चक्रव्यूह में फंसी बेटी
(1)
बर्फीली सर्दी में नवजात बेटी को,
जो छोड़ देते झाड़ियों में निराधार।
वे बेटी को अभिशाप समझते,
ऐसे पत्थर दिलों को धिक्कार।
(2)
जो कोख में ही कत्ल करके भ्रूण,
मोटी कमाई का कर रहे व्यापार।
निर्दयी माता-पिता फोड़े की तरह,
गर्भपात करवाकर बन रहे खूंखार।
(3)
सृजन की देवी के प्रति मेरे स्नेहभाव,
घर में खुशहाली सी छाई है।
इक नन्ही सी सुकोमल गुड़िया,
नवकली मेरे सूने घर में आई है।
(4)
इस नन्ही बिटिया को शिक्षित करके,
आई.ए.एस. अधिकारी इसे बनाऊंगा।
अगणित कष्ट उठा करके भी मैं,
इसका उज्ज्वल भविष्य चमकाऊँगा।
(5)
सबको मिष्ठान खिलाने के प्रीत्यर्थ,
आनन्द, हर्षोल्लास का दिन आया है।
यह बिटिया हमारी संस्कृति है,
प्रकृति की अमूल्य धरोहर माया है।
(6)
आज वात्सल्य भाव से सरोबार,
मेरा दिल गदगद हो आया है।
मेरी बेटी ने वरीयता सूची में,
स्व सर्वप्रथम स्थान बनाया है।
(7)
पूरे जनपद में सर्वाधिक अंक मिले,
खुशी में वाद्ययंत्र, ढोल बजाऊंगा।
स्नेहीजनों को सादर आमंत्रित कर,
खीर,जलेबी,बर्फी खूब खिलाऊंगा।
(8)
चारो ओर साँस्कृतिक प्रदूषण फैला,
बेटी मेरी बात स्वीकार करो।
संस्कारित जीवन,चारित्रिक शिक्षा,
नैतिक अभ्युदय सद्व्यवहार करो।
(9)
सह शिक्षा का वातावरण भयावह,
फूँक-फूँक करके पग धरना।
अच्छी संगति,संयमित जीवन,
उच्चादर्शों का तुम अनुशीलन करना।
(10)
पाश्चात्य संस्कृति का रंग चढ़ा,
उच्छृंखल विष्याकर्षण प्रादुर्भाव हुआ।
अनंग तरंग अनुषंग हो गया,
दैनिकचर्या में पतन प्रवाह हुआ।
(11)
कब घर से आत्मजा गायब हुई,
दो दिवस हो गए गए हुए।
बिन आज्ञा घर से नही जाती थी,
आज कहाँ गई किसी को बिना कहे।
(12)
पुलिस से मुझे दुःखद खबर मिली,
बेटी की आंचलिक गाँव मे लाश मिली।
अनुमानित अठारह वर्ष उम्र उसकी,
जला चेहरा रुकी हुई सी साँस मिली।
(13)
रोता हुआ मैं गया वहाँ पर,
वही हुआ जिसका मुझे डर था।
पड़ी थी प्यारी बुलबुल क्षत-विक्षत,
दरिंदो ने नोंच लिया उसका पर था।
(14)
सारे गाँव मे भय व्याप्त हुआ,
कई नेता लोग थे आये हुए।
मीडियाकर्मी वहाँ सक्रिय हो गए,
दूरदर्शन पर है छाये हुए।
(15)
झूठे आश्वासन वहाँ मिले हमे,
पुलिस सक्रियता से पकड़े गए यमदूत।
सामूहिक दुष्कर्म में पकड़ा गया,
प्रसिध्द नेताजी का उदण्ड सपूत।
(16)
मीडिया पत्रकार सब शांत हुए,
दो दिन में हो गई जमानत।
न्यूज छापना बन्द कर दिया,
कुकर्मियों ने छोड़ी नहीं अपनी लत।
(17)
बहुत किया आंदोलन जनता ने,
पर षड्यंत्र का विस्तार मिला।
कतिपय दुराचारियों का भेद खुला,
यौनाचार में आजीवन कारावास मिला।
(18)
नारी अस्मिता फँसी चक्रव्यूह में,
यहाँ काले कोटो का दरबार हुआ।
बेटी बाद कलयुगी पिता का,
सर्व जीवन नरकदर्द दुश्वार हुआ।
(19)
धरती समा जाए रसातल मे,
मानवता अब हो गई शर्मसार।
अबला को सबला बनना होगा,
प्रज्ज्वलित अग्नि चेतना या अंगार।
©कवि कृष्ण सैनी ,विराटनगर(जयपुर)