विश्व दूरदर्शन दिवस पर कविता
समाज का एक वर्ग
इतराता नहीं ये कहने से,
मूल्यों के विघटन में
दूरदर्शन का हाथ है ।
पर पवित्र ना हो
दृष्टिकोण तो
लगता है दिन भी
घनघोर रात है ।।
कहीं चूक है अपनी जो
मित्र दूरदर्शन हो रहा दोषी ।
वरना ताकाझांकी चलती सदा
कि क्या कर रहा अपना पड़ोसी?
ज्ञान है, विज्ञान है
मनोरंजन की खान है दूरदर्शन ।
निर्माण हुआ इसका ताकि
यंत्र ना बने अपना जीवन ।
इस बात से इनकार नहीं
कि “अति” ने फैला दी सांस्कृतिक प्रदूषण ।
प्रकृति से नाता तोड़ रहा
धीरे धीरे अपना बचपन ।।
मनीभाई नवरत्न