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  • चैत्र शुक्ल में मनाएं नवरात्रि त्यौहार

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    चैत्र शुक्ल में मनाएं नवरात्रि त्यौहार

    चैत्र शुक्ल में मनाएं ,नवरात्रि त्यौहार ।
    सुख वैभव भरपूर ,खुशियां मिले अपार ।।


    प्रथम दिवस शैलपुत्री कुँवारी कन्या माता ।
    पूजा करने वाला सुख-सम्पति पाता ।।


    ब्रह्मचारिणी देवी है, स्त्री रूप में गुरु ।
    ज्ञान आनंद की दात्री पावन होती रूह ।।


    चंद्रघंटा के दशो भुजाओं में अस्त्र ।
    सिंह सवार होकर शत्रु को करे पस्त ।


    चतुर्थ दिवस को पूजित माँ कुष्मांडा ।
    हँसने से इनके होता उत्पन्न ब्रह्माण्ड ।।


    शिवपत्नी कार्तिकेय की जननी स्कंदमाता।

    भक्तो की पालक जग की यही विधाता ।।


    कात्यायनी ने दिया गोपियों को कृष्णप्रेम वरदान ।
    असुरो का संहार किया धरती का उत्थान ।।


    कालरात्रि माँ मशाल से करे प्रकाश ।
    साधना विघ्न दूर हो घट जाये संत्रास ।।


    अष्टमी को महागौरी की करे आराधना ।
    जनकल्याण करे ये माता पूरी हो साधना ।।


    नवमी सिद्धिदात्री पूजन आठ दिवस का फल ।
    भक्त तुमको मोक्ष मिलेगा जीवन होगा सफल ।।


    जीवन में सुख मिले दुखो का हो अंत ।
    नवरात्रि के पावन समय ,खुशियां मिले अनन्त ।।

                   प्रकाश शर्मा ‘पंकज’

  • कौन समय को रख सकता है

    कौन समय को रख सकता है

    कौन समय को रख सकता है, अपनी मुट्ठी में कर बंद।
    समय-धार नित बहती रहती, कभी न ये पड़ती है मंद।।
    साथ समय के चलना सीखें, मिला सभी से अपना हाथ।
    ढल जातें जो समय देख के, देता समय उन्हीं का साथ।।
    काल-चक्र बलवान बड़ा है, उस पर टिकी हुई ये सृष्टि।
    नियत समय पर फसलें उगती, और बादलों से भी वृष्टि।।
    वसुधा घूर्णन, ऋतु परिवर्तन, पतझड़ या मौसम शालीन।
    धूप छाँव अरु रात दिवस भी, सभी समय के हैं आधीन।।
    वापस कभी नहीं आता है, एक बार जो छूटा तीर।
    तल को देख सदा बढ़ता है, उल्टा कभी न बहता नीर।।
    तीर नीर सम चाल समय की, कभी समय की करें न चूक।
    एक बार जो चूक गये तो, रहती जीवन भर फिर हूक।।
    नव आशा, विश्वास हृदय में, सदा रखें जो हो गंभीर।
    निज कामों में मग्न रहें जो, बाधाओं से हो न अधीर।।
    ऐसे नर विचलित नहिं होते, देख समय की टेढ़ी चाल।
    एक समान लगे उनको तो, भला बुरा दोनों ही काल।।
    मोल समय का जो पहचानें, दृढ़ संकल्प हृदय में धार।
    सत्य मार्ग पर आगे बढ़ते, हार कभी न करें स्वीकार।।
    हर संकट में अटल रहें जो, कछु न प्रलोभन उन्हें लुभाय।
    जग के ही हित में रहतें जो, कालजयी नर वे कहलाय।।
    समय कभी आहट नहिं देता, यह तो आता है चुपचाप।
    सफल जगत में वे नर होते, लेते इसको पहले भाँप।।
    काल बन्धनों से ऊपर उठ, नेकी के जो करतें काम।
    समय लिखे ऐसों की गाथा, अमर करें वे जग में नाम।।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • चैत्र नवरात्र पर घनाक्षरी

    नवदुर्गा सनातन धर्म में माता दुर्गा अथवा माता पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं। माता के नव् रूपों पर कविता बहार की कुछ रचनाये –

    चैत्र नवरात्र पर घनाक्षरी
    विधा – मनहरण घनाक्षरी
    (नववर्ष)

