23 मार्च बलिदान दिवस पर कविता

23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। कम उम्र में इन वीरों ने देश के आजादी की लड़ाई लड़ी और अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी के साथ भारतीयों के लिए भगत सिंह, शिवराम राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं। इस लिए 23 मार्च को बलिदान दिवस मनाया जाता है .

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे

प्रेम धवन

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

फूल क्या चीज़ है तेरे क़दमों पे हम

भेंट अपनी सरों की चढ़ा जायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

सह चुके हैं सितम हम बहुत गैर के

अब करेंगे हर एक वार का सामना

झुक सकेगा न अब सरफ़रोशी का सर

चाहे हो खूनी तलवार का सामना

बाँध कर सर पर क़फन और हँसते हुए

मौत को हम गले से लगा जायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे

कोई पंजाब से कोई महाराष्ट्र से

कोई यू.पी. से है कोई बंगाल से

तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम

फूल हर रंग के आज हर डाल से नाम

कुछ भी सही पर लगन एक है।

जोत से जोत दिल की जला जायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे ।

हम रहें न रहें पर कोई गम नहीं

तेरी राहों को रौशन करा जायेंगे।

ख़ाक में मिल गई जिन्दगी गर तो क्या

माँग तेरी सितारों से भर जायेंगे।

रंग अपने लहू का तुझे देके हम

तेरे गुलशन की रौनक़ बढ़ा जायेंगे ।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

हम वो आवाज़ हैं तो तेरे नाम पे

निकले मैदान में हैं मिट्टी को चूम के

दे के आवाज़ देखो इसी चाह में

सूलियों पर भी चढ़ जायेंगे झूम के

शम्आ जलती रहे तेरी हर दौड़ में

तेरे परवाने खुद को मिटा जायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

तेरे जानिब उठी गर कोई भी नज़र

उस नज़र को झुका करके दम लेंगे हम

तेरी धरती पर है जो क़दम गैर का

उस क़दम की निशाँ तक मिटा जायेंगे।

ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे ।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

हँस के रुख़सत करो हमको ऐ साथियों

पूरी करने हम अपनी क़सम चल दिये

राखी बाँधी थी बहना ने जिस हाथ में

पहनकर हथकड़ी हमको रुखसत करो

हम न देखेंगे कल की बहारें तो क्या

तुझको हम तो बहारें दिखा जायेंगे।

ऐ वतन ए वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

तू न रोना, तू है भगत सिंह की माँ

मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं

घोड़ी चढ़के तो लाते हैं दुल्हन सभी

हँस के हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं

इश्क़ आज़ादी ने अश्कों से है किया

देख लेना हम उसे ब्याह कर लायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

जब शहीदों की अर्थी उठें धूम से

देश वालों तुम आँसू बहाना नहीं

पर मनाना जब आज़ाद भारत का दिन

उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं

लौट कर आ सकें न जमाँ में तो क्या

याद बनकर दिलों में तो आ जायेंगे।

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम

तेरी राहों में जाँ तक लुटा जायेंगे।

निछावर कर दें हम सर्वस्व

● जयशंकर प्रसाद

हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दें उपहार ।

उषा ने हँस अभिनन्दन किया और पहनाया हीरक हार ।

जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक ।

व्योम तम-पुंज हुआ तब नष्ट अखिल संसृति हो उठी अशोक ।

विमल वाणी ने वीणा ली कमल-कोमल कर में सप्रीत ।

सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।

बचा कर बीज-रूप से सृष्टि नाव पर झेल प्रलय का शीत।

अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण पथ में हम बढ़े अभीत।

सुना है दधीचि का यह त्याग, हमारी जातीयता विकास ।

पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरे इतिहास ।

सिंधु-सा विस्तृत और अथाह एक निर्वासित का उत्साह ।

दे रही अभी दिखाई भग्न, मन रत्नाकर में वह राह ।

धर्म का ले लेकर जो नाम हुआ करती बलि, कर दी बंद ।

हमी ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।

विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम ।

भिक्षु होकर रहते सम्प्रट्, दया दिखलाते घर-घर घूम ।

यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि ।

मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न शील की सिंहल को भी सृष्टि ।

किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं ।

हमरी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आये थे नहीं।

जातियों का उत्थान-पतन आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर ।

खड़े देखा झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर ।

चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा सम्पन्न ।

हृदय के गौरव में था, गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव ।

वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेव ।

वही है रक्त, वही है देश, वही, साहस है, वैसा ज्ञान ।

वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य्य-संतान ।

जिये तो सदा उसी के लिए यही अभिमान रहें यह वर्ष ।

निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारत वर्ष ।

बलिदान करो

कान्त विद्रोही

सुनकर माँ की करुण पुकार

अपने गौरव का ध्यान करो।

इस अस्थि कलश पर कर विचार

अमरत्व हेतु बलिदान करो ॥

यह मृत्यु नहीं यह आहुति है

यह हवन कुण्ड है, चिता नहीं।

जो इस पर जलकर हुई भस्म

उसको मत कहना मृता कहीं ॥


है शपथ तुम्हें भारत भू की

इस नारी पर अभिमान करो।

अमरत्व हेतु बलिदान करो ॥

इस जाति-पाति के भेद भाव

की गहराती खाई पाटो ।

मत लहू बहाओ मन्दिर में

गुरुद्वारों का कुछ दुख बाँटो ॥


खालिस्तानी इतिहास मिटा

निज करनी का सम्मान करो।

अमरत्व हेतु बलिदान करो ।

जग-जग कर जग में नाम करो

कुछ मातृभूमि के काम करो ।

जीवन का अर्थ समझ प्यारे

अब और न तुम आराम करो ॥

ओ बहादुरों आगे बढ़कर

भारत का भी उत्थान करो ।

अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

आर्यावर्त की व्रत गरिमा

का भाव फूँक दो प्राणों में।

गूँथों कुछ पुष्प अहिंसा के

अब संगीनों की शानों में ॥

इंदिरा बनो बनकर अशोक

जग में ऊँचा स्थान करो।

अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

लेखकों और कवियों सुन लो

शृंगार विरह पर बिको नहीं ।

हो पाये तो युग गीत लिखो

इस भक्ति मात्र पर टिको नही ॥

‘विद्रोही’ शान्ति भाव लावो

माँ गीता का गुण गान करो।

अमरत्व हेतु बलिदान करो ।।

अंगार है साथी

● रामधारी सिंह ‘दिनकर’

