Blog

  • राधा की स्मृतियाँ

    राधा की स्मृतियाँ

    श्री राधाकृष्ण
    श्री राधाकृष्ण

    रतजगे हैं हमने कई किये…
    प्रतीक्षा में तुम्हारी हे प्राणप्रिये !
    प्रति स्पन्दन संग नाम तुम्हारा
    हम राधे-राधे जपा किये ।।१।।
    वो यमुना-तट का तरु-तमाल
    था विरह-स्वर में देता ताल
    स्मृति संग लय भी बंधती रही
    मम छंदों की अनुमति लिये ।।२।।
    कभी सांसें हमारी, कभी बांसुरी…
    प्रतीक्षारत् सदा से नयन-पांखुरी
    स्मृतियाँ क्षण-क्षण रुलातीं-हँसातीं
    तुम्हें कैसे बतायें ? हैं कैसे जीये ? ।।३।।
    न चाँदनी ही बिछी थी मधुवन में कहीं
    तुम्हारे मुख से जो पूनम धुली थी नहीं
    मुरली भी कर्कश स्वरों से थी बोझिल
    तान नुपुरों की सुन, माधुरी को पीये ।।४।।
    प्रातः शरद की हल्की तपन तुम
    पावस की ठण्डी फुहारी पवन तुम
    मैं तुम बिन अधूरा सदा से हे पूर्णा !
    सुख-स्वर्णिम मथुरा न भाये हिये ।।५।।
    रम्ये ! तुम्हारी प्रथम मृदुल-छुअन से
    मधुवन सम लागे मथुरा भी छन से
    पुष्पावली शोभित पुर की विभा भी
    है मुख पर निशा की तड़पन लिये ।।६।।
    स्मृतियाँ ही सार्थक सुख-साधन सदा से
    हैं नैनों में संजोये हम अश्रु-धन सदा से
    उन स्मृतियों का ही तो सहारा है राधे !
    अब कण-कण में तुम ही तुम हो प्रिये ! ।।७।।
     निमाई प्रधान ‘क्षितिज’*
              रायगढ़,छत्तीसगढ़
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

  • कैसे कह दूं कि मुझे तुमसे प्यार हुआ नहीं

    कैसे कह दूं कि मुझे तुमसे प्यार हुआ नहीं 

     सबको कई बार होता मुझे एक बार हुआ नहीं ,

    तुम्हें देखने को ये दिल भी बेकरार हुआ नहीं,

    कोशिश बहुत की इस कम्बख्त दिल ने मगर ,

    फिर भी मुझसे इश्क का इज़हार हुआ नहीं ,

    मेरी नजरें मिली नहीं तुम्हारी नजरों से ज़रा भी ,

    मुझे नजरें मिलाने का भूत भी सवार हुआ नहीं ,

    जो मग़रूर है वो भी मोहब्ब्त में इंतेज़ार करते हैं ,

    पर मेरे इस दिल से जरा भी इंतेज़ार हुआ नहीं ,

    जरा सी भी तुम्हारी याद मुझे आई नहीं और ,

    रातों को वो मोहब्ब्त वाला बुखार हुआ नहीं,

    मैं ऐसी कई झूठी बातें बना के कह तो दूँ मगर,

    मै कैसे कह दूँ कि मुझे तुमसे प्यार हुआ नहीं !!

    आरव शुक्ला

  • हिन्दू नववर्ष ( चैत्र नवरात्र ) पर कविता

    चैत्र हिंदू पंचांग का पहला मास है। इसी महीने से भारतीय नववर्ष आरम्भ होता है। हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता है। अनेक पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा, चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना आरम्भ की थी। वहीं सतयुग का आरम्भ भी चैत्र माह से माना जाता है।

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी महीने की प्रतिपदा को भगवान विष्णु के दशावतारों में से पहले अवतार मतस्यावतार अवतरित हुए एवं जल प्रलय के बीच घिरे मनु को सुरक्षित स्थल पर पहुँचाया था, जिनसे प्रलय के पश्चात नई सृष्टि का आरम्भ हुआ।इसी दिन आर्य समाज एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी। इसी पर अर्थात भारतीय नववर्ष जो कि चैत्र हिंदू पंचांग का पहला मास है इस्से सम्बंधित कविता कविता पढ़िए-

    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन

    आई हैं चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा,
    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन ।
    हवाएं महक रही है, कोयल चहक रही हैं।
    लताएं झूम रही हैंं, बरखा बरस रही हैं।।


    नव सूरज उग आया, नव हैं प्रभात।
    चेहरों पर हंसी,उल्लास और खुशी ; नव हैं स्वागत।।
    फूल धरती के चमन में खिल रहे।
    आज दिल से दिल हर तरफ हैं मिल रहे।।


