Tag: #अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम” के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • तू मेरा मालिक

    तू मेरा मालिक मालिक है मेरा

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    अपना समझना , सदा ही मुझको

    पीर मेरी , फ़ना हो रही है |

    तेरे दीदार की, आरज़ू है मुझको

    हैं आसपास महसूस करता हूँ तुझको |

    तेरे करम का , साया है मुझ पर

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    गीत बनकर रोशन हो जाऊं मैं

    ग़ज़ल बनकर निखर जाऊं मैं

    ज़ज्बा हो इंसानियत का मुझमे

    पीर सबके दिलों की मिटाऊँ मैं

    तेरे करम से रोशन हुई कलम मेरी

    तेरी इबादत को अपना मकसद बना लूं मैं

    तेरा शागिर्द हूँ , नाज़ है मुझको तुझ पर

    तेरे दर का चराग कर लूं खुद को

    मेरे मुकद्दर पर , हो तेरी इनायत और करम

    तेरी इबादत में खुद को फ़ना कर लूं मैं |

    तू मेरा मालिक , मालिक है मेरा

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    हुआ मैं रोशन , करम से तेरे

    तुझसे ही रोशन , मेरी जिन्दगी है |

    रचयिता – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम”

  • ज़ज्बा–ए-वतन

    ज़ज्बा–ए-वतन

    tiranga

    पीर दिलों की मिटा के , रोशन किया ज़ज्बा – ए – वतन

    मादरे वतन पर मर मिटने का ज़ज्बा सिखा गए |

    वतनफ़रोशी का ज़ज्बा थी , उनकी धरोहर

    वो राग जिन्दगी का सुनाकर चले गए |

    कर गए रोशन अपने देश पर, मर मिटने का ज़ज्बा

    वो गीत बन के दिल में समाते चले गये |

    अपने लहू से सींच गए , वतनपरस्ती का ज़ज्बा

    मादरे वतन पर निसार होने की कला सिखा गए |

    मिटा दिया नासूर गुलामी का , कर अपना सर्वस्व समर्पण

    जो मर मिटे थे अपने , अपने देश की खातिर चले गए |

    गुलामी की जंजीरों से , आजाद कर गए वतन को

    माँ भारती के सच्चे सपूत होने का , सिला सिखा गए |

    पीर दिलों की मिटा के , रोशन किया ज़ज्बा – ए – वतन

    मादरे वतन पर मर मिटने का ज़ज्बा सिखा गए |

    वतनफ़रोशी का ज़ज्बा थी , उनकी धरोहर

    वो राग जिन्दगी का सुनाकर चले गए | |

  • हिंदी साहित्य जगत में अनेक सितारे हैं

    हिंदी साहित्य जगत में अनेक सितारे हैं

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    हिंदी साहित्य जगत में , अनेक सितारे हैं

