पाँच दिवसीय दीपावली: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं। इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।
पाँच दिवसीय दीपावली
दोहावली–
1.
पखवाड़ा है कार्तिकी , कृष्णपक्ष गतिशील। लाई है दीपावली , दीपों के कंदील।।
2. प्रगट हुए धन्वंतरी , सागर मन्थन बाद। इक दुर्लभ संजीवनी , बाँटीं रूप प्रसाद।।
3. किया चतुर्दश कृष्ण ने , नरकासुर संहार। मुक्त हुईं कन्या सभीं , करतीं जय-जयकार।।
4. मन्थन हुआ समुद्र का ,तिथि अमावसी खास। प्रकटीं लक्ष्मी मात तब , धन की लेकर रास।।
5. बरस बिता चौदह चले , कर रावण वध राम। उल्लासित हो जल उठे, दीप अयोध्या धाम।।
6. रात अमावस की गहन , चन्दा भी उस पार। दीपमालिका की छटा , ले आयी उजियार।।
7. अति उदार बलि आचरण,धन कुपात्र के हाथ। देख विष्णु भगवन् चले , लिये योजना साथ।।
8. शुक्ल कार्तिकी प्रतिपदा, ले वामन अवतार। विष्णु कृपा, बलि से मिली, भूमि त्रिपद अनुसार।।
9. दूज कार्तिकी शुक्ल की, यम-यमुना का नेह। मिला निमंत्रण भोज का , चले बहन के गेह।।
10. तिलक और मिष्ठान्न से , कर यम का सत्कार। यमुना माँगे भ्रात हित , दीर्घ आयु उपहार।।
11. अँगनाई गोबर लिपी , पानी की बौछार। भित्तिचित्र , ऐपन कला , मोहक दीप कतार।।
दीपावली के 5 दिन पर कविता: अंतर्गत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक लगातार पांच पर्व होते हैं। इन पांच दिनों को यम पंचक कहा गया है। इन पांच दिनों में यमराज, वैद्यराज धन्वंतरि, लक्ष्मी-गणेश, हनुमान, काली और गोवर्धन पूजा का विधान है।
दीपावली के 5 दिन पर कविता
धनतेरस पर कविता
दीपावली के 5 दिन पर कविता में से एक धनतेरस पर कविता
कविता 1.
दीप जले दीवाली आई खुशियों की सौगाती। सुख दुख बाँटो मिलकर ऐसे, जैसे दीया बाती।
धनतेरस जन्म धनवंतरी, अमृत औषधी लाये। जिनकी कृपा प्रसादी मानव स्वस्थ धनी हो पाये।
औषध धन है,सुधा रोग में, मानवता के हित में। सभी निरोगी समृद्ध होवे, करें कामना चित में।
दीन हीन दुर्बल जन मन को, आओ धीर बँधाए। बिना औषधी कोई प्राणी, जीवन नहीं गँवाए।
एक दीप यदि मन से रखलें, धनतेरस मन जाए। मनो भावना शुद्ध रखें सब, ज्ञान गंध महकाए।
स्वस्थ शरीर बड़ा धन समझो, धन से भी स्वास्थ्य मिले। धन काया में रहे संतुलन, हर जन को पथ्य मिले।
बाबू लाल शर्मा, बौहरा , विज्ञ
कविता 2.
अमृत कलश के धारक,सागर मंथन से निकले। सुख समृद्धि स्वास्थ्य के,देव आर्युवेद के विरले। चार भुजा शंख चक्र,औषध अमृत कलश धारी। विष्णु के अवतार हैं देव,करें कमल पर सवारी। आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि,हैं आरोग्य के देवता। कार्तिक त्रयोदशी जन्म हुआ,कृपा करें धनदेवता। पीतल कलश शुभ संकेत,देते हैं यश वैभव भंडार। आर्युवेद की औषध खोज,किया जगत का उद्धार। धनतेरस को यम देवता की पूजा कर 13 दीये जलाएं। धन्वंतरि जी कृपा करेंगे,यश सुख समृद्धि स्वास्थ्य पाएं।
सुन्दर लाल डडसेना”मधुर”
कविता 3.
