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  • यूँ ही ख़ुद के आगे तुम मजबूर नहीं होना

    यूँ ही ख़ुद के आगे तुम मजबूर नहीं होना

    यूँ ही ख़ुद के आगे तुम मजबूर नहीं होना
    शौहरत हाँसिल गर हो तो मग़रूर नहीं होना
    लाख फाँसले तेरे मेरे दरमियाँ क्यों न हो
    नज़र की दूरी सही लेकिन दिल से दूर नहीं होना
    ख़ाली हाथ हम आए थे खाली ही जाना है
    दौलत के नशे में कभी भी चूर नहीं होना
    गफलतें तब इश्क़ में पैदा हो जाती हैं
    प्यार करते करते तुम मशहूर नहीं होना
    गुस्सा करना भी इंसां की फ़ितरत ही तो है
    कभी अहम में आकर पर तुम क्रूर नहीं होना
    चालाक बहुत है ये दुनिया तुमको चकमा देगी
    भोला चेहरा देख कभी बत्तूर नहीं होना
    ‘चाहत’ बन जाना चाह तो पल पल बढ़ती है
    हुस्न तो ढल जाता है किसी की हूर नहीं होना


    नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
    झाँसी
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • बाँसुरी बजाये गिरधारी

    बाँसुरी बजाये गिरधारी

    कृष्ण कान्हा

    बाँसुरी बजाये गीरधारी ब्रज में भीड़ भारी ।
    सखी संग नाचे वृषभानु दुलारी ब्रज में भीड़ भारी।

    बाँसुरी की धुन पे कान्हा गौ भी झूमे
    कदम की डाली मोहन तेरी पलकें चूमे
    साथ गाये कोयलीया काली ब्रज में भीड़ भारी ।
    बाँसुरी बजाये गिरधारी ब्रज मे भीड़ भारी ।


    कमल के फूल माधव चरण को छुए
    यमुना की जल श्यामा चरण को धोए
    देखो मुस्काए सूरज की लाली ब्रज में भीड़ भारी ।
    बाँसुरी बजाये गिरधारी ब्रज मे भीड़ भारी ।


    एक तुम्हें प्यारी राधा दूजे तेरी वंशी
    वात्सल्य प्रेम हो मोहन हृदय तेरी शांत सी
    वेणुवाद पे सखा बजाये प्यारे ताली ब्रज में भीड़ भारी
    बाँसुरी बजाये गिरधारी ब्रज मे भीड़ भारी ।


    तू हो चितचोर श्यामा मनहरण तेरो मुखड़ा
    देखो तेरी वंशी की धुन पे बादल भी उमड़े-घुमड़े
    वन में नाचे मोरनी मतवाली ब्रज मे भीड़ भारी
    बाँसुरी बजाये गिरधारी ब्रज मे भीड़ भारी ।


    बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • कब कैसे क्या बोले ?

    कब कैसे क्या बोले ?


    वाणी एक दुधारू तलवार की तरह है।
    उचित प्रयोग करे तो अच्छा,नहीं तो बुरा।
    अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
    ज्ञान की बात को सहेजकर रखते है।
    कब कैसे क्या बोले पता नहीं।
    जुबान फिसली तो रुका नहीं।
    मन को शांति बनाकर रखिए।
    होठों से मुस्कान प्रेम से बोलिए।
    छोटी सी जीभ,बड़े बड़े कहर ढा दे।
    लड़ाई झगड़े छोड़के, अमन चैन दिला दे।
    संयम शीतल भाव से, सादगी झलका दे।
    मीठे वचन बोलके, प्रेम के रस पिला दे।
    वाणी का वरदान, मानव को मिला है।
    वाणी से ही मिठास उतपन्न होता है।
    वाणी से ही दूसरे को ठेस पहुंचता है।
    इसे कैसे इस्तेमाल करें,आपको पता है।


    रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
    पीपरभवना,बिलाईगढ़,बलौदाबाजार (छ.ग.)
    ‌मो . 812058782
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  • कर्मठता की जीत

    कर्मठता की जीत

    स्वाभिमान मजबूत है , पोषण का है काज ।
    बैठ निठल्ला सोचता ,  बना भिखारी आज ॥
    लाचार अकर्मण्यता , मंगवा रही भीख ।
    काज बिना कर के करे , कुछ तो उससे सीख ॥
    आलसी लाचार बने , करे गलत करतूत ।
    कर्मठता सबसे बड़ी , कर देती मजबूत ॥
    मिलता है मेहनत से , जब भर पेट अनाज ।
    खाली क्यों बैठा रहा , अन्न को मोहताज ॥
    दान करते रहें सदा , हो  पात्र संज्ञान ।
    कुपात्र-दान हो नहीं  , बढ़े भिखारी जान ॥
    सोच समझ के कीजिये , यह अमूल्य है दान ।
    वरना होगा ही नहीं , समस्या का निदान ॥
    बोना बीज सुकर्म के , पुण्य-फसल लहराय ।
    हर मौसम में फल मिले , मन पुलकित हो जाय ॥
    जीवन कविता रूप है , समन्वय अलंकार ।
    भावों की जब लय रहे , मनभावन आकार ॥
    कर्मठता की लेखनी , रचना है इतिहास ।
    कर्म स्वयं ही बोलता , यही सुखद अहसास ॥
    भावों की खेती करें , रखना बस ये ध्यान ।
    फसल उगाना लक्ष्य की , बाकी तजें सुजान ॥
    मधु सिंघी
    नागपुर ( महाराष्ट्र )
    9422101963
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  • आओ सब मिल कर संकल्प करें

    आओ सब मिल कर संकल्प करें

    आओ सब मिल कर संकल्प करें।
    चैत्र शुक्ल नवमी है कुछ तो, नूतन आज करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
    हम इस में रहना सिखलाएं, तोड़े कोई इसको जब।
    मर्यादा के स्वामी की, धारण यह सीख करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का ही मन हो।
    भाई मित्र और सब के, लिए समर्पित ये तन हो।
    समदर्शी सा बन कर, सबसे व्यवहार करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    उत्तम आदर्शों को हम, जीवन में सभी उतारें।
    कर चरित्र निर्माण स्वयं को, जग में आज सुधारें।
    खुद उत्तम बन कर हम, पुरुषोत्तम को ‘नमन’ करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    आज रामनवमी के दिन हम, मिल कर व्रत यह लेवें।
    दीन दुखी आरत जन जन को, सकल सहारा देवें।
    राम-राज्य का धरती पर, सपना साकार करें।
    आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद