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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर०नरेन्द्र कुमार कुलमित्रके हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • धर्म की कृत्रिमता पर कविता-नरेंद्र कुमार कुलमित्र

    धर्म की कृत्रिमता पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कृत्रिम होती जा रही है हमारी प्रकृति-03.03.22
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    हिंदू और मुसलमान दोनों को
    ठंड में खिली गुनगुनी धूप अच्छी लगती है
    चिलचिलाती धूप से उपजी लू के थपेड़े
    दोनों ही सहन नहीं कर पाते

    हिंदू और मुसलमान दोनों
    ठंडी हवा के झोंकों से झूम उठते हैं
    तेज आंधी की रफ्तार दोनों ही सहन नहीं कर पाते

    हिंदू और मुसलमान दोनों को
    बारिश अच्छी लगती है
    दोनों को बारिश की बूंदे गुदगुदाती है
    बाढ़ के प्रकोप से
    दोनों ही बराबर भयभीत होते हैं बह जाते हैं उजड़ जाते हैं

    हिंदू और मुसलमान दोनों
    एक ही पानी से बुझाते हैं अपनी प्यास
    दोनों को मीठा लगता है गुड़ का स्वाद
    और नीम उतना ही कड़वा

    दोनों को पसंद है
    पेड़ पौधों और पत्तियों की हरियाली
    खिले हुए फूलों के अलग-अलग रंग
    और बाग में उठने वाली फूलों की अलग-अलग खुशबू

    एक धरती और एक आसमान के बीच
    रहते हैं दोनों
    कष्ट दोनों को रुलाता है
    खुशियां दोनों को हंसाती है
    एक जैसे हैं दोनों के नींद और भूख

    प्रकृति के गुणों को महसूस करने की प्रकृति
    मैंने दोनों में समान पाया है

    दोनों की प्रकृति समान है
    मगर दोनों बंटे हुए हैं
    कृत्रिम धर्म के लबादों में

    दरअसल रोज हमें कृत्रिमता से संवारी जा रही है
    हममें रोज भरे जा रहे हैं कृत्रिम भाव
    धीरे-धीरे कृत्रिम होती जा रही है हमारी प्रकृति
    हम अपनी प्रकृति में जीना
    धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं।

    नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • मुफ्त की चीज पर कविता

    मुफ्त की चीज पर कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    मुफ्त की चीजों से..19.03.22
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    हमारी आदत सी हो गई है
    कि हमें सब कुछ मुफ्त में चाहिए
    भिखारियों की तरह हम मांगते ही रहते हैं
    राशन पानी बिजली कपड़ा मकान रोजगार मोबाइल और मुफ्त का वाईफाई कनेक्शन

    मुफ्त की चीजों से
    बदलने लगे हैं हमारे खून की तासीर
    हम कमाना नहीं चाहते अमरबेल की तरह फैलना चाहते हैं

    मुफ्त की चीजों से
    घटती जा रही है श्रम की ताकत और हमारे स्वाभिमान

    मुफ्त की चीजों से
    शून्य होता जा रहा है
    विरोध में बोलने और खड़े होने का साहस

    मुफ्त की चीजों से
    हम भरते जा रहे हैं
    गहरे आत्म संतोष और निकम्मेपन से
    जो सबसे जरूरी है उनके लिए

    वह हमें कुछ भी नहीं दे रहे हैं
    वरन बस ले रहे हैं हमसे हमारी हैसियत
    छीन रहे हैं हमारा वजूद
    और हम हैं की बड़े खुश हो रहे हैं
    कि वे हमें सब कुछ मुफ्त में दे रहे हैं

    उनका मुफ्त में देना
    एक गहरा षड्यंत्र है
    हमें लगता है
    कि मुफ्त की चीजों से हमारी जिंदगी भर गई है
    मगर मुफ़्त लेने के एवज में
    हमारी असली जिंदगी हमसे छीन गई है।

    –नरेंद्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियां

    फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियां

    इंद्रधनुष


    पिछले कुछ दिनों से
    मैंने नहीं देखा है रोशनी वाला सूरज
    ताज़गी वाली हवा
    खुला आसमान
    खिले हुए फूल
    हँसते-खिलखिलाते लोग