    कुछ टिमटिमाते तारे, कुछ सूर्य की तरह गरम अंगारे हैं |

    कुछ स्वयं को साहित्य जगत में , स्थापित कर पाते हैं

    कुछ गुमनामी के , अँधेरे में खो जाते हैं |

    कुछ तो पुराने सतित्याकारों को ही , साहित्य जगत का आधार स्तम्भ मान बैठे हैं

    नवीन उदीयमान साहित्यकारों को , पराया मान बैठे हैं |

    कुछ नहीं चाहते कि , नित नए कमल खिलें

    कुछ नहीं चाहते कि , दूसरों की भी दाल गले |

    कुछ ऐसा समझते हैं कि केवल , उनकी रचनाएं ही गर्व का विषय हैं

    दूसरों की रचनाओं को वे , गर्व का विषय कैसे कह दें |

    वे चाहते हैं कि लोग उनकी रचनाओं का आचमन कर , सकारात्मक टिप्पणी करें

    पर शायद भूल जाते हैं कि दूसरों की उत्कृष्ट रचनाओं पर , वे भी ताली बजा सकते हैं |

    नये युग का निर्माण करना है तो , उदीयमान रचनाकारों को स्वीकारना ही होगा

    उनके द्वारा स्थापित किये जा रहे , नित – नए आयामों को अधिकार दिलाना ही होगा |

    एक स्वस्थ साहित्य जगत का निर्माण करना है

    तो सभी को विश्व साहित्य मंच पर लाना ही होगा |

    कलम किसी की भी हो , विचार किसी के भी हों

    उदीयमान रचनाकारों को भी , खुला आसमां दिलाना ही होगा |

    उदीयमान हिंदी साहित्यकारों को , उनका मुकाम दिलाना ही होगा

    सबको गले लगाना होगा , सबके लिए ताली बजाना ही होगा |

    हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित करना है

    तो इस गीत को अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाना ही होगा |

    आइये सब साथ बढ़ चलें , दूर स्वच्छ गगन की ओर

    जहां सभी को सूर्य की तरह , चमकने का अधिकार हो |

    जहां आसमां , किसी से भेद नहीं करता

    जहां सभी को पंख फैला , उड़ने का अवसर हो |

    जहां समा लेता है , उन्मुक्त गगन अपनी आगोश में

    देता है पंख लगा अवसरों की , उड़ान भरने का हौसला |

    तो विलंब कैसा और किसका इंतज़ार

    तो आओ चलो मिलकर चलें |

    हिंदी साहित्य जगत को शिखर पर विराजेंऔर स्थापित करें नित नए आयाम ||

  • हे प्रभु मेरी विनती सुन लो – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    हे प्रभु मेरी विनती सुन लो – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हे प्रभु मेरी विनती सुन लो , प्रभु दर्शन की आस जगा दो

    मुख मंडल की शोभा न्यारी , प्रभु अपनी छवि हेमे दिखा दो

    चरण कमल हम आये तुम्हारी , ह्रदय से अपने प्रभु लगा लो

    तुम हो सबके दुःख के साथी , बीच भंवर से पार लगा दो

    सच की हमको राह दिखा दो , मन दर्पण को पावन कर दो

    पुष्पों की खुशबू सा जीवन , उपवन का हमको फूल बना दो

    सुन्दर मन , काया हो सुन्दर , हे प्रभु नैया पार लगा दो

    रत्नाकर सा व्यापक हो ह्रदय , संस्कारों की राह दिखा दो

    मन पावन हो जाए प्रभु जी , धन , वैभव अम्बार लगा दो

    भक्ति रस से सरावोर हो जीवन , चरण कमल प्रभु पास बिठा लो

    मंगल कर्म सभी हों मेरे , जीवन मुक्ति मार्ग दिखा दो

    हर्षित हो मन , हर्षित हो तन , ऐसे प्रभु मेरे भाग्य जगा दो

    सूर्य सा प्रभु तेज हो मेरा , ऐसे आसमां पर मुझे बिठा दो

    संसार मोह से मुक्त करो प्रभु, जीवन को सत राह दिखा दो

    मन हो निर्मल, कर्म हो मंगल , ऐसे पुण्य प्रयास करा दो

    बन जाऊं मैं पूर्ण सन्यासी , वन हेतु प्रस्थान करा दो

    मंगल कारज पूर्ण करो सब , मंगल कार्यों में मुझे लगा दो

    माया मोह में मैं न उलझूं , प्रभु मुझको तुम राह दिखा दो

    हे प्रभु मेरी विनती सुन लो , प्रभु दर्शन की आस जगा दो

    मुख मंडल की शोभा न्यारी , प्रभु अपनी छवि हेमे दिखा दो

  • चंद फूलों की खुशबू – अनिल कुमार गुप्ता

    चंद फूलों की खुशबू – अनिल कुमार गुप्ता

    चंद फूलों की खुशबू - अनिल कुमार गुप्ता

    चंद फूलों की खुशबू से कुछ नहीं होता

    चलो फूलों का उपवन एक सजाएं

    चंद मोतियों से कुछ नहीं होता

    चलो मोतियों की माला एक बनाएं

    चंद सितारों से कुछ नहीं होता

    सितारों से सजा एक गगन बनाएं

    चंद फूलों से कुछ नहीं होता

    चलो फूलों का उपवन एक सजाएं

    चंद मुस्कुराहटों से कुछ नहीं होता

    चलो हँसी की बगिया एक सजाएं

    चंद किरणों से कुछ नहीं होता

    चलो प्रयासों का सूरज एक सजाएं

    चंद कोशिशों से कुछ नहीं होता

    चलो कोशिशों को मंजिल एक दिखाएँ

    चंद दीपों से कुछ नहीं होता

    चलो दीपों की माला एक बनाएं

    चंद उसूलों से कुछ नहीं होता

    चलो जिन्दगी को उसूलों का समंदर एक बनाएं

    चंद फूलों की खुशबू से कुछ नहीं होता

    चलो फूलों का उपवन एक सजाएं