Tag: #अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • काम करो भाई काम करो — अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    काम करो भाई काम करो

    किसान

    काम करो भाई काम करो

    जग में अपना नाम करो

    कामचोर जो हो जायेगा

    अँधेरे में खो जाएगा

    विकसित एक आसमान करो

    काम करो भाई काम करो

    कायर जो तुम हो जाओगे

    भीड़ में कहीं गुम हो जाओगे

    हिम शिखर से अटल रहो तुम

    अविचल अविराम बढ़ो तुम

    खामोश जो तुम हो जाओगे

    खुद को दिलासा क्या दे पाओगे

    अंतर्मन में आस जगाओ

    सारी दिल की पीर मिटाओ
    संस्कारों पर ध्यान धरो

    जग में अपना नाम करो

    सागर सा कर चौड़ा सीना

    लहरों को अपने नाम करो

    साहस से खुद को सींचो तुम

    विकसित एक आसमान करो

    काम करो भाई काम करो

    जग में अपना नाम करो

    काम करो भाई काम करो

    जग में अपना नाम करो

  • कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना कहाँ तमाम करूँ – कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    kavita

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    टूटा था दिल वहां से, या संभला था दिल जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    संवरे थे मेरे सपने वहां से, या बिखरे थे वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जुड़ी थी यादें वहां से, या टूटे थे रिश्ते जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब रोशन हुआ था दिल वहां से, या तनहा हुआ था जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    चंद कदम चले थे वहां से, या जुदा हो गए थे जहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    रोशन हुआ था मुहब्बत का कारवाँ वहां से, या बिखरे थे सपने वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब पहली बार हम मिले थे वहां से, या अंतिम दीदार हुए थे वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    जब रोशन हुई थी कलम वहां से, या उस खुदा की इनायत का कारवाँ रोशन हुआ वहां से

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

    कहाँ से छेड़ूँ फ़साना , कहाँ तमाम करूँ

  • मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मुझे वो अपना गुजरा ज़माना याद आया

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मुझे वो अपना गुज़रा ज़माना याद आया

    वो बचपन की यादें, वो रूठना मनाना याद आया

    बेरों की वो झुरमुट , वो नदी का किनारा

    काँधे पर स्कूल का बस्ता, वो लड़ना लड़ाना याद आया

    खिल जाती थीं बांछें , जब जेब में होती थी चवन्नी

    वो मन्नू हलवाई की दूकान , वो कुल्फी वाला याद आया

    ठाकुर साहब के बाग़ से , छुपकर चुराए वो आम

    बापू की डांट डपट, माँ का मुझको बचाना याद आया

    गिल्ली डंडे का वो खेल, कंचे बंटों की खनखन

    कभी हारकर रोना , कभी जीतकर खुश होना याद आया

    त्यौहार के आने की ख़ुशी, मेले की रौनक

    वो गुड्डे गाड़ियों से सजा बाज़ार, वो टिकटिक करता बन्दर याद आया

    संतू की चाची का पान खाकर, यहाँ वहां पिचपिच करना

    मंदिर की घंटी का स्वर , वो मंदिर का प्रसाद याद आया

    छुपान – छुपाई का वो खेल, कैरम पर नाचती गोटियाँ

    वो पढ़ाई को लेकर आलस, वो फेल होते होते बचना याद आया

  • मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ – कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

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    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    मैं एक अदद इंसान हूँ

    दुआओं का समन्दर रोशन करता है जो

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    सिसकती साँसों के साथ जी रहे हैं जो

    उनके लिए इंसानियत का वरदान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    रोशन न हो सका जिसकी कोशिशों का आसमां

    उनके लिए उम्मीद और आशा का आसमान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    भाई को भाई से जुदा करते हैं जो

    उनके रिश्तों में मिठास भरने का एक पैगाम हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    चिंता की लकीरों को मिटाने का जज़्बा लिए जी रहा हूँ

    चेहरों पर आशाओं की एक मुस्कान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    क्यूं कर दफ़न हो जाए मेरे सपने

    कोशिशों का एक समंदर हूँ ,तूफां में पतवार हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    क्यूं कर डूब जाए मेरी कश्ती बीच मझधार

    दौरे – तूफां में भी , मैं मंजिल हूँ किनारा हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    मैं एक अदद इंसान हूँ

    दुआओं का समन्दर रोशन करता है जो

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

    मैं न हिन्दू हूँ , न मुसलमान हूँ

    सिसकती साँसों के साथ जी रहे हैं जो

    उनके लिए इंसानियत का वरदान हूँ

    मैं वो एक अदद इंसान हूँ

  • बहुत भटक लिया हूँ मैं – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    बहुत भटक लिया हूँ मैं

    बहुत भटक लिया हूँ मैं

    बहुत बहक लिया हूँ मैं

    बहुत कर ली है मस्ती

    बहुत चहक लिया हूँ मैं

    बहुत कर ली शरारतें मैंने

    बहुत बिगड़ लिया हूँ मैं

    अब मुझे विश्राम चाहिए

    कुछ देर आराम चाहिए

    इस उलझनों से

    इन बेपरवाह नादानियों से

    एक दिशा देनी होगी

    अपने जीवन को

    कहीं तो देना होगा

    ठहराव इस जिन्दगी को

    कब तक यूं ही भटकता रहूँगा

    कब तक यूं ही बहकता रहूँगा

    सोचता हूँ

    चंद कदम बढ़ चलूँ

    आध्यात्म की राह पर

    मोक्ष की आस में नहीं

    एक सार्थक

    एक अर्थपूर्ण

    जीवन की ओर

    जहां मैं और केवल वो

    जो है सर्वशक्तिमान

    शायद मुझे

    अपनी पनाह में ले ले

    तो चलता हूँ उस दिशा की ओर

    और आप …………………….