    मंदाकिनि प्रेम की हर तरफ बह रही।
    स्वर लहरियां कानों में जैसे कुछ कह रही।।
    आई है चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा,


    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन।
    नया जोश हैं, नया होश हैं, नई स्फूर्ति फैल रही।
    खुशबू प्यार ही प्यार की, महक बनकर मन मोह रही।।


    आंगन में बहार लौटी हैं , मिश्री मौसम में घुलती हैं।
    ठंडी हवाएं परबतों , नदी नालों से जा मिलती हैं।।
    अमराई में गाती कोकिल, हृदय में अमृत घुलता हैं।


    भारतीय नववर्ष में आदर सत्कार संग चलता हैं।।
    भ्रमरों की टोली फूलों की खुशबूं सूंघ रही।
    जोश और जुनून कंगूरे जैसे कोई चूम रही।।


    आई है चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा,
    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन।
    बाहर देखों हल्की धूप फैली हैं।


    धरती मां की चादर सुहानी, नहीं ये मैली हैं।।
    मानव मन तरंगित, दिशाएं भी झूम रही।
    भूल गये सब दुख दर्द, नहीं दिल में कोई हूम रही।।


    ज्योति तरंग से मन हर्षित हैं।
    भारत की धरती नव संवत्सर से आज गर्वित हैं।।
    नववर्ष में नव हर्ष हैं , जीवन बना आज उत्कर्ष हैं।


    नववर्ष में नव गीत हैं, नव प्रीत हैं, नव च़राग मेंं खिला हर्ष हैं।।
    आई हैं चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा,
    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन।


    जीत नवल हैं, सुकून भरा हैं आज माहौल।
    हर तरफ रंग, हर तरफ चंग, बढ़ रहा आज मेलजोल।।
    उजला उजला पहर हैं, मंजर खूब सुहाना।


    नव गीत से, नव प्रीत से भारतीय नववर्ष हैं आज मनाना।।
    न कोई शिकवा हैं, न ही कोई गिला हैं।
    इंसान, इंसान से आज खुशी संग मिला है।।


    उज्ज्वल उज्ज्वल प्रकाश हैं, पंछी कलरव गा रहे।
    समन्दर, पहाड़, नदियां, वनस्पतियां मस्ती में छा रहे।।
    आई हैं चैत्र शुक्ल वर्ष प्रतिपदा,


    आओं करें भारतीय नववर्ष का अभिनंदन।
    सौर,चंद्र, नक्षत्र,सावन ,अधिमास का क्या खूब समावेश हैं।
    ब्रह्मदेव ने की थी सृष्टि रचना, जग ने जानी महिमा, ये भारत देश हैं।।


    मधु किरणें पूरब दिशा से आज बरस रही हैं।
    सिंदूरी हैं भोर, फसलें खेतों में लहक रही हैं।।
    चार दिशाओं ने घोला कुंकुम, वातावरण हसीन ।


    सूरज हैं सौगातें लाया, किरणें हैं रंगीन।।
    अवनी से अम्बर तक घुल गई मिठास।
    चैत्र मास में होता भारतीय नववर्ष का अहसास।।

    धार्विक नमन, “शौर्य” ,डिब्रूगढ़, असम,मोबाइल 09828108858

    durgamata

    चैत्र नवरात्र नव वर्ष दिवस पर कविता

    धार्मिक दृष्टि से यह दिन बेहद खास है। पौराणिक मान्यता अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही सृष्टि की रचना शुरू की थी। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नववर्ष प्रारंभ होता है और इसी दिन चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri ) का पर्व भी शुरू होता है।

    शीर्षक:- नूतन वर्ष मनायें।

    आया पावन पर्व हमारा,
    नूतन वर्ष मनायें,
    चलें साथ सब नव विकास पथ,
    सुख-समृद्धि घर लायें।टेक।

    फसलें झूम रहीं खेतों में ,
    अनुपम छटा निराली ,
    बौराया हर बाग-बगीचा,
    मलय सुरभि मतवाली।
    रोम-रोम में नवल चेतना,
    गीत खुशी के गायें।
    आया पावन पर्व हमारा,
    नूतन वर्ष मनायें।1।

    पुलकित मन उल्लास नया है,
    अभी-अभी मधुमास गया है,
    खग-कुल कलरव डाल-डाल पर,
    कोंपल मधुर पराग नया है।
    बहॅके कदमों से चल कर के,
    नई खुशी घर लायें।
    आया पावन पर्व हमारा,
    नूतन वर्ष मनायें।2।

    क्षिति-जल-अम्बर झूम रहे हैं,
    रश्मि-रथी-पथ घूम रहे हैं,
    सुखदाई ऋतु का परिवर्तन,
    भ्रमर कली को चूम रहे हैं।
    नवल चेतना दिग्दिगंत में,
    आओ हम बिखरायें।
    आया पावन पर्व हमारा,
    नूतन वर्ष मनायें।3।