सजा धजा बाजार, चहल पहल मची भारी धनतेरस का वार,करें सब खरीद दारी। जगमग होती शाम,दीप दर दर है जलते। लिए पटाखे हाथ,सभी बच्चे खुश लगते। खुशियाँ भर लें जिंदगी,सबको है शुभकामना। रुचि अंतस का तम मिटे,जगे हृदय सद्भावना।
✍ सुकमोती चौहान “रुचि”
कविता 4.
धनतेरस पर कीजिए , धन लक्ष्मी का मान । पूजित हैं इस दिवस पर , धन्वंतरि भगवान ।। धन्वंतरि भगवान , शल्य के जनक चिकित्सक । महा वैद्य हे देव , निरोगी काया चिंतक ।। कह ननकी कवि तुच्छ , निरामय तन मन दे रस । आवाहन स्थान , पधारो घर धनतेरस ।।
~ रामनाथ साहू ” ननकी “
कविता 5.
धन की वर्षा हो सदा,हो मन में उल्लास
तन स्वथ्य हो आपका,खुशियों का हो वास
जीवन में लाये सदा,नित नव खुशी अपार धनतेरस के पर्व पर,धन की हो बौछार
सुख समृद्धि शांति मिले,फैले कारोबार रोशनी से रहे भरा,धनतेरस त्यौहार
झालर दीप प्रज्ज्वलित,रोशन हैं घर द्वार परिवार में सबके लिए,आये नए उपहार
माटी के दीपक जला,रखिये श्रम का मान
@संतोष नेमा “संतोष”
कविता 6.
धनतेरस का पुण्य दिन, जग में बड़ा अनूप। रत्न चतुर्दश थे मिले, वैभव के प्रतिरूप।।
आज दिवस धनवंतरी, लाए अमृत साथ। रोग विपद को टालते, सर पे जिसके हाथ।।
देव दनुज सागर मथे, बना वासुकी डोर। मँदराचल थामे प्रभू, कच्छप बन अति घोर।।
प्रगटी माता लक्षमी, सागर मन्थन बाद। धन दौलत की दायनी, करे भक्त नित याद।।
शीतल शशि उस में मिला, शंभु धरे वह माथ। धन्वन्तरि थे अंत में, अमिय कुम्भ ले हाथ।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
कविता 7. माँ लक्ष्मी वंदना
चाँदी जैसी चमके काया, रूप निराला सोने सा। धन की देवी माँ लक्ष्मी का, ताज चमकता हीरे सा।
जिस प्राणी पर कृपा बरसती, वैभव जीवन में पाये। तर जाते जो भजते माँ को, सुख समृद्धि घर पर आये।
पावन यह उत्सव दीपों का,करते ध्यान सदा तेरा। धनतेरस से पूजा करके, सब चाहे तेरा डेरा।
जगमग जब दीवाली आये,जीवन को चहकाती है। माँ लक्ष्मी के शुभ कदमों से, आँगन को महकाती है
तेरे साये में सुख सारे, बिन तेरे अँधियारा है। सुख-सुविधा की ठंडी छाया, लगता जीवन प्यारा है।
गोद सदा तेरी चाहें हम, वन्दन तुमको करते हैं। कृपादायिनी सुखप्रदायिनी,शुचिता रूप निरखते हैं।
भाई दूज पर कविताएँ
डॉ.सुचिता अग्रवाल”सुचिसंदीप”
नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी नाम है
नरक चतुर्दशी नाम है सुख समृद्धि का त्यौहार रूप चौदस कहते इसे सुहागने करती श्रंगार
यम का दीप जलाया जाता सद्भाव प्रेम जगाया जाता बड़े बुजुर्गों के चरण छू कर खूब आशीष पाया जाता
छोटी दिवाली का रुप होती रोशनी अनूप होती सजावट से रौनक बाजार दीपो की छटा सरुप होती
खुशियों का त्योहार है दीपों की बहार है गणेश लक्ष्मी पूजन में सज रहे घर बार है
कवि : रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू
सारथी बन कृष्ण
सारथी बन कृष्ण ने चलाया था रथ सत्यभामा ने सहत्र द्रौपदी की लाज हेतु उठाया था शस्त्र नरकासुर को प्राप्त था वर होगा किसी स्त्री के हाथों ही उसका वध माता भूदेवी का था प्रण पुत्र नरकासुर की मृत्यु के दिन मनाया जाएगा पर्व देव यम को भी पूजते आज रहे स्वस्थ एवं दीर्घायु हम सब आप सभी को मंगलमय हो नरक चतुर्दशी का यह पर्व….
