Tag: *जीवन पर कविता

  • जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना

    जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना


    (छंद मुक्त रचना)
    “ओ खेवइया।
    जीवन की नैया,
    है बहुत ख़ूबसूरत,
    कमसिन है,
    भरी हुई है नज़ाकत से।
    देख,
    लहरें आ रहीं है दौड़कर,
    डुबोने को तत्पर।
    सम्हाल पतवार,
    ख़ीज लहरों की,
    तूफ़ान साथ ला सकती हैं।
    जीवन की नैया को,
    धीरे-धीरे खेना।
    रुकना नहीं ।
    पलटना नहीं।
    जो छुट गया ,
    जो मिल न सका,
    ग़म उसका नहीं करना।
    खेता जा।
    जो मिल जाए ,
    साथ ले आगे ही आगे बढ़ता चल।
    बीच मॅ॑झधार,
    नहीं है तेरी मंज़िल।
    तेरी मंज़िल तो,
    है दूसरा किनारा,
    सुंदर और प्यारा-प्यारा।
    पहुॅ॑चने अपने मंज़िल तक,
    तुझे बचकर है नाव चलाना,
    डरावनी तरंगों को भी अपनाना।
    खौफ़ न खा,
    कर ले थोड़ा संघर्ष ,
    पाने को उत्कर्ष।
    आ जाएगा दूसरा किनारा,
    हसीन और प्यारा -प्यारा।

    डॉ भारती अग्रवाल
    रायपुर छत्तीसगढ़

  • जिन्दगी पर कविता

    जिन्दगी पर कविता

    मंजिल लक्ष्य

    जिन्दगी तो प्रेम की एक गाथा है,
    जिन्दगी भावुक प्रणय की छाँव है,
    जिन्दगी है वेदना की वीथिका सी
    जिन्दगी तो कल्पना की छुवन भर है।

    जिन्दगी है चन्द सपनों की कहानी,
    जिन्दगी विश्वास के प्रति सावधानी,
    जिन्दगी इतिहास है निर्मम् समय का
    जिन्दगी तो आँसुओं की राजधानी।

    जिन्दगी तो लहलहाती फसल सी है
    जिन्दगी कल्पनाओं के सुनहरे महल सी है
    जिन्दगी तो कामनाओ का घुटन भर है
    जिन्दगी तो कल्पना की छुअन भर है।
                 

    जिन्दगी तो एक  स्वप्न सा सुहावना है
    जिन्दगी का नाम ही सम्भावना है
    लोग कुछ भी कहे इस जिन्दगी को
    पर जिन्दगी तो मौत की ही प्रस्तावना है।

    कालिका प्रसाद सेमवाल
    मानस सदन अपर बाजार
    रूद्रप्रयाग (उत्तराखंड)

  • जीना अब आसान नहीं है

    जीना अब आसान नहीं है

    जग में सब का मान नहीं है,
    हीरों की अब खान नहीं है।।

    पहले सा अब  काम नहीं है,
    इतनी भी पहचान  नहीं है।।

    अपने ही रखते हैं  खंजर,
    जीना अब आसान नहीं है।।

    खूब मिलावट करते हैं क्यों?
    अब अच्छा सामान नहीं है।।

    जिसको हमने मान दिया था,
    करता वह सम्मान नहीं है ।।

    रोज  यहाँ  बीमारी  होती,
    पहले सा जल-पान नहीं है।।

    जो करता है दगा सभी से,
    देखो  वह  इंसान नहीं है।।

    भ्रम की इस दुनिया में हमको,
    असली की पहचान नहीं है।।

    झूठ बोलता हर मानव अब,
    सच की रही जबान नहीं हैं ।।

    झूठ मिले हर चौराहे पर
    सच की कोई दुकान नहीं है।।

    कलयुग में भगवान भी बिकते
    राम भगत हनुमान नहीं  है।।

    कलियुग में लगता  है ऐसा,
    राम नहीं, रहमान नहीं  है।।

    “राज” देश का किसको सौंपे,
    लायक कोई  प्रधान नहीं है।।

    *कवि कृष्ण कुमार सैनी “राज”,दौसा,राजस्थान

  • जीवन उथल पुथल कर देगा

    जीवन उथल पुथल कर देगा

    पल भर का सम्पूर्ण समागम ,
    जीवन उथल पुथल कर देगा।
    तुम चाहे जितना समझाओ,
    पर यह भाव विकल कर देगा।


