम
    चँदा में अक्स तेरा निहारते हैं हम
    है
    तेरे नाम जबसे दिल ये दिलदार किया है
    क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
    दिल अपना…..
    क्यों तूने….
    नायिका –
    तू बीज मोहब्बत का जिस दिल में बो गया
    सुनकर तेरी ये बातें दिल तेरा हो गया
    चैनों सुकूं न जाने कब कैसे खो गया
    इस रोग का बस तुमने उपचार किया है
    लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
    हां हमने सनम…..
    लो आज…..
    नायक –
    ‘चाहत’ ये जबसे जागी तुम ज़िन्दगी हुईं
    करने लगा इबादत तुम बन्दगी हुईं
    न बुझती है कभी जो वो तिश्नगी हुईं
    हर बार हामी भर के इन्कार किया है
    क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
    दिल अपना…..
    क्यों तूने……
    नायिका –
    वो भूल थी इक मेरी ये माननें लगी
    सच्चाई तेरे दिल की अब जानने लगी
    आशिक़ से तुमको दिलबर मैं मानने लगी
    इंकार नहीं यारा इक़रार किया है
    लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
    हां हमने सनम…..
    लो आज…..


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे

    सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे

    सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे ।
    राधा मेरो मन को भावे माता मोहि दिलादे ।
    सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे ।
    मैंया –  ना ना लाला तू अभी है छोटा ।
    अकल का भी तू है   मोटा ।
    इस बात को दिल से भुलादे
    रे कान्हा अभी ब्याह की बात भुलादे।।
    कान्हा –गैया चराने मैंया मैं न जाऊँ ।
    माखन मिसरी  माँ  मैं  न खाऊँ ।
    बस राधा ही मोहि दिलादे ।
    सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे।।
    मैंया–तू जाता गइयन के पीछे ।
    राधा जायेगी तेरे पीछे पीछे ।
    लाला बात  तू दिल से भुलादे ।
    रे कान्हा अभी ब्याह की बात भुलादे ।।
    कान्हा-आयेगी राधा मैंया सेवा करेगी ।
    दूध दही  मटकी  से भरेगी ।
    मैंया चाहे तो तू पाँव दबवाले ।
    सुन मैंया मोरी राधा से ब्याह करादे।।

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • मौन बोलता है

    मौन बोलता है


    हाँ !
    मैं ठहर गया हूँ
    तुम्हारी परिधि में आकर
    सुन सको तो
    मेरी आवाज सुनना
    “मौन” हूँ मैं,
    मैं बोलता हूँ
    पर सुनता कौन है
    अनसुनी सी बात मेरी
    तुम्हारी “चर्या” के दरमियाँ
    मेरी    “चर्चा”  कहाँ ,
    काल के द्वार पर
    मुझे सब सुनते हैं
    जीवन संगीत संग
    मुझे सुन लिया होता
    रंगीन से जब
    हुए जा रहे थे
    संगीत जीवन का
    बज रहा था तब,
    व्योम
    कुछ धुंधलका समेटे है
    निराशा के बादल
    छाए हुए लगते हैं
    पर यह सच नहीं
    अतीत साक्षी है
    पलट कर देख लो तुम
    जिन्होंने सत्य को
    पा लिया जीवन में
    मौन को सुना और
    साध लिया उन्होनें.

    राजेश पाण्डेय अब्र
         अम्बिकापुर
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

    धरती माता रो रो कर करती यही पुकार

    धरती माता रो रो कर करती  यही पुकार ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे मनुज तुम  मुझे  संवारो ।।
    महल बना कर बड़े बड़े
    तुम बोझ न मुझ पर डालो ।
    पेड़ पौधों को काट काट
    कर न पर्यावरण  बिगाड़ो।
    मैं हूँ सबकी भाग्य विधाता
    सब जीवों से मुझे प्यार ।।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।।
    मेरे गोद में जन्म लिया तू
    मुझसे जीवन पाया
    अन्न फल फूल  देकर
    तेरे जीवन को महकाया ।
    मानव तू अंतस में  झाँक कर
    मन में  तनिक  विचार ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।।
    चाँद निकलता मैं हँसती
    सूर्य ताप  सह जाती हूँ ।
    कलरव करती चिडिया
    आँगन मन ही मन मुस्काती हूँ ।
    कूडा करकट न डाल तू  मुझपे
    प्रदूषण को भी संभाल ।
    न मेरा रूप बिगाड़ो रे
    मनुज तुम मुझे संवारो ।
    धरती माता रो रो कर
    करती यही पुकार ।
    न मेरा रूप—

    केवरा यदु “मीरा “
    राजिम
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद