सुंदर पावन धरा भारती
सुंदर पावन धरा भारती ।
आओ उतारें हम आरती ••२
नवचेतना के द्वार खोल अब
सुनें कविता सृजन की आवाज
खत्म हो हैवानियत की इन्तहां
इंसानियत का ही हो आगाज
सुंदर पावन धरा भारती ।
आओ उतारें हम आरती ••२
नतमस्तक हो हम सभी
अर्पण करें पूजा के फूल
न कोई पीड़ा, न कुंठा
मन में चुभते न कोई शूल
सुंदर पावन धरा भारती ।
आओ उतारें हम आरती ••२
मैं सब कुछ कर जाऊँगी
भारती को अर्पण अपना
भोर होने वाली है यहाँ
अब पूरा होने वाला है सपना
सुंदर पावन धरा भारती ।
आओ उतारें हम आरती ••२
अनिता मंदिलवार सपना