    1.
    आँखो  में  आँखो  की भाषा ,
    लिखना पढ़ना रोज जरा सा।
    सपनों  का   सतरंगी    होना,
    देख चाँद सुध बुध का खोना।
    थी अब तक जो बंद  पंखुडी,
    उसको फूल कवल कर देगा।
    तुम चाहे जितना समझाओ,
    पर यह भाव विकल कर देगा।


    2.
    सर्द हवा का तरुणिम झोका,
    बढ़ता कंपन  जाये न  रोका।
    साँसो से  गरमी  का मिलना,
    बातों में नरमी  का  खिलना।
    उस  पर यह स्पर्श  नवाकुल
    मन की प्यास प्रवल कर देगा।
    तुम चाहे जितना समझाओ,
    पर यह भाव विकल कर देगा।
    3.
    पारस   से  लोहा  छू  जाना  ,
    सोना तप कुन्दन  बन जाना।
    सम्वादों का मौलिक परिणय,
    एहसासों का लौकिक निर्णय।
    सरिता का सागर से मिलना,
    तन को ताज महल कर देगा।
    तुम चाहे जितना समझाओ,
    पर यह भाव विकल कर देगा।
    पल भर का सम्पूर्ण समागम,
    जीवन उथल पुथल कर देगा।


     अपर्णा सिंह सरगम

  • जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता

    जीवन भर का संचित धन हिंदी कविता

    village gram gaanv based hiindi poem
    गाँव पर हिंदी कविता

    सांध्य परिदर्शन

    गृह का पृष्ठ भाग उपवन है,
    तरु, लता, वनस्पति सघन है,
    मेरी यह दिनचर्या में शामिल,
    जीवन भर का संचित धन है!

    प्रातः पांच बजे उठकर जब,
    इधर उधर नज़रें दौड़ाता,
    मेरा गांव , वहां का जीवन,
    सहसा याद मुझे अा जाता!

    मेरे पिता माता को उर में,
    सजा रखा है, ज्योति जगा कर,
    विवशता में, दूरस्थ ग्राम के,
    आश्रित हूं, कुटुम्ब को लाकर!

    इक्कीस डेसी मील जमीन का,
    क्रय कर, भवन निर्माण किया
    घर को छोड ख़ाली धरती पर,
    नीम सागौन पौध गाड़ दिया

    आज वे पौधे, बड़े बड़े हैं,
    जमीन पर, तनकर खड़े हैं!
    कितनी आंधियों, बरसात से,
    योद्धा बनकर वे लड़े हैं!

    कोयल कूक रही पेड़ों पर,
    उछल रहे हैं, उस पर बन्दर!
    फुदक रही हैं, कई गिलहरी,
    बहुत जोश है, उनके अन्दर!

    रंग बिरंगी तितलियां भी,
    उड़ती है, फूलों से सटकर,
    दादुर यूं छलांग फांदते,
    सब खेलों से, लगते हटकर!

    अब झींगुर तान दे रहे,
    बरस रहा जैसे संगीत!
    गौरैया भी सुना रही हैं,
    अपने प्रेमी को, ज्यों गीत!

    मेरा मन है, मुग्ध, देखकर,
    हरी भरी क्यारी पर ऐसे,
    मेरे जीवन में, बचपन ज्यों,
    लौट आया है, फिर से जैसे!

    पद्म मुख पंडा
    ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग
    जिला रायगढ़ छ ग