पिता पर दोहे

पिता क्षत्र संतान के, हैं अनाथ पितुहीन।
बिखरे घर संसार वह,दुख झेले हो दीन।।
कवच पिता होते सदा,रक्षित हों संतान।
होती हैं पर बेटियाँ, सदा जनक की आन।।
पिता रीढ़ घर द्वार के,पोषित घर के लोग।
करें कमाई तो बनें,घर में छप्पन भोग।।
पिता ध्वजा परिवार के, चले पिता का नाम।
मुखिया हैं करते वही , खेती के सब काम।।
माता हो ममतामयी,पितु हों पालनहार।
आज्ञाकारी सुत सुता,सुखी वही घर द्वार।।
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सुश्री गीता उपाध्याय रायगढ़ छत्तीसगढ़