हे धरती के भगवान
हो तुम आसाधारण,
तेरे कांधों पर दुनिया टिका है,
तेरे खून के कतरे से ही ,
ये पावन धरती भिंगा है !!
हे धरती के भगवान ,
तु है बड़ा महान !!
ऊसर भूमि उपजाऊ कर देता,
कठोरता खुद हर लेता ,
नित नव जुनून कुछ करने का ,
कभी न सोचा स्वयं रखने का ,
कमा-कमा कर तू रे प्यारे ,
औरो को कर दिया धनवान …!!
न धूप लगे न ठंड ,
रहे नंद धड़ंग ,
नहीं भय है बारिस का,
न चिंता है वारिस का ,
हाल कमाना हाल खाना ,
नहीं रखता कोई खजाना !
नही है मन मे कोई अभिमान …..!!
ऊँचा-ऊँचा महल बनाया,
ऐश्वर्य से खूब सजाया ,
बड़े-बड़े कल कारखान कोे ,
ऊँगली से खूब नचाया ,
विकास तेरे हाथो से आगे बड़ा,
तु रह गया वही का वही अनजान …. !
गर तू कही कांधे हटा दे तो,
देखना दुनिया मे गजब हो जाए !
फलता फूलता यह चमन का ,
एक-एक कलि यु ही मुरझा जाए !
तेरे पल भर के रूकने से,
दुनिया की गति रूक जाए,
सच कहे तो तू ही है मनू के संतान…. !
जीवन भर तू खूब कमाया,
पेट की आग न बुझा पाया ,
न किमत तेरे मजदूरी का ,
कोई सही-सही न दे पाया ,
सोने को एक छत नही ,
आलिशान महले बनाया ,
‘अनन्य’ तेरे महिमा का
कर रहा गुनगान …!!
दूजराम साहू ” अनन्य “
निवास -भरदाकला(खैरागढ़)
जिला- राजनांदगाँव (छ.ग.)