नरकासुर मार श्याम जब आये
नरकासुर मार श्याम जब आये। घर घर मंगल दीप जले तब, नरकचतुर्दश ये कहलाये।।
भूप प्रागज्योतिषपुर का वह, चुरा अदिति के कुण्डल लाया, सौलह दश-शत नार रूपमति, कारागृह में लाय बिठाया, साथ सत्यभामा को ले हरि, दुष्ट असुर के वध को धाये। नरकासुर मार श्याम जब आये।।
पक्षी राज गरुड़ वाहन था, बनी सारथी वह प्रिय रानी, घोर युद्ध में उसका वध कर, उसकी मेटी सब मनमानी, नार मुक्त की कारागृह से, तब से जग ये पर्व मनाये। नरकासुर मार श्याम जब आये।।
स्नान करें प्रातः बेला में , अर्घ्य सूर्य को करें समर्पित, दीप-दान सन्ध्या को देवें, मृत्यु देव यम को कर पूजित, नरक-पाश का भय विलुप्त कर, प्राणी सुख की वेणु बजाये। नरकासुर मार श्याम जब आये।।
भाई-बहन का रिश्ता न्यारा लगता है हम सबको प्यारा भाई बहन सदा रहे पास रहती है हम सभी की ये आस इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।1।।
भाई बहन को बहुत तंग करता है पर प्यार भी बहुत उसी से करता है बहन से प्यारा कोई दोस्त हो नहीं सकता इतना प्यारा कोई बंधन हो नहीं सकता इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।2।।
बहन की दुआ में भाई शामिल होता है तभी तो ये पाक रिश्ता मुकम्मिल होता है अक्सर याद आता है वो जमाना रिश्ता बचपन का वो हमारा पुराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।3।।
वो हमारा लड़ना और झगड़ना वो रूठना और फिर मनाना एक साथ अचानक खिलखिलाना फिर मिलकर गाना नया कोई तराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।4।।
अपनी मस्ती के किस्से एक दूजे को सुनाना माँ-पापा की डांट से एक दूजे को बचाना सबसे छुपा कर एक दूजे को खाना खिलाना बहुत खास होता है भाई-बहन का ये याराना इस प्यार के बंधन पर सभी को नाज़।।5।।
दीप्ता नीमा
भाई दूज पर कविता
मैं डटा हूँ सीमा पर बनकर पहरेदार। कैसे आऊँ प्यारी बहना मनाने त्यौहार। याद आ रहा है बचपन परिवार का अपनापन। दीपों का वो उत्सव मनाते थे शानदार। भाई दूज पर मस्तक टीका रोली चंदन वंदन।हम इंतजार तुम्हें रहता था मैं लाऊँ क्या उपहार? प्यारी बहना मायूस न होना देश को मेरी है जरूरत। हम साथ जरूर होंगे भाई दूज पर अगली बार। कविता पढ़कर भर आयी बहना तेरी अखियाँ। रोना नहीं तुम पर करता हूँ खबरदार। चलो अब सो जाओ करो नहीं खुद से तकरार। सपना देखो, ख्वाब बुनो सबेरा लेकर आयेगा शुभ समाचार ।
का के राजा रावण का वध कर पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा रही थी. भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या आगमन पर दिवाली मनाई गई थी. हर नगर हर गांव में दीपक जलाए गए थे. तब से लेकर आज तक दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है. और इसी पर आधारित ये कुछ कविताएँ –
मुख्य बिन्दु :-
भले ही न आए लक्ष्मी
आशंका है मुझे, कार्तिक मास की अमावस को लक्ष्मी के आने की।
लोगों ने इतनी लड़ियाँ लगाई लक्ष्मी को लेकर। कैसे आ पाएगा उसका वाहन उल्लू? चुंधिया जाएंगी उसकी आँखें लड़ियों के प्रकाश से।
डर जाएगा उल्लू आतिशबाजी की कानफोड़ू ध्वनि से। वह हो जाएगा बेहोश आतिशबाजी के धुंए से।
इसलिए ही मैंने नहीं लगाई लड़ियाँ। नहीं फूंके पटाखे नहीं की आतिशबाजी नहीं खाई मिलावटी मिठाई।
भले ही न आए लक्ष्मी जो पास है वह तो न जाए।
–विनोद सिल्ला
चार दीयों से खुशहाली
चार दीयों से खुशहाली चार दीयों से खुशहाली ( लावणी छंद )
एक दीप उनका रख लेना, तुम पूजन की थाली में। जिनकी सांसे थमी रही थी, भारत की रखवाली में.!!
