पहचान पर कविता
कैद न करो बस पिंजरे में
हमें नही चाहिए पूरा जहान ।
अपने को मानते हो श्रेष्ठ तो
हमें भी बनने दो नारी महान ।।
जहाँ कोई मालिक न हो
और न हो यहाँ कोई गुलाम ।
दोस्ती का रिश्ता हो बस
दोस्ती ही हो हमारी पहचान ।।
आजादी नहीं चाहिए तुमसे
बस बनी रहे मेरी भी शान ।
जहाँ कोई छोटा- बड़ा न हो
सबको मिले यहाँ मान-सम्मान ।।
साथ चलना है सदा तुम्हारे
लेकर अपने मन के अरमान ।
मेरा तो बस यही ‘सपना’ है
मिले धरती, वही खुला आसमान ।।
अनिता मंदिलवार “सपना”