Tag: बाबूराम सिंह की कविता हिंदी में

  • करो योग रहो निरोग /बाबूराम सिंह

    करो योग रहो निरोग /बाबूराम सिंह

    करो योग रहो निरोग” एक प्रसिद्ध हिंदी कविता है, जिसे बाबूराम सिंह ने लिखा है। यह कविता योग के महत्व पर आधारित है और योग के लाभों को संदेश में उजागर करती है। इस कविता में योग को जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका देने की प्रेरणा दी गई है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने में मदद करता है।

    yog

    करो योग रहो निरोग /बाबूराम सिंह

    योग जगत का सार है,सदगुण लिए हजार।
    इसकी महिमा से सदा,सुख पावत संसार।।
    योग सनातन है महा ,दूर करे सब रोग।
    सुख पाते जिससे सदा,जीवनमें सब लोग।।

    योग अंग जागृत करी , लाता रंग भरपूर।
    चमके तेज ललाट पर,मिले खुशी का नूर।।
    जीवन की हर जीत में ,योग निराला जान।
    स्वस्थ निरोग जीवन में ,है इसकी पहचान।।

    योग अभय कारी सदा,अपनाता जो कोय।
    जीवन निरोगी मिलता,नामअमर जग होय।।
    नाश समूल रोग करे ,योग अनूठा ज्ञान।
    मानव जीवन के लिए, सबसे उत्तम जान।।

    अचूकअति अनमोल है,योग यतन कर यार।
    जिससे सुख पाये सदा ,देश गांव परिवार।।
    योग महा महिमा बडी़, जग जीवन आधार ।
    सर्व सुख का सार यहीं,इसपर करो विचार ।।

    आओ हम सब योग में,सतत लगा के ध्यान।
    कायम रखें अनुप सदा, विश्वगुरू पहचान।।
    जीवन नरक योग बिना ,मिले नहीं आराम।
    योग करें जग में सभी,सुचि कवि बाबूराम।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो०न० – 9572105032

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  • कृष्ण रासलीला

    कृष्ण रासलीला

    shri Krishna
    Shri Krishna

    कृष्ण रासलीला

    लीला राधे कृष्ण सम,आँख उठा के देख।
    लाख कोटि महा शंख में,लख लीला है एक।।

    सब देवों की नारियाँ,कर नित साज सिंगार।
    गमन करें शुचि रास में ,बन ठन हो तैयार।।

    कृष्णप्रेम विह्वल शम्भु,निज मन कियो विचार।
    राधे कृष्ण प्रेम परम ,जा देखूँ इक बार।।

    शिव गौरा से जा तभी,कहने लगे सकुचाय।
    रास लखन मै भी चलूँ ,सुन गौरा मुसकाय।।

    कैसे जा सकते वहाँ , लिए गले में शेष।
    लीला में वर्जित सदा, पुरूषों का प्रवेश।।

    ऐसा क्यों कहती सती ,अतुल शक्ति ले पास।
    कर यत्न ले चलो मुझे ,देखन लीला रास।।

    शिवअडिग लालसा लखी,कह गौरा समझाय।
    भेष बदल नारी बनों , यहीं है इक उपाय।।

    नार नवेली बन गये , रूप रंग चटकार।
    पहुँच गये गौरा संग में ,कृष्ण रास दरबार।।

    कृष्ण पारखी नजर से ,शिवजी गयो लखाय।
    पानी हो शिव शरमसे,निज मुख लियो छुपाय।।

    हँस पड़ी सभी गोपियाँ ,हँसते कृष्ण मुरार।
    प्रेम सिंधु में डूब शिव , लूटत रास बहार।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर

    गोपालगंज (बिहार)841508

  • राष्ट्र भाषा हिन्दी – बाबूराम सिंह

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    14 सितम्बर-2022 हिन्दी दिवस पर विशेष

    राष्ट्र भाषा हिन्दी – बाबूराम सिंह

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सर्वश्रेष्ठ सर्वोपरि सुखद सलोना शुभ,
    सरल सरस शुचितम सुख कारी है।
    भव्य भाव भूषित भारत भरम भरोस,
    निज अंक भरे जन-जन हितकारी है।

    अनमोल एकता का अनूठा स्तम्भ दृढ,
    अविचल विश्व बन्धुत्व की पुजारी है।
    हर भाव हर दृष्टिकोण से उत्तम अति,
    कवि बाबूराम भाषा हिन्दी हमारी है।

    अस्तु जागरूक एकजुट हो यतन बिच,
    प्रचार प्रसार सभी हिन्दी की हीं कीजिए।
    होवे हर कार्य हर क्षेत्र बिच हिन्दी में हीं,
    संसदों में व्यक्तव्य हिन्दी में हीं दीजिए।

    भाषणों उदघोषणो और वार्तालाप बिच,
    हिन्दीको हीं सभीआत्मसात कर लीजिए।
    हिन्दीबिना हिन्द खुशहाल कभीहोगा नहीं,
    कवि बाबूराम हिन्दी प्रेम रस पीजिए।

    भारत आजादी स्वाधीनता सम्पूर्ण तभी,
    हिन्दी हर ओर जब हर में समायेगी।
    भारतभव्य भालकी अनुप बिन्दी हिन्दी है,
    सुयश सुख शान्ति हिन्दी से लहरायेगी।

    विश्व में अटल अतुल आर्यावर्त हिन्दी से,
    विश्व गुरु गौरव गुण हिन्दी बढायेगी।
    संस्कृति सभ्यता की शान कवि बाबूराम,
    आपस में समरसता हिन्दी हीं लायेगी।

    स्कूल कालेज कोर्ट आफिस हर घर में,
    हिन्दी की अचूक सभी आलोक फैलाइये।
    हर हिन्द वासी भेद-भाव जात-पात छोड़,
    हिन्दी सु – पताका चहुँ ओर फहराइये।

