यूँ ही ख़ुद के आगे तुम मजबूर नहीं होना
यूँ ही ख़ुद के आगे तुम मजबूर नहीं होना
शौहरत हाँसिल गर हो तो मग़रूर नहीं होना
लाख फाँसले तेरे मेरे दरमियाँ क्यों न हो
नज़र की दूरी सही लेकिन दिल से दूर नहीं होना
ख़ाली हाथ हम आए थे खाली ही जाना है
दौलत के नशे में कभी भी चूर नहीं होना
गफलतें तब इश्क़ में पैदा हो जाती हैं
प्यार करते करते तुम मशहूर नहीं होना
गुस्सा करना भी इंसां की फ़ितरत ही तो है
कभी अहम में आकर पर तुम क्रूर नहीं होना
चालाक बहुत है ये दुनिया तुमको चकमा देगी
भोला चेहरा देख कभी बत्तूर नहीं होना
‘चाहत’ बन जाना चाह तो पल पल बढ़ती है
हुस्न तो ढल जाता है किसी की हूर नहीं होना
नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद