सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी (विश्व नर्स दिवस पर कविता)- नमिता कश्यप

इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्सेस (नर्स लोगन के अंतर्राष्ट्रीय समीति) एह दिवस के 1965 से हर साल मनावेले। जनवरी 1974, से एकरा के मनावे के दिन 12 मई के चुनल गइल जवन की फ्लोरेंस नाइटेंगल के जन्म दिवस हवे। फ्लोरेंस नाइटेंगल के आधुनिक नर्सिंग के संस्थापक मानल जाला।

सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी

एक दिन पूछा था किसी ने..
उन सफ़ेद कपड़ों में लिपटी हुई देवी से,
“सबकी सेवा करती हुई तुम कभी थकती नही,
ना ही आता है हिचकिचाहट का कोई भाव
तुम्हारे मुख मंडल पर…
कैसे हो इस स्वार्थ भरे संसार में इतनी निःस्वार्थ तुम।”
सफ़ेद लिबास वाली वो देवी…रुकी…मुस्कुराई….
फिर अपना काम करते हुए बोली,
“किसने कहा तुमसे कि निःस्वार्थ हूँ मैं?
हर इंसान की तरह मेरे भी स्वार्थ है,
अपना काम करते हुए ही मिलती हैं वो चीजें मुझे,
जो बना देतीं हैं मुझे सबसे अमीर।
बेबसों को संभालकर मुझे सब्र मिलता है,
घाव पर उनके मरहम लगाकर….
अपने घाव भरते प्रतीत होते हैं मुझे,
लाचारों को पहुँचाकर उनकी सही स्थिति में
मैं पाती हूँ उनकी ढेरो दुआयें…
और मुस्कुराते हुए देखकर उन्हें उनके अपनों के साथ
मिलता है गहरा सुकून मुझे,
तो कहो! कहाँ निःस्वार्थ हूँ मैं?”
प्रश्न पूछने वाला खड़ा रहा….अवाक….
जब होश आया तो बस सर झुका दिया उसने
उन सफ़ेद कपड़ों में लिपटी देवी के सामने….।


– नमिता कश्यप

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