    आजादी का मूलमंत्र राज हर खुशियों का,
    मानवता माधुर्य शुचि हिन्दी से हीं पाइये।
    राष्ट्र धर्म न्याय नीति सबके उत्थान हेतु,
    कवि बाबूराम हिन्दी सार में समाइये।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बडका खुटहाँ,विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार)841508
    मो॰ नं॰ – 9572105032
    ———————————————–

  • राष्ट्र भाषा हिन्दी पर कविता -बाबूराम सिंह

    हिन्दी भारत की राष्ट्रभाषा है। 14 सितम्बर, 1949 के दिन संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाषा प्रावधानों को अंगीकार कर हिन्दी को भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में मान्यता दी। संविधान के सत्रहवें भाग के पहले अध्ययन के अनुच्छेद 343 के अन्तर्गत राजभाषा के सम्बन्ध में तीन मुख्य बातें थी-

    संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा ।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    हिन्दी दिवसकीअग्रिम शुभकामनाएं  व हार्दिक बधाई
                            
                        राष्ट्र भाषा हिन्दी
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    भारत  की  भाषा  हिन्दी ,सबसे सुन्दर जान।
    यही दिलासकती हमें,यश गुण मान सम्मान।।
    सभ्यता संस्कृति सुखद,सुधर्म शुचि परिवेश।
    हिन्दी  से  हीं  पा सकता ,प्यारा भारत देश।।

    अनुपम भाषा देश  की,अतिशय प्यार दुलार।
    मातृ  भाषा  हिन्दी  बनें ,हिन्द  गले  का हार।।
    सरल शुभ  है सदा सरस,हिन्दी मय व्यवहार।
    सभी  के  उर  हिन्दी  बसै ,फैले  सदा  बहार।।

    रचा बसा  है  हिन्दी  में,आपस  का सदभाव।
    हो सकता  इससे  सुखी ,शहर  देश हर गांव।।
    देश  भाषा  हिन्दी  बनें , सबका  हो  उत्थान।
    हिन्दी हीं  है रख सकती,भारत की पहचान।।

    आओ  हम सब मिल करे,हिन्दी सतत प्रचार।
    सुचि  सेवा  सदभाव  का ,छुपा इसी में सार।।
    अनुपम भाषा देश  की,अतिशय प्यार दुलार।
    मातृ  भाषा  हिन्दी  बने, हिन्द  गले  का हार।।

    हिन्दी  हक  पाये अपना ,बने सभी का काम।
    हिन्दी  से  उज्वल  होगा, विश्व गुरू का नाम।।
    एकजुट होय  सब  कोई ,करो इधर भी कान।
    हिन्दी  बिन  गूंगा- बहरा ,अपना  देश महान।।

    हिन्दी  हित  सबका  करती,दे सुयश आलोक।
    आत्म  सात  करो  हिन्दी, बने  लोक परलोक।।
    पढो़  लिखो  बोलो  हिन्दी ,करो  हिन्दी प्रसार।
    गुणगान  चहुंदिश  इसका , गावत  है  संसार।।

    देश  भाषा  हिन्दी  बने ,सबका  होय  उत्थान।
    रख सकती  है  हिन्दी  ही, भारत की पहचान।।
    समाहित  कर कौम सभी,निज में अपने आप।
    शुभता समता का सुखद,हिन्दी छोडे सुछाप।।

    समाहित कर कौम सभी,निज में अपने  आप।
    शुभता समता का सुखद,हिन्दी छोड़े सु-छाप।।
    हिन्दी  का  हर रूप  भव्य ,यह भारत की हीर।
    पाये  यश बच्चन  दिनकर ,तुलसी सूर कबीर।।

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    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज(बिहार)841508
    मो॰नं॰ – 9572105032
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  • भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य

    mahatma gandhi

    सादा जीवन उच्च विचार अपनाये मानवतावादी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    २ अक्टुबर सन् १८६९ समय रहा सुखदाई।
    गुजरात के पोरबन्दर में जन्म आपने पाई।
    पिता कर्मचन्द्र गाँधी थे माता पुतली बाई।
    मोहनदास कर्मचन्द्रगाँधी पुरा नाम कहलाई।

    जीवन साथी डोर कस्तुरबा गाँधी के संग बांधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    सत्यअहिंसा पाठ पढा़कर जन मन सुखी बनाये।
    मानवता का व्रत धारण कर महात्मा कहलाये।
    सत्याग्रह कर आजादी हेतु सबसे आगे आये।
    क्षमा दया त्याग प्रेम से आप चहुँ दिशि छाये।

    चरखा चलाये सुत काते अपनाये खुद खादी।
    भारत रह राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    सत्य अहिंसा सर्वोपरि है सबको दिखला दी।
    नरम दल बनकर दहशत अंग्रेजों में फैला दी।
    बिना शस्त्र उठाये ले ली ब्रिटीश से आजादी।
    शान्ति क्षमा सदभाव से रोके भारत की बर्बादी।

    स्वावलम्बि बनकर महात्मा दिव्य साधना साधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    ३०जनवरी सन्१९४८को यमराज फांस ले आया।
    नाथूराम गोडसे सीना पर तीन गोली चलाया।
    राम कह उडे़ प्राण पखेरु बंची जमीन पर काया।
    चले गये स्वर्गवास जग मेंआपका यश गुण छाया।

    भारतवर्ष में”बाबूराम कवि”आई दुख की आंधी।
    भारत राष्ट्रपिता कहलाये धन्य महात्मा गाँधी।

    बाबूराम सिंह कवि
    बड़का खुटहाँ , विजयीपुर
    गोपालगंज (बिहार )८४१५०८