मिल्खा सिंह राठौड़ पर कविता
उड़न सिक्ख मिल्खा सिंह जी,
इक राजपूत राठौड़ भए।
दौड़ दौड़ कर दुनियां में,
दिल से दिल को जोड़ गए।।
वो उस भारत में जन्मे थे,
जो आज पाक का हिस्सा है।
कहूं विभाजन की क्या मैं,
जो इक काला किस्सा है।।
सिंह साक्षी थे उसके,
जहां मारे कई करोड़ गए…
अपने प्रियजन मरते देखे,
अपनी ही आंखों आगे।
फिर भारत माँ की गोद चुनी,
रिश्ते नाते सब त्यागे।।
घर बार छोड़कर यूं भागे,
ज्यूं सबसे ही मुंह मोड़ गए…
शरणार्थी शिविर शरण पाई,
पर दौड़ रखी उसने जारी।
भारतीय सेना हो भर्ती,
खेली उसने नई पारी।।
ये दर्द समय के दिए हुए,
जीवन में सीखें छोड़ गए…
ये वही पाक की भूमि थी,
आंखों में वही नज़ारा था।
खालिक को हरा खरे सिख ने,
मुंह आज तमाचा मारा था।।
“फ्लाइंग सिख” तमगा पाया,
सब पाकी दिल झंकझौड़ गए…
वो सैकिंड का सौंवां हिस्सा था,
जो मिल्खा मान गंवारा था।
जहां पाक धरा पर विजय मिली,
वहीं रोम ओलंपिक हारा था।।
चार्ल्स डिंकेंस से पा शिक्षा,
कीर्तिमान कई तोड़ गए…
रजपूती रक्त रगों में था,
पंजप्यारी ताकत कदमों में।
वतन परस्ती के ज़ज़्बे,
रहते थे हरदम सपनों में।।
कभी-कभी तो धावक पथ पर,
नंगे पैरों दौड़ गए…
पदकों की बरसात हुई,
बड़ा मान और सम्मान मिला।
मिल्खा ने परचम फहराया,
तो पूरा हिंदुस्तान खिला।।
जीवन दौड़ हुई पूरी,
वो आज तिरंगा ओढ़ गए…
शिवराज सिंह चौहान
नांधा, रेवाड़ी
(हरियाणा)
१८/१९-०६-२०२१