उसे भी देख जो भीतर भरा अंगार है साथी

शिखर पर तू न तेरी राह बाकी दाहिने बाएं,

खड़ी आगे दरी यह मौत-सी विकराल मुंह बाएं,

कदम पीछे हटाया तो अभी ईमान जाता है,

उछल जा, कूद जा, पल में दरी यह पार है साथी।

न रुकना है तुझे, झण्डा उड़ा केवल पहाड़ों पर,

विजय पानी है तुझको चांद-सूरज पर, सितारों पर,

वधू रहती जहां नरवीर की, तलवार वालों की,

जमीं वह इस जरा से आसमां के पार है साथी।

भुजाओं पर मही का भार, फूलों-सा उठाएं जा,

कंपाए जा गगन को, इन्द्र का आसन हिलाएं जा

जहां में एक ही है रोशनी, वह नाम की तेरे,

जमीं जो एक तेरी आग का आधार है साथी।

जिसने भारत को किया अमय

● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

जिसने भारत को किया अभय ।

बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

विद्या जननी थे किशन पिता, सरदार अजीत, स्वर्ण चाचा ।

भारत आजाद कराने को, पढ़ रहे सभी आज़ाद ऋचा ।

सत्ताइस सितंबर अंबर में, तारागण चंद्र हिलोल करें।

लायलपुर बंगा थे पुलकित, नर छौना कुदक किलोल करें।

भोला- छोरा, रंग था गोरा, अँखियाँ चंचल अरु भाल विमल ।

दंतावलि दुग्ध, सबल बाहु, तन श्वेत कमल मन गंगाजल।

मकरंद लिये अलि दौड़ पड़े, स्वच्छंद समीर की गंध लुटी ।

हो गई सुहागिन दशों-दिशा, घनघोर तिमिर की साँस घुटी।

जन-जन, छन-छन परिजन, कनकन, तन-मन था आज पुकार उठा।

‘मन मंदिर जल गए दीप मधुर, भारती अहम् ललकार उठा।

थी धन्य धरा बालक बचपन, पिस्तौल बम्ब की फसल उगी।

बेड़ी कॉंटू भारत माँ की रणसिंह भुजा फड़फड़ा उठी।

शादी न करूँ, करूँ मौत वरण, कर लिया था मस्ताने ने तय ।।

जिसने भारत को किया अभय ।

बोलो श्री भगत सिंह की जय।

कर सावधान बाँटे परचे, जंजीर गुलामी की तोड़ो।

बहरों को सुना रहे दहाड़, फिरंगियों, भारत छोड़ो।

मियाँवाली जेल कर दई फेल, लाहौर सेंट्रल भेज दिया।

करने को भेंट, घिर गया गेट, गोरों ने दमन कर तेज दिया।

क्या कर विधाता, चला मुकदमा, दिल में था सबके संशय ।

जिसने भारत को किया अभय ।

बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

आँखों में सृजन, भृकुटि में प्रलय, तब इन्कलाब था जिंदाबाद |

गोरों से कहा बाँधो बिस्तर, होगा मेरा भारत आजाद ।

सरकार नहीं सर कर पाई, ‘सर-सर’ कहकर ना झुकाया सर।

“सर-सर’ कर झूले तीनों सर, झुक गए शर्म से दुश्मन के सर ।

रुक गया पवन, सहम गया गगन, सतलज की लहरें शांत हुईं।

है धन्य मात की कोख, धन्य, धन्या है वह पंजाब मही ।

सरफरोशी की तमन्ना, जिनकी आज गूँजती लय ।

जिसने भारत को किया अभय ।

बोलो श्री भगत सिंह की जय ॥

ऊधमसिंह से बलिदानी को

o आचार्य मायाराम ‘पतंग’


ऊधम सिंह से बलिदानी को आओ मन से नमन करें।

देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

भारत माता की सेवा में तिल-तिल जीवन-दान दिया

आजादी के लिए जिन्होंने निसंकोच बलिदान किया।

लेकर उनका नाम साथियों अपना जीवन सफल करें।

देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

जनरल डायर ने फायर कर हिंदुस्तान भून दिया ।

जलियाँवाला बाग नाग ने यहाँ हजारों खून किए।

ठान लिया ऊधम सिंह ने हम खून के बदले खून करें।

देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें।

लंदन जाकर उस पापी को मौत के घाट उतार दिया।

जान हथेली पर रखकर ऊधम ने उस पर वार किया।

देशद्रोहियों का सब मिलकर आज दुबारा दमन करें।

देशभक्ति के बीज साथियों मन खेतों में वपन करें ।।

ऊधम सिंह के दृढ चरित्र से देशप्रेम की शिक्षा लें।

बलिदानों के भगवा रंग में स्वार्थ त्याग की भिक्षा लें ।

सारे भारतवासी मिलकर मातृभूमि को नमन करें।

देशभक्ति के बीज…

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