Tag: #धनेश्वर पटेल

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०धनेश्वर पटेल के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • चालान- धनेश्वर पटेल

    चालान- धनेश्वर पटेल

    चालान

    cycle

    एक दिन निकले हम सैर पर
    तो हेलमेट लगाना भूल गए
    हुआ हादसा कुछ ऐसा कि
    फटफटिया चलाना भूल गए!
    स्पीड बढ़ी कांटा लटका दूसरी छोर
    हम समझ थे अपने बाप की रोड़
    बुलेट घुमाई और मुड़े घर की ओर
    ट्रैफिक पुलिस खड़ी थी दूसरी ओर
    उनकी नजरों ने हमें देखा
    इन सहमी नजरों ने उन्हें देखा
    देख भागते जोर की सीटी बजाई
    पकड़े तो गए करनी पड़ेगी भरपाई

    थोड़ा चिल्लाया फिर मुस्कुराया
    चालान की पर्ची हमें दिखाया

    हमने जेब से सौ दो सौ की नोट निकाली
    और झट से उनकी जेब में पकड़ा दी
    जोर जोर हंसे और फिर कुछ कहने लगे
    लो बेटा आखिर तूने अपनी औकात दिखा दी

    लाइंसेंस मांगी,बीमा मांगा,
    और ना जाने क्या क्या मांगा
    शुक्र था कि हमसे किडनी ना मांगा
    सब थे मेरे पास पर उन्हें तो घर पर था टांगा

    हमने उनके कानों में चुपके से कहा
    भई घर में बीबी से हो गई हमारी लड़ाई
    वापस घर गए तो होगी अच्छी पिटाई

    उसे जेब में से पांच की नोट और दिखाई

    एक न सुनी हमारी और चालान भरवाई
    वो बीते पल याद आने लगें
    अपनी किस्मत पर पछताने लगे
    अच्छी खासी साइकिल थी मेरे पास
    तो क्यों दहेज की मोटरसाइकिल चलाने लगे

    ©धनेश्वर पटेल
    रायगढ़ छत्तीसगढ़
    संपर्क सूत्र -7024601095

  • रावण दहन पर कविता

    रावण दहन पर कविता

    दशहरा (विजयादशमी व आयुध-पूजाहिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को ‘विजयादशमी’ के नाम से जाना जाता है 

    रावण दहन पर कविता

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    ravan-dahan-dashara

    हम रावण को आज जलाने चले हैं।
    उस के मौत का जश्न मनाने चले हैं।।

    एक रावण अंदर मेरे भी पल है रहा,
    और खुद को श्री राम बताने चले हैं।।

    करते हरण हम रोज एक सीता को,
    और घर में राम मंदिर बनाने चले हैं।।

    निर्बल,असहाय पर जो करते है प्रहार,
    परिचय वीरता का वे दिखाने चले हैं।।

    करते ढोंग बाबा के वेश में रात दिन,
    वो अब राम रहीम कहलाने चले हैं।।

    राम का नाम बदनाम कर रखे हमने,
    और खुद को राम भक्त बताने चले हैं।।

    राजपाठ का लालच कूट कूटकर भरा,
    और हम आज रामराज बनाने चले हैं।।

    ©धनेश्वर पटेल
    रायगढ़ (छ. ग)