सुधा राठौर जी के हाइकु
छलक गया
पूरबी के हाथों से
कनक घट
★
बहने लगीं
सुनहरी रश्मियाँ
विहान-पथ
★
चुग रहे हैं
हवाओं के पखेरू
धूप की उष्मा
★
झूलने लगीं
शाख़ों के झूलों पर
स्वर्ण किरणें
★
नभ में गूँजे
पखेरुओं के स्वर
प्रभात गान
सुधा राठौर
छलक गया
पूरबी के हाथों से
कनक घट
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बहने लगीं
सुनहरी रश्मियाँ
विहान-पथ
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चुग रहे हैं
हवाओं के पखेरू
धूप की उष्मा
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झूलने लगीं
शाख़ों के झूलों पर
स्वर्ण किरणें
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नभ में गूँजे
पखेरुओं के स्वर
प्रभात गान
सुधा राठौर