    जब हो मन हर्षित,नव ऊर्जा हो संचित,
    कर्म की मिले प्रेरणा,तभी नववर्ष है।
    दिलों में भाईचारा हो,बेटियों का सम्मान हो,
    छलि न जाए निर्भया, तभी नववर्ष है।
    समाज हो संगठित, संस्कृति हो सुरक्षित,
    निष्पक्षता हो न्याय में, तभी नववर्ष है।
    समानता का हक दो,वृद्धि का अवसर दो,
    मानवता की जीत हो, तभी नववर्ष है।

    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri
    चैत्र शुक्ल चैत्र नवरात्रि Chaitra Shukla Chaitra Navratri

    (कात्यायनी)
    कात्यायन ऋषि की,मनोकामना पूरी की,
    पुत्री बनी भगवती,कहाती कात्यायनी।
    षष्ट रूप कात्यायनी,महिषासुर मर्दिनी,
    धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष,शुभ फल दायिनी।
    गौर वर्ण तेज युक्त,हर उपमा से मुक्त,
    जगदम्बा ,दुर्गा,काली,पद्म असि धारिनी।
    कार्य सफल कीजिए,अभय वर दीजिए,
    महेश्वरी आशीष दो,माता सर्व व्यापिनी।


    ( शैलपुत्री)
    नवरात शुरु हुआ शैलपुत्री का पूजन
    जगर मगर जोत जलती भवन में।
    मन में अनुराग ले भक्त करते दर्शन
    फल फूल अरपन करते चरन में।
    हिमालयराज घर माँ शैलपुत्री का जन्म
    मंद मुस्काती सवार वृषभ वहन में।
    हम है अनजान माँ जाने न पूजा विधान
    हम पतित पावन ले लो माँ शरन में।


    (ब्रम्हचारिणी)
    शंकर को पति रूप में पाने के लिए उमा,
    तपस्या में लीन हुई माता ब्रम्हचारिनी।
    जापमाला दायाँ हाथ बायाँ हाथ कमंडल,
    त्याग दी सुख साधन साधिका तपस्विनी।
    छोड़कर जल अन्न शिवजी का नाम जप,
    करती अटल व्रत भक्त भय हारिनी।
    माँ ब्रम्हचारिणी हुई स्व तपस्या में सफल,
    शिवजी प्रसन्न हुए स्वीकारे अर्धांगिनी।

    ma-durga
    मां दुर्गा


    ( चंद्रघंटा)
    मन वांछित फल दे, जो दुख दर्द हर ले,
    दुर्गा का तृतीय रूप,चंद्रघंटा हमारी।
    जय जय चंद्रघंटा,रण में बजाती डंका,
    अपार शक्ति की देवी,शिवशंकर प्यारी।
    चंद्र सुशोभित भाल, दस भुज है विशाल,
    त्रिलोक में विचरती,वनराज सवारी।
    नवरात्रि है विशेष,पंचामृत अभिषेक,
    धूप दीप ले आरती,भक्ति करें तुम्हारी।


    ( कुष्माण्डा)
    सूर्य मंडल में बसी,अलौकिक कांति भरी,
    शक्ति पूँज माँ कुष्माण्डा,तम हर लीजिए।
    अण्ड रूप में ब्रम्हाण्ड,सृजन कर अखण्ड,
    जग जननी कुष्माण्डा,प्राण दान दीजिए।
    दुष्ट खल संहारिनी,अमृत घट स्वामिनी,
    आरोग्य प्रदान कर, रुग्ण दूर कीजिए।
    शंख चक्र पद्म गदा,स्नेह बरसाती सदा,
    सृष्टि दात्री माता रानी,ईच्छा पूर्ण कीजिए


    (स्कंदमाता)
    सकल ब्रम्हाण्ड की माँ,आज बनी स्कंद की माँ,
    मंगल बेला आयो माँ,बधाई गीत गाऊँ।
    पुत को गोद लेकर,सिंह सवार होकर,
    स्कंदमाता रक्षा कर,श्रीफल मैं चढ़ाऊँ।
    चुड़ी बिंदी महावर,मदार फूल केसर,
    चढ़ा सोलह श्रृंगार,तुझको मैं रिझाऊँ।
    दरबार जो भी आता, नहीं कभी खाली जाता,
    सौभाग्य दायिनी माता, झुक माथ नवाऊँ।