    घर-घर पूजन हवन करें सब,
    तोरण-द्वार सजा लेते हैं,
    संस्कार,संस्कृति में रहकर,
    मानव-धर्म निभा लेते हैं।
    ताशा,ढ़ोल,मंजीरा बाजे,
    जन-जन मन हरषायें।
    आया पावन पर्व हमारा,
    नूतन वर्ष मनायें।4।

    हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
    रायबरेली (उप्र) 229010
    9415955693

    अंग्रेजी नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं

    1 जनवरी का कोई ऐतिहासिक महत्व नही है..जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्रे प्रारंम्भ, ब्रम्हा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध इस दिन से है . एक जनवरी को अंग्रेजी कलेंडर की तारीख और अंग्रेज मानसिकता के लोगो के अलावा कुछ नही बदला..अपना नव संवत् ही नया साल है I

    ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
    है अपना ये त्यौहार नहीं
    है अपनी ये तो रीत नहीं
    है अपना ये व्यवहार नहीं

    धरा ठिठुरती है सर्दी से
    आकाश में कोहरा गहरा है
    बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
    सर्द हवा का पहरा है

    सूना है प्रकृति का आँगन
    कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं
    हर कोई है घर में दुबका हुआ
    नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं

    चंद मास अभी इंतज़ार करो
    निज मन में तनिक विचार करो
    नये साल नया कुछ हो तो सही
    क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही

    उल्लास मंद है जन -मन का
    आयी है अभी बहार नहीं
    ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
    है अपना ये त्यौहार नहीं

    ये धुंध कुहासा छंटने दो
    रातों का राज्य सिमटने दो
    प्रकृति का रूप निखरने दो
    फागुन का रंग बिखरने दो

    प्रकृति दुल्हन का रूप धार
    जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
    शस्य – श्यामला धरती माता
    घर -घर खुशहाली लायेगी

    तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
    नव वर्ष मनाया जायेगा
    आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर
    जय गान सुनाया जायेगा

    युक्ति – प्रमाण से स्वयंसिद्ध
    नव वर्ष हमारा हो प्रसिद्ध
    आर्यों की कीर्ति सदा – सदा
    नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा

    अनमोल विरासत के धनिकों को
    चाहिये कोई उधार नहीं
    ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं
    है अपना ये त्यौहार नहीं

    है अपनी ये तो रीत नहीं
    है अपना ये त्यौहार नहीं

  • बेटी पर दोहे -सुकमोती चौहान

    बेटी पर दोहे -सुकमोती चौहान

    १.
    बेटी होती लाड़ली,जैसे पुष्पित बाग।
    बिन बेटी के घर लगे, रंग चंग बिन फाग।। २.
    बेटी लक्ष्मी गेह की,अब तो नर लो मान।
    सेवा कर माँ बाप की,बनती कुल की शान।। ३.
    साक्षर होगी बेटियाँ,उन्नत होगा देश
    भर संस्कार समाज में,बदलेंगी परिवेश।। ४.
    बहु भी बेटी होत है,रखो न दूजा भाव
    निज बेटी सा मान दो,लाओ जी बदलाव।। ५.
    बेटी के उपकार का, मानो जी आभार
    बेटी से संसार है,बेटी से परिवार।।

    सुकमोती चौहान रुचि
    बिछिया,महासमुन्द,छ.ग.

  • शानदार पार्टी

    शानदार पार्टी

    चल रही थी खूब,
    अमीर दिलदार लोगों की पार्टी ,
    जहां शामिल होने के लिए ,
    किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं ,
    और ना ही आवश्यकता है,
    निश्चित राशि की।
    बस एक मुस्कान के साथ कह दो ,
    मुझे भी शामिल करोगे यार।
    मां ने बस दस रुपए दिए हैं ,
    एक साथ आवाज आई ,
    “आ जाओ!”
    पैसे की भी जरूरत नहीं ,
    पूरी तैयारी है ,
    देखो कुरकुरे चिप्स बिस्किट,
    पानी के छोटे-छोटे पाउच ,
    जरूरत के सारे सामान
    जो किसी शानदार पार्टी में रहती है।
    उससे भी कहीं अधिक,
    यहां था प्यार,
    जहां कोई ऊंच- नीच,न भेदभाव।
    उनकी पार्टी देख
    मेरा दिल
    गदगद हो उठा,
    तैर गई ,
    होठों पर एक मुस्कुराहट।
    शामिल होने की इच्छा भी थी,
    शानदार पार्टी में ।
    शायद पर मै उन ,
    बच्चों सी अमीर नही,
    मै उसमें शामिल होने के योग्य न थी।

            जागृति मिश्रा रानी
    कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद