सेदोका कैसे लिखें (How to write SEDOKA)
सेदोका रचना विधान
सेदोका 05/07/07 – 05/07/07 वर्णक्रम की षट्पदी – छः चरणीय एक प्राचीन जापानी काव्य विधा है । इसमें कुल 38 वर्ण होते हैं , व्यतिक्रम स्वीकार नहीं है । इस काव्य के कथ्य कवि की संवेदना से जुड़ कर भाव प्रवलता के साथ प्रस्तुत होने वाली यह एक प्रसिद्ध काव्य विधा है, जिसके आगमन से हिन्दी काव्य साहित्य की श्रीवृद्धि हुई है । उदाहरण स्वरूप मेरी एक सेदोका रचना यहाँ प्रस्तुत है, अवश्य देखें ——-
मरु प्रदेश
मेघों का आगमन
है, जीवन संदेश
सूखे तरु का
तन मन हर्षित
अलौकिक ये वेश ।
टीप : वर्णक्रम – 05,07,07 – 05,07,07 । निर्दिष्ट भाव से आश्रित प्रत्येक पंक्तियाँ “हाइकु” की तरह स्वतंत्र होना इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है । दो कतौते से एक सेदोका पूर्ण होता है । आपके श्रेष्ठ सेदोका कविता बहार पर आमंत्रित हैं ।
और पढ़ें : मनीभाई नवरत्न के सेदोका
प्रदीप कुमार दाश दीपक के सेदोका
01)
कोमल फूल
सह जाते हैं सब
व्यक्तित्व अनुकूल
वरना कभी
मसल कर देखो
लहू निकालें शूल ।
02)
कंटक पथ
सफर पथरीला
साथी संग जीवन
कर लो साझा
होगा लक्ष्य आसान
मिलेगी सफलता ।
03)
मरु प्रदेश
मेघों का आगमन
है, जीवन संदेश
सूखे तरु का
तन मन हर्षित
अलौकिक ये वेश ।
04)
बस गईं वे —-
खयालों में जब से
भले वो साथ नहीं
पर हम तो
उनके साथ रहे
कभी अकेले नहीं ।
05)
यादों के साये
हवा के संग संग
मानो खुशबू हैं ये
भीतर आते
बंद कर लो चाहे
खिड़की दरवाजे ।
06)
क्रय-विक्रय
जीवन के सफर
कुछ नहीं हासिल
केवल व्यय
जिम्मेदारी के हाट
गिरवी पड़े ठाठ ।
07)
बड़े अजीब
खण्डहर निर्जीव
देखने आते लोग
चले जाते हैं
यही अकेलापन
है उसका नसीब ।
{08}
पेड़ों का दुःख
कुल्हाड़ी की आवाज
सुन कर मनुष्य
रहता चुप
धूप से तड़पती
बूढ़ी पृथ्वी है मूक ।
~~●~~
{09}
मौसमी मार
पेड़ हुए निर्वस्त्र
पत्तियाँ समा गईं
काल के गाल
फूटो नई कोंपलें
क्यों करो इंतजार ?
~~●~~
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
पद्ममुख पंडा स्वार्थी के सेदोका
प्रचण्ड गर्मी
सहता गिरिराज
पहन हिमताज
रक्षक वह
है हमारे देश का
हमको तो है नाज़
वृक्षारोपण
एक अभिवादन
जो बना देता वन
पर्यावरण
सुरक्षित रखने
खुश हो जाता मन
नाप सकते
मन की गहराई
काश संभव होता
समुद्र में भी
हो फसल उगाई
ग़रीबी की विदाई
सत्यवादी जो
परेशान रहता
अग्नि परीक्षा देता
पूरी दुनिया
उसे हंसी उड़ाती
वो चूं नहीं करता
अंधा आदमी
मन्दिर चला जाता
खुद को समझाता
उसे देखने
जो दिखता ही नहीं
आंखों के होते हुए
उसके घर
देर भी है सर्वदा
अंधेर भी है सदा
न्याय से परे
मिलता परिणाम
खास हो या कि आम
जो करते हैं
अथक परिश्रम
क्या थकते नहीं हैं?
सच तो यह
कि बिना थके कभी
काम ही नहीं होता!!
अनवरत
जीवन रथ चले
सुबह सांझ ढले
मज़ाक नहीं
कि परिवार पले
बिना आह निकले
मेरी कुटिया
मुझे आराम देती
मेरी खबर लेती
बिजली नहीं
तो भी प्रकाश देती
ठंडक बरसाती
सत्यवादी जो
परेशान रहता
अग्नि परीक्षा देता
पूरी दुनिया
उसे हंसी उड़ाती
वो चूं नहीं करता
अंधा आदमी
मन्दिर चला जाता
खुद को समझाता
उसे देखने
जो दिखता ही नहीं
आंखों के होते हुए
उसके घर
देर भी है सर्वदा
अंधेर भी है सदा
न्याय से परे
मिलता परिणाम
खास हो या कि आम
जो करते हैं
अथक परिश्रम
क्या थकते नहीं हैं?
सच तो यह
कि बिना थके कभी
काम ही नहीं होता!!
अनवरत
जीवन रथ चले
सुबह सांझ ढले
मज़ाक नहीं
कि परिवार पले
बिना आह निकले
मेरी कुटिया
मुझे आराम देती
मेरी खबर लेती
बिजली नहीं
तो भी प्रकाश देती
ठंडक बरसाती
पद्म मुख पंडा स्वार्थी
धनेश्वरी देवांगन धरा के सेदोका
खिले कलियाँ
नहा शबनम में
फूलों के मौसम में
अलि बहके
बसंती बयार है
अनोखा त्यौहार है
**
कली मुस्काये
कैसी है आवारगी?
छायी है दीवानगी
दिल दहके
उमंग अपार है
प्यारा -सा संसार है
**
समा है हसीं
मौसम है फूलों का
आनंद है झूलों का
गुल महके
बागों में बहार है
सोलह श्रृंगार है
**
शाम मस्तानी
रूत है जवां- जवां
गुल करे है बयां
पिक चहके
कली में निखार है
फिज़ा में खुमार है
धनेश्वरी देवांगन ” धरा”
क्रांति की सेदोका रचना
जमाना झूठा
बना साधु इंसान
बेच रहा ईमान
पैसों के लिए
बन रहा हैवान
होता है बदनाम।।
घिसे किस्मत
चप्पल की तरह
बदलता इंसान
क्षण भर में
बन जाता हैवान
पैसों के लालच में।।
मां की मूरत
लगे खूबसूरत
चंद्रमा की तरह
रौशन करें
बच्चों के जीवन से
छंटता अंधियारा।।
बने अमीर
बेचकर जमीर
कमाता है रुपया
आज इंसान
चैन के तलाश में
खो बैठा है खुशियां।।
बगैर वस्त्र
सड़क के किनारे
ठिठुर रहा बच्चा
कठिन घड़ी
कोई न देता साथ
जरूरत के वक्त।।
सड़क पर
पेपरों से लिपटा
अबोध बच्चा मिला
सूरत प्यारा
किस्मत का है मारा
है कोई बेसहारा।।
होते सबेरे
खगों का कलरव
लगता बड़ा न्यारा
नन्हा परिंदा
भर रहा उड़ान
गगन की तरफ।।
क्रान्ति, सीतापुर, सरगुजा छग
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