एक दीप की आशा लेकर, अन्न प्रदाता बैठा है। । शासन पहले रूठा ही था, राम भी जिससे रूठा है।
निर्धन का धर्म नही होता, बने जाति भी बेमानी ।। एक दीप उनका भी रखकर, समझो सब राम कहानी।।
एक दीप शिक्षा का रखकर, आखर अलख जगालो तुम। जगमग होगी दुनिया सारी, खुशियाँ खूब मनालो तुम।
चार दीप सब सच्चे मन से, दीवाली रोशन करना। मन में दृढ़ सकल्प यही हो, देश हेतु जीना – मरना।
और दीप भी खूब जलाना, खुशियाँ मिले अबूझ को। खील बताशे, लक्ष्मी-पूजन, गोवर्धन, भई दूज को।
बाबू लाल शर्मा
अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है
सजे हैं बाजार जगमगाता शहर है, दीपोत्सव आया आनंद लहर है, अंधेरे से आज दीपों की ठनी है, अमावस्या पूनम बनने को अड़ी है।
बड़े बच्चे सबके खुशी की घड़ी है हर द्वार वंदनवार फूलों की लड़ी है। स्वागत में माँ लक्ष्मी के सब खड़े हैं, फूट रहे हैं पटाखे जली फुलझड़ी है।
खुशी ही खुशी सबके चेहरे पे छाई, गले मिलते देखो खिलाते मिठाई, रिश्ते निभाने को प्रेम बढ़ाने को, दीवाली उत्सव सर्वोत्तम कड़ी है।
चौदह बरस के वनवास से राम, लौटे इसी दिन थे वो अपने धाम, मनाया नगरवासियों ने था आनंद, वही रीत युग-युग से चल पड़ी है।
गीता द्विवेदी
शुभ धनतेरस
हृदय में हर्षोल्लास हो, माता लक्ष्मी जी का वास हो। खुशियों भरा हो जीवन, सुख शांति की सौगात हो।। घर में आये खुशहाली, धन संपदा की बरसात हो।। परिवार हो समृद्ध , भगवान कुबेर जी पास हो। धूप दीप पुष्प अर्पण करुँ, जब तक अंतिम श्वास हो। सम्पन्न एवं समृद्धशाली बने, माँ रमा जी का आशीर्वाद हो। पूर्ण हो आप सभी की, समस्त मनोकामनाएं। धनतेरस एवं दीपावली की, आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।।
पावन पबरीत परब आए हे, मिल -जुल के मनाबो ! मया पिरीत के दीया म संगी सुनता के बाती लगाबो ! बिरबिट कारी ये अंधियारी , सुरहुती मभगाबो !
जाति -धरम के खोचका -डिपरा, मेड़पार बरोबर करबो ! परे- डरे गीरे -थके के, दुख -पीरा ल हरबो ! गरीब गुरवा के कुरिया म चंदा- चंदईनी ऊगाबो!
