Category: हिंदी साहित्यिक कक्षा

  • श्रृंगार छंद [सम मात्रिक]कैसे लिखें

    श्रृंगार छंद (उपजाति सहित) [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा होती हैं, आदि में क्रमागत त्रिकल-द्विकल (3+2) और अंत में क्रमागत द्विकल-त्रिकल (2+3) आते हैं, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    भागना लिख मनुजा के भाग्य,
    भागना क्या होता वैराग्य l
    दास तुलसी हों चाहे बुद्ध,
    आचरण है यह न्याय विरुद्ध l
    – ओम नीरव

  • पदपादाकुलक/राधेश्यामी/मत्तसवैया छंद [सम मात्रिक]

    पदपादाकुलक/राधेश्यामी/मत्तसवैया छंद [सम मात्रिक] विधान – पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल (21 या 12 या 111) वर्जित होता है, पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता है तो उसके बाद एक और त्रिकल आता है , कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त होते है l

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    राधेश्यामी या मत्त सवैया छंद के एक चरण में 32 मात्रा होती है और यह पदपादाकुलक का दो गुना होता है l अन्य लक्षण पूर्ववत हैं l

    पदपादाकुलक का उदाहरण :

    कविता में हो यदि भाव नहीं,
    पढने में आता चाव नहीं l
    हो शिल्प भाव का सम्मेलन,
    तब काव्य बनेगा मनभावन l
    – ओम नीरव

    राधेश्यामी/मत्तसवैया का उदाहरण :

    दो चरणों के जिस आसन पर, मैं शैशव में शी करता था,
    शी-शी के स्वर से संचालित, दो दृग मैं निरखा करता था l
    करता विलम्ब देतीं झिड़की, ले-ले मेरे शैशवी नाम,
    तेरे उस युग-पद-आसन को, मन बार-बार करता प्रणाम l
    – ओम नीरव


    विशेष : इस छंद की मापनी को भी इसप्रकार लिखा जाता है –
    22 22 22 22
    गागा गागा गागा गागा
    फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन
    राधेश्यामी या मत्तसवैया छंद में यही मापनी दो गुनी समझी जा सकती है l
    किन्तु केवल गुरु स्वरों से बनने वाली इसप्रकार की मापनी द्वारा एक से अधिक लय बन सकती है तथा इसमें स्वरक(रुक्न) 121 को 22 मानना पड़ता है जो मापनी की मूल अवधारणा के विरुद्ध है इसलिए यह मापनी मान्य नहीं है , यह मनगढ़ंत मापनी है l फलतः यह छंद मापनीमुक्त ही मानना उचित है l

  • कुण्डल/उड़ियाना छंद [सम मात्रिक]

    कुण्डल/उड़ियाना छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 12,10 पर यति होती है , यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है औए अंत में 22 आता है l यदि अंत में एक ही गुरु 2 या गा आता है तो उसे उड़ियाना छंद कहते हैं l कुल चार चरण होते हैं, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    कुण्डल का उदाहरण :
    गहते जो अम्ब पाद, शब्द के पुजारी,
    रचते हैं चारु छंद, रसमय सुखकारी l
    देती है माँ प्रसाद, मुक्त हस्त ऐसा,
    तुलसी रसखान सूर, पाये हैं जैसा l
    – ओम नीरव

    उड़ियाना का उदाहरण :
    ठुमकि चालत रामचंद्र, बाजत पैंजनियाँ,
    धाय मातु गोद लेत, दशरथ की रनियाँ l
    तन-मन-धन वारि मंजु, बोलति बचनियाँ,
    कमल बदन बोल मधुर, मंद सी’ हँसनियाँ l
    – तुलसी दास

  • राधिका छंद [सम मात्रिक] कैसे लिखें

    राधिका छंद [सम मात्रिक] विधान – इसके प्रत्येक चरण में 22 मात्रा होती हैं, 13,9 पर यति होती है, यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है, कुल चार चरण होते हैं , क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं l

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    उदाहरण :
    मन में रहता है काम , राम वाणी में,
    है भारी मायाजाल, सभी प्राणी में l
    लम्पट कपटी वाचाल, पा रहे आदर,
    पुजता अधर्म है ओढ़, धर्म की चादर l

    – ओम नीरव

  • चौपाई आधारित छंद कौन कौन से है

    चौपाई आधारित छंद :
    16 मात्रा के चौपाई छंद में कुछ मात्राएँ घटा-बढ़ाकर अनेक छंद बनते है l ऐसे चौपाई आधारित छंदों का चौपाई छंद से आतंरिक सम्बन्ध यहाँ पर दिया जा रहा है l इससे इन छंदों को समझने और स्मरण रखने में बहुत सुविधा रहेगी l

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    *चौपाई – 1 = 15 मात्रा का चौपई छंद, अंत 21
    *चौपाई + 6 = 22 मात्रा का रास छंद, अंत 112
    *चौपाई + 7 = 23 मात्रा का निश्चल छंद, अंत 21
    *चौपाई + 9 = 25 मात्रा का गगनांगना छंद, अंत 212 X
    *चौपाई + 10 = 26 मात्रा का शंकर छंद, अंत 21
    *चौपाई + 10 = 26 मात्रा का विष्णुपद छंद, अंत 2
    *चौपाई + 11 = 27 मात्रा का सरसी/कबीर छंद, अंत 21
    *चौपाई + 12 = 28 मात्रा का सार छंद, अंत 22
    *चौपाई + 14 = 30 मात्रा का ताटंक छंद, अंत 222
    *चौपाई + 14 = 30 मात्रा का कुकुभ छंद, अंत 22
    *चौपाई + 14 = 30 मात्रा का लावणी छंद, अंत स्वैच्छिक
    *चौपाई + 15 = 31 मात्रा का बीर/आल्ह छंद, अंत 21