    एक-एक दिन
    देह में होने का ख़ैर मनाती आ रही है
    देह के किसी कोने में
    डरी-सहमी एक आत्मा

    किसी भी तरह जीवन बचाने की जद्दोजेहद में
    उत्थान और विकास जैसे
    जीवन के सारे जद्दोजहद
    भूलने लगे हैं लोग

    पढ़ने-लिखने
    चार पैसा कमाने
    ख़ाली वक्त में राजनीति और
    देश-विदेश की बातें करने
    जैसे सब बातें भूलने लगे हैं लोग

    दुनियाँ में शामिल
    खूबसूरत रंग-विरंगे शोरगुल और हलचल
    धीरे-धीरे तब्दील होते जा रहा है
    एक भयानक वीराने में

    तमाम ख़बरों से भरी
    विविध रंगी यह दुनियाँ
    सिमटकर थम गई है
    केवल एक ही ख़बर पर

    भावनाओं के स्रोतों से
    भावनाएँ फूट नहीं रही
    खूबसूरत भावनाओं से भरा हृदय
    अब किसी अनजान भय से
    भरा-भरा लगता है

    पिछले कुछ दिनों से
    शब्दों और कविताओं से
    उतर नहीं रहे हैं कोई अर्थ
    पर इतनी उम्मीद अब भी बाकी है
    कि शब्दों और कविताओं के ज़रिए ही
    फिर से लौट आएगी खूबसूरत दुनियाँ।



    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • कविता की पौष्टिकता –

    विश्व कविता दिवस प्रतिवर्ष २१ मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कविता की पौष्टिकता – 19.04.21


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    खाना बनाना बड़ा कठिन काम होता है
    खाना बनाने के वक्त बहुत सारी बातों का ध्यान रखना पड़ता है एक साथ

    कितने चावल में कितना पानी डालना है
    कौन कौन से मसाले कब कब डालना है
    चूल्हे में मध्यम, कम या तेज़ आँच कब कब करना है
    कुकर में बज रहे सीटी का अर्थ कब क्या समझना है
    ऐसे ही बहुत सारे सवाल खड़े होते रहते हैं

    आप लगातार कोशिश करके इतना ठीकठाक खाना बना ही सकते हैं कि खुद खा सको

    सतर्कता न होने या लगन की कमी होने पर
    बर्तन के नीचे से कई कई बार भात चिपक जाता है
    कई कई बार जल जाती है सब्ज़ी या दाल

    किसी ख़ास ट्रेनिंग की मदद से
    आप ला सकते हैं अपने व्यजंनों में विविधता
    और बदल या बढ़ा सकते हैं अपने खाने का ज़ायका

    लाख हुनर होने के बावजूद
    अच्छा खाना बनाने के लिए
    ज़रूरी होता है नियमित अभ्यास

    अक़्सर खाने वालों में हंगामे खड़े हो जाते हैं
    खाने में नमक या मिर्च ज़रूरत से ज़्यादा होने पर

    मुझे लगता है जितना कठिन होता है
    रसोइये के लिए सुस्वादु और पौष्टिक खाना बनाना
    उससे कहीं ज़्यादा कठिन और जोख़िम भरा होता है
    कवि के लिए कविता लिखना

    कठिन होता है कविता में
    चुन चुनकर एक एक शब्दों को रखना
    अर्थों को भावनाओं की आँच पर पकाना
    पकी पुकाई कविता को बड़ी निष्ठा के साथ लोगों को परोसना
    और सबसे कठिन होता है कविता में कविता की पौष्टिकता को बनाए रखना।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479

  • कविताओं के ज़रिए – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    विश्व कविता दिवस प्रतिवर्ष २१ मार्च को मनाया जाता है। यूनेस्को ने इस दिन को विश्व कविता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा वर्ष 1999 में की थी जिसका उद्देश्य को कवियों और कविता की सृजनात्मक महिमा को सम्मान देने के लिए था।

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    कविताओं के ज़रिए – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

    दुनियाँ में चिड़िया रहे या न रहे
    कविताओं में हमेशा सुरक्षित बची रहेंगी चिड़ियाँ