पचदिनिया देवारी तिहार- पद्मा साहू
आगे जगमग-जगमग पचदिनिया, देवारी तिहार। लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।
धनतेरस के खरीदी भारी, सोना,चांँदी,बर्तन भाड़ा, नवा-नवा कपड़ा लत्ता लेवत, मन भरे उद्गार। करसा दीयना लेवे, अउ लेवे फटाका सुरसुरी , दाई बहिनी लेवत हावे, चूड़ी फुंदरी पुछत मनिहार। पाँचे दिन के देवारी, कातिक महीना के भईया, अंतस मा लाथे प्रेम भाईचारा, खुशियाँ अपार। आगे जगमग,,,,,,,,,,
नरक चउदस यमदेव बर, अँगना मा चंउक पुराबो, दूर हो जाहि अकाल काल, यमदूत के जम्मो बिचार। घरो घर लछमी दाई के आरती, अउ होही दीपदान, जगमगावत दीया चारों कोती, मिट जाही अंधियार । कार्तिक मावस के, कुलूप अंधियारी रात मा, पाँव परत लछमी दाई के, हो जही उजियार। आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,
गौरा-गौरी के कलशा निकलही, होत पहाती गली में, रिगबिग-रिगबिग बरही दीया, मन के हरत अंधियार। गिरधर भोग लगा, गाय गरुवा ल खिचड़ी खवाबो, ठाकुर घर जोहारत, राउत भईया मन करही जोहार। गऊ माता ल सोहई बांध, कोठी डोली भरे देही आशीष, राउत मन काछन घोंडत,पारही आनीबानी दोहा गोहार। आगे जगमग,,,,,,,,,,,,,
गौठाने मा कुम्हड़ा ढूला, होगी अखाड़ा मतराही, किसम-किसम फटाका जला,मनाबो देवारी तिहार। लईका सियान सब, नवा-नवा कुर्ता पहीने, धूमधड़ाक जलाही सब, फुलझड़ी, बम,अनार। यम-यमुना भाई बहिनी के, तिहार भाई दूज, एक दूसर के रक्षा करे, देही वचन अउ उपहार। आगे जगमग-जगमग, पचदिनिया देवारी तिहार। लीपे पोते सुग्घर दिखत हावे, जगमग घर दुवार।
पद्मा साहू “पर्वणी” खैरागढ़ राजनांदगांव छत्तीसगढ़
आगे देवारी तिहार
तिहार आगे ग , तिहार आगे जी, लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे। मन म खुशी अमागे ग, मन म खुशी अमागे जी। जुरमिल के दिया बारे के, तिहार आगे ।
घर -घर गांव शहर, पोतई बूता चलत हे। दाई माई दीदीमन, छभई मुंदई करत हे। गांव -गांव ,गली-गली, अंजोर बगरत हे। जगमग जगमग , दियना बरत हे। जीवन म सबके ,उजियार आगे जी, लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।
घर अंगना म दिया, ख़ुशी के जलत हे। प्रेम अउ मया के , झरना झरत हे। लक्ष्मी मइया के , अशीष बरसत हे। सुख अउ शांति , घर म उपजत हे। घर-घर ख़ुशी के बहार ,आगे जी अंधियारी दानव ल भगाय बर, अंजोरी तिहार आगे जी।। लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे।।
लड़ई झगरा अउ, बैर ल भुलाय के। एके जगह रहिके, सुख-दुख ल गोठियाय के। पारा परोस म , सुख बगराय के। मया पिरित के , दियना ल जलाय के। तिहार आगे जी ,तिहार आगे । एकमई होके दिया बारे के, तिहार आगे। लिपे पोते छाभे मूंदे के ,तिहार आगे । तिहार आगे…….
