दशहरा पर कविता

किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

दशहरा पर कविता

durgamata

राम रावणको मार,धर्मका किये प्रचार,
बढ़ गया सत्य सार ,यही है दशहरा।

देव फूल बरसायें ,जगत सारा हर्षाये,
गगन-भू सुख पाये,यही है दशहरा।

खुशहुये भक्तजन,कहेसभी धन्य-धन्य,
होइ के महा मगन ,यहीं है दशहरा।

सुनो मेरे प्यारे भाई ,बुराई पर अच्छाई,
जाता जब जीत पाई ,यहीं है दशहरा।

छल-कपट टारदो,जन-जनको प्यार दो,
अवगुण सुधार लो , यहीं है दशहरा।

सदा हरिगुण गाओ,सुख शुभ उपजओ,
सबको गले लगाओ , यही है दशहरा।

चलो सत्य राह पर,कर्म हो निगाह पर,
दौड़ो नहीं चाह पर ,यहीं है दशहरा

मनविषयों से मोड़,व्देष-दम्भ मोह छोड़,
परहित में हो दौड़ , यहीं है दशहरा।

अंदरसे शीघ्र जाग,प्रभु सुभक्ति में लाग,
आपसी बढ़ाओ राग ,यहीं है दशहरा।

सत्संगमें रहे चाव,रखो समता का भाव,
छोड़ो सकल दुराव , यहीं है दशहरा।

बाबूराम सिंह कवि
बडका खुटहाँ, विजयीपुर
गोपालगंज (बिहार)841508

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