    ( कात्यायनी)
    कात्यायन ऋषि की,मनोकामना पूरी की,
    पुत्री बनी भगवती,कहाती कात्यायनी।
    षष्ट रूप कात्यायनी,महिषासुर मर्दिनी,
    धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष,शुभ फल दायिनी।
    गौर वर्ण तेज युक्त,हर उपमा से मुक्त,
    जगदम्बा ,दुर्गा,काली,पद्म असि धारिनी।
    कार्य सफल कीजिए,अभय वर दीजिए,
    महेश्वरी आशीष दो,माता सर्व व्यापिनी।


    ( कालरात्रि)
    भद्रकाली विकराला,स्वरूप महा विशाला,
    गले में विद्युत माला, माँ कालरात्रि नमः।
    केश काल है बिखरी,बाघम्बर में लिपटी,
    रसना रक्तिम लम्बी,माँ भयंकरी नमः।
    शुंभ निशुंभ तारिणी,रक्तबीज संहारिणी,
    ममतामयी त्रिनेत्री, माँ कालजयी नमः।
    कल्याण करने वाली, भय हर लेने वाली,
    शुभफल देने वाली,माँ शुभंकरी नमः।

    आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी माँ दुर्गा पूजा Navami Maa Durga Puja from Ashwin Shukla Pratipada
    आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी माँ दुर्गा पूजा Navami Maa Durga Puja from Ashwin Shukla Pratipada


    ( महागौरी)
    अष्टम स्वरूप माँ की, जय हो महागौरी की,
    शुभ्र धवल रूप है, वृषभ की सवारी।
    चतुर्भुज सोहै अति,माँ देती सात्विक मति,
    डमरू त्रिशूल धारी,खोजते त्रिपुरारी
    षोड्शोपचार पूजा से,श्वेत फूल श्रीफल से,
    मिठाई नैवैद्य चढ़ा, पूजा करें तिहारी।
    जो जन मन से ध्यावै, माँ की कृपा दृष्टि पावै,
    रक्षा करो महा गौरी, हिमराज दुलारी।


    (सिद्धिदात्री)
    नौवीं रूप सिद्धिदात्री, अष्टसिद्धि अधिष्ठात्री,
    नवदिन नवरात,किये माँ उपासना।
    शक्ति रूपी सिद्धिदात्री,नवदुर्गे मोक्षदात्री,
    देव गंधर्व करते,माता तेरी साधना।
    शंख चक्र गदा पद्म,सुखदायी रूप सौम्य,
    कमल में विराजती,सुनो माँ आराधना।
    माँ भगवती देविका,संसार तेरी सेविका,
    मैं मति मंद गंवारी,क्षमा की है याचना।


    ✍ सुकमोती चौहान “रुचि”
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

  • मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें

    मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें


    मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
    नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।
    कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
    बात लोगों से फिर तमाम करें।
    सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
    खाना पीना तलक हराम करें।
    दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
    महफिलों में न इश्क़ आम करें।
    वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
    चाहे जितना भी ताम झाम करें।
    या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
    रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।
    पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
    कैसे अब उनको हम सलाम करें।
    खा गये देश लूट नेताजी,
    आप अब और कोई काम करें।
    आज तक जो न कर सका था ‘नमन’,
    काम वो उसके ये कलाम करें।
    बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
    तिनसुकिया
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • अब क्या होत है पछताने से

    अब क्या होत है पछताने से

    तनको मलमल धोया रे और मनका मैल न धोया
    अब क्या होत है पछताने से वृथा जनम को खोया रे
    भक्ति पनका करे दिखावा तूने रंगा चदरिया ओढ़कर
    छल कपट की काली कमाई संग ले जाएगा क्या ढोकर
    वही तू काटेगा रे बंदे तूने है जो बोया रे
    तनको मलमल धोया रे…

    सत्य वचन से विमुख रहा तूने पाप से नाता तोड़ा नहीं
    मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे में जाके हांथ कभी भी जोड़ा नहीं
    करे इतना क्यूं गुमान रे तेरी माटी की काया रे …
    तनको मलमल धोया रे…

    रोया “दर्शन” जनमानस की सोच के झूठी वाणी पर
    दे सतबुद्धि हे दयानिंधे इन अवगुण अज्ञानी प्राणी पर
    बारंम्बार आया प्रभुद्वारे जागा नहीं तू सोया रे..
    तनको मलमल धोया रे…
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    दर्शनदास मानिकपुरी ग्राम पोस्ट धनियाँ
    एन टी पी सी सीपत
    बिलासपुर-जिला (छ. ग.)