23 जुलाई चन्द्रशेखर आज़ाद जयन्ती पर कविता

23 जुलाई 1906 को मध्यप्रदेश के झाबुआ में जन्में चंद्रशेखर आजाद ने महज 24 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहूती दे दी. चंद्रशेखर आजाद का असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था.

चंद्रशेखर आज़ाद जयंती

● डॉ. ब्रजपाल सिंह संत

ब्रह्मचारी चारित्रिक बल, सचमुच ही राष्ट्र विनायक थे ।

रह रहे आचमन लपटों का, जन-जन भारत जननायक थे।

जो कल तक कंधा मिला रहे, कायर पद-लोलुप स्वार्थी बने ।

कोई हाँफ रहा, कोई काँप रहा, लोभी होकर पद-रथी बने ।

छुपते-छुपते कुछ छाप रहे, बिखरे युवकों को जोड़ रहे।

धिक्कार रहे, हुंकार रहे, गोरों की पूँछ मरोड़ रहे ।

भारत प्यारा देश हमारा, भारत माता जिंदाबाद ।

भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ।।

अल्फ्रेड पार्क बन गया गवाह, सुखदेव, राज बैठे आजाद ।

नॉट बाबर ने शेरे बब्बर पर, शॉट लगाया कर आघात ।

वीर तान पिस्तौल मार गोली, भी अरि की बाँहें लटकाई।

कायर बाबर भूला फायर, छुप गया झाड़ी में अन्यायी ।

गोली दूसरी से बाबर की गाड़ी का इंजिन चूर किया।

भगकर जाएगा कैसे ? यों दुश्मन को मजबूर किया ।

इंस्पेक्टर विश्वेश्वर, झाड़ी से छिपा शेर को घूर रहा।

साँय-साँय कर गोली धाँय, जबड़ा था चकनाचूर किया।

उस दीवान का ठीक निशाना अंग्रेजों को रहेगा याद ।

भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ।

मूँछें शमशीर समान बनी, दुश्मन की छेद रही छाती ।

माथा भारत का शुभ्र मुकुट, लिखता भारत माँ को पाती।

भौंहें क्या तीर कमान बनीं, बाँकी चितवन भैरव गाती ।

मुखमंडल गीता बाँच रहा, दृष्टि से सृष्टि थर्राती ।

दिन में थे तारे दिखा दिए, बंदूकों की नलकी ढलकी ।

अफसर गए भीग पसीने से, खिड़कियाँ बंद हुई अक्ल की।

हँसते थे तार जनेऊ के, मुसकाती धोती मलमल की।

जिंदा ना किसी को छोडूंगा, खा रहे कसम गंगाजल की ।

पेड़ की ओर चंद्रशेखर, थे निभा रहे माँ की मरजाद ।

भारत माँ की आँख का तारा, प्यारा चंद्रशेखर आजाद ॥

जय जय जय ! बढ़ो अभय

सोहनलाल द्विवेदी

फूंको शंख, ध्वजाएं फहरें

चले कोटि सेना, घन घहरें।

मचे प्रलय !

बढ़ो अभय !

जय जय जय !

जननी के योद्धा सेनानी,

अमर तुम्हारी है कुर्बानी,

हे प्रणमय !

हे व्रणमय !

बढ़ो अभय!

नित पददलित प्रजा के क्रंदन

अब न सहे जाते हैं बंधन !

करुणामय !

बढ़ो अभय!

जय जय जय !

बलि पर बलि ले चलो निरंतर

हो भारत में आज युगान्तर,

हे बलमय !

हे बलिमय !

बढ़ो अभय!

तोपें फटें, फटें भू-अंबर

धरणी धंसें, धंसें धरणीधर,

मृत्युञ्जय !

बढ़ो अभय!

जय जय जय !

अमर सत्य के आगे थरथर,

कंपें विश्व, कांपें विश्वम्भर,

हे दुर्जय !

बढ़ो अभय !

जय जय जय !

बढ़ो प्रभंजन आंधी बनकर,

चढ़ो दुर्ग पर गांधी बनकर,

वीर हृदय !

धीर हृदय !

जय जय जय !

राजतंत्र के इस खंडहर पर,

प्रजातंत्र के उठे नवशिखर,

जनगण जय !

जनमत जय !

बढ़ो अभय!

जगें मातृ-मन्दिर के ऊपर,

स्वतन्त्रता के दीपक सुन्दर,

मंगलमय !

बढ़ो अभय!

जय जय जय !

कोटि-कोटि नित नत कर माथा,

जनगण गावें गौरव गाथा,

तुम अक्षय !

अमर अजय !

जय जय जय !

जननी के मन-प्राण हृदय !

जय जय जय !

बढ़ो अभय!

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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