महदीप जंघेल
दीया बन प्रकाश करे-मदन सिंह शेखावत
दीया बन प्रकाश करे, हटाए अंधकार । जग मे सुन्दर काम कर,कुसमित हो संसार । कुसमित हो संसार ,अन्धेरा रह न पाये। ज्ञान की लौ लगाय,तिमिर को दूर भगाये। कहै मदन कविराय, संसार से खुब लीया । सुन्दर करके काज,जले खुद बनकर दीया।।
जीवन मे उत्साह हो,घर घर मंगलाचार । तभी सार्थक दिपावली,बदले सब व्यवहार। बदले सब व्यवहार,मदद के हाथ बढाये। खुशियो का उपहार, दीन के घर पहुचाये कहै मदन कविराय,खुशिया बहुत है मन मे। मिल कर सभी मनाय, बांटले सब जीवन मे।
मदन सिंह शेखावत ढोढसर
शुभ दिवाली
(1) हर घर दीया जला होगा, जीवन में अंधेरा मिटा होगा। शुभ दीवाली हर आँगन हो, खुशियों से घर भरा होगा। (2) न कोई अब दुखी होगा, न गम का अंधेरा होगा। सभी आत्मजोत जगा लो, नई रोशनी से सवेरा होगा। (3) न किसी से बैर होगा, न किसी से झगड़ा होगा। प्रेम की गंगा बहा दो, हर कोई अपना होगा। (4) न सिर शर्म से नीचा होगा, न ही घमंड से ऊचां होगा। सदभावना का दीप जला लो, रोशन विश्व समूचा होगा। (5) न किसी से गिला होगा, न किसी का भय होगा । सबको मिलकर गले लगा ले, गदगद तेरा हृदय होगा।
रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे”कोहिनूर”
गरीब के दीवाली
का छिरछिरी? का मिरचा? का गोंदली फटाखा? का सूरसूरी अऊ थारी?नी जाने एटम के भाखा? नी फोरे फटाखा मोर संगी, नइ होवे जी डरहा। दूसर के खुशी ल देखके, खुश होवथे गरीबहा। खाय तेल म बरे दीया, धाज आये लाली लाली। रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली। का के नवा ओनहा अउ ,का खरीदिही साजू ? जइसे तइसे जिनगी काटे, मांग के आजू बाजू। छुहीगेरू के लीपईपोतई ,आमाडारा बांधत हे। लखमी पूजा के खातिर , जवरी भात रांधत हे। कोन जानी कब भेजत हे मां ,घर म खुशहाली। रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली। रिंगीचिंगी रंगोली देखके ,लइकामन मोहावत हे। कोयला, ईंटागुड़ा , हरदी पीसके फेर रंगावत हे। अपन कलाकारी म,सब्बोझन ला मोहे डारत हे। मन के खुशी ह बड़े होथे, एहि बात बगरावत हे। कृपा कर एसो अन्नपूरना, सोनहा कर दे बाली। रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़
मोर संग चलव रे
(मोर संग चलव रे…. आदरणीय श्री लक्ष्मण मस्तुरिहा के गीत से प्रेरित व उसी के तर्ज़ पर)
मोर संग पढ़व रे मोर संग गढ़व …. ओ दीदी बहनी नोनी मन अउ लइका के महतारी मन मोर संग पढ़व रे मोर संग गढ़व ।
महिला मन के हक ल छिनै ए पुरुष समाज। भोग विलास के चीज जानै लुट के जेकर लाज। अपन लड़ई अपन हाथ म अपन रक्षा करव रे। मोर संग लड़व ….
बंध के नारी, चारदीवारी कइसे विकास पाय। घुट घुट के मर जाही तभोले पुरूष नी करे हाय। भीख बरोबर मांगव झन आपन हक़ छीनव रे। मोर संग लड़व…..
मनीभाई नवरत्न
किसान के दरद
कनहू नी समझे किसान के दरद ला। पहिली के पहिली बूता हर बाचेच हे। समे नइये गंवई घूमे के , लोकजन ला भूला गयहे रबी फसल के चक्कर म । एसो लागा ल भी अड़बड़ छुट करिस शासन ह। तहुंच ले नई चुकता होईस सेठ के तीन परसेंटी बियाज। जोशेजोश म बोर ल खदवाईस हे। जम्मो डोली टिकरा ल उपजाईस हे। बिजली आफिस के कोरी चक्कर लगाईस हे। टेंशन म सबो चुंदी झर्राईस हे। कनहू काल म “लईन गोल” हो जाथे। गेरी के मछरी बरोबर हो जाथे किसान। न खेत-खार पोसै सकय न छाड़त। हदरके हटर-हटर काटत राथे मंझनिया रुक तरी म। लेकम कनहू नी समझे किसान के दरद ला किसनहा मन ही जानही…… ✒️मनीभाई ‘नवरत्न’ भौंरादादर,बसना, छत्तीसगढ़।
मोर संग पढ़व रे
मोर संग पढ़व रे मोर संग लिखव रे ओ दीदी बहनी नोनी मन अउ लइका के महतारी मन मोर संग पढ़व रे मोर संग लिखव रे
महिला मन के हक ल छिनै ए पुरुष समाज। भोग विलास के चीज जानै लुट के जेकर लाज। अपन लड़ई अपन हाथ म अपन रक्षा करव रे। मोर संग लड़व ….
