भगवान परशुराम पर कविता
त्रेतायुग के अयाचक ब्राह्मण
भगवान विष्णु के छठे अंशावतार
तुझे पाकर हे भार्गव
धन्य हुआ संसार ।।
भृगुवंश की माता रेणुका
पिता जिनके जमदग्नि
साक्षात प्रभु हे गुरू श्रेष्ठ
हे हवन कुंड की अग्नि ।।
विधुदभि नाम के परशुधारी
हे भृगुश्रेष्ठ अमित बलशाली
सृष्टि के हरेक जीवों का हे भगवन
करते हो रखवाली ।।
भृगुऋषि के महान शिष्य
हे पिता के आज्ञाकारी
महाकाल भी जिनके तेज को जाने
तुम हो महान ब्रह्माचारी ।।
शस्त्र विद्या के महान गुरु
दिव्यासत्र के अद्वितीय ज्ञानी
महान शिष्य जिनके भिष्म
द्रोण और कर्ण जैसे महा दानी।।
धरनी पर जब पाप बढ़ा
दुष्टो ने जब पैर पसारा
21 बार फरसा से हे भगवन
दुष्टो को संहारा ।।
प्रकृति के महान प्रेमि
हे जीवों के पालक
है सृष्टि के जितने जीव प्रभु
सब हैं तेरे बालक ।।
महेन्द्रगिरि निवास स्थान हैं जिनके
हे ऋषिवीर महान संन्यासी
अत्याचार बढ रहा है भगवन
फरसा तेरे खुन की प्यासी ।।
पाप बढेगे जब धरनी पर
आयेंगे प्रभु परशुराम
पापियों का अंत कर फरसा से
देंगे जगत को सत्य का प्रमाण ।।
⛏बाँके बिहारी बरबीगहीया ⛏
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