सुबह पर कविता

सुबह-सुबह सूरज ने मुझे
आकर हिचकोला
और पुचकारते हुए बोला
उट्ठो प्यारे
सुबह हो गई है
आलस त्यागो
मुँह धो लो
मैंने करवट बदलते हुए
अंगड़ाई लेते हुए
लरजते स्वर में बोला
सूरज दादा
बड़ी देर में सोया था
थोड़ी देर और सोने दो न
मुझे आज
अपने उजास के बदले
थोड़ा-सा अंधकार दो न
सूरज दादा ने
हँसते हुए बोला
अरे पगले !
जो है नहीं मेरे पास
वह तुम्हे कैसे दूँ
सच के पास झूठ
ज्ञान के पास अज्ञान
कैसे मिलेगा..?
समय के इस म्यान में
या तो तलवार रहेगा
या नहीं रहेगा।
— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
9755852479