बंध के नारी, चारदीवारी कइसे विकास पाय। घुट घुट के मर जाही तभोले पुरूष नी करे हाय। भीख बरोबर मांगव झन आपन हक़ छीनव रे। मोर संग लड़व…..
मनीभाई नवरत्न
महतारी के मया
महतारी के मया ल,आखर म कैसे कहौ? दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ। लाने हस मोला दुनिया म मोर अंग अंग म तोर अधिकार हे। भगवान बरोबर तय होथस , तोर पूजा बिना चारोंधाम बेकार हे। तोर आशीष मोर मुड़ म तो,जग ला नई डरौ। दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ। भुख लागे ल दाई मोर, अपन हाथ ले कौंरा खवाथें। हिचकी आ जाय ले, लकर-धकर पानी पियाथें। अतक मया हे कि मुहु ले न बोले सकौ । दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ। बाबूजी मोर आजादी के, सब्बो दिन खिलाफत रइथें। महतारी बूता ले छुट्टी दे के झटकुन घर आ जाबे कहिथें। मोर मन के सबो बात,दाई ल कहे सकौ। दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ। बोली भाखा सिखाय हे, दय हे जिनगी के ग्यान। सुत उठके आशीष दय, मोर बेटा बने जग म महान। करज उतारे बिना तोर, हरू नई होय सकौ। दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
यहाँ पर दीपावली अवसर पर गए जाने वाला सुवा गीतों का संकलन किया गया है . छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है।
सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है।
प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं।
सुवा गीत 1
तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना कइसे के बन गे वो ह निरमोही रे सुअना कोन बैरी राखे बिलमाय चोंगी अस झोइला में जर- झर गेंव रे सुअना मन के लहर लहराय देवारी के दिया म बरि-बरि जाहंव रे सुअना बाती संग जाहंव लपटाय
सुवा गीत 2
तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना तिरिया जनम झन देव तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर रे सुअना तिरिया जनम झन देव बिनती करंव मय चन्दा सुरुज के रे सुअना तिरिया जनम झन देव चोंच तो दिखत हवय लाले ला कुदंरु रे सुअना आंखी मसूर कस दार… सास मोला मारय ननद गारी देवय रे सुअना मोर पिया गिये परदेस तरी नरी नना मोर नहा नारी ना ना रे सुअना तिरिया जनम झन देव…….
सुवा गीत 3
तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना तुलसी के बिरवा करै सुगबुग-सुगबुग रे सुअना नयना के दिया रे जलांव नयनन के नीर झरै जस औरवांती रे सुअना अंचरा म लेहव लुकाय कांसे पीतल के अदली रे बदली रे सुअना जोड़ी बदल नहि जाय
सुवा गीत 4
तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार रे सुअना तुलसी में दियना बार अग्धन महीना अगम भइये रे सुअना बादर रोवय ओस डार पूस सलाफा धुकत हवह रे सुअना किट-किट करय मोर दांत माध कोइलिया आमा रुख कुहके रे सुअना मारत मदन के मार फागुन फीका जोड़ी बिन लागय रे सुअना काला देवय रंग डार चइत जंवारा के जात जलायेंव रे सुअना सुरता में धनी के हमार बइसाख…….. आती में मंडवा गड़ियायेव रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय जेठ महीना में छुटय पछीना रे सुअना जइसे बोहय नदी धार लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार सावन रिमझिम बरसय पानी रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा रे सुआना कइसे के देईस बिसार कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर कातिक महीना धरम के कहाइस रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार अपन अपन बर सब झन पूछंय रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार
दिवाली मनाबो
सब के घर म उम्मीद के दिया जलाबो, युवा शक्ति के अपन लोहा मनवाबो, अपन शहर ल नावा दुल्हन कस सजाबो, चला संगी ए दारी अइसे दिवाली मनाबो।