प्राकृतिक आपदा पर कविता

प्राकृतिक आपदा पर कविता

नदी

कहीं कहीं सूखा कहीं,
बाढ़ की विभीषिका है।
कहीं पर जंगलों में ,
आग है पसरती।

कहीं ज्वालामुखी कहीं,
फटते है बादल तो।
कहीं पे भूकम्पनों से,
शिला है दरकती।

तेज धूप कहीं कहीँ,
लोग भूखे मरे कहीं।
पेड़ों की कमी से आँधी,
घर है उजारती।

कहीं ठिठुरन बस,
बेहताशा लोग मरे।
कहीं तीव्र धूप बस,
बरफ़ पिघलती।

कहीं पानी बिन देखो,
पड़ता अकाल भाई।
लहरें समुद्र कहीं,
सुनामी उफनती।

जाने ऐसी बुद्धि काहे,
लोग तो लगा रहे हैं।
जिसके कारन अब,
आपदा पसरती।

बुद्धिमान होना भी तो,
जरूरी है सबको ही।
कुबुद्धि विकास की है,
चुहिया कतरती।

यदि हमें अपनी ब,
चानी आगे पीढ़ियाँ तो।
बुद्धिमता बस तुम,
बचा लो यह धरती।

★★★★★★★★★★★
अशोक शर्मा,कुशीनगर,उ.प्र.
★★★★★★★★★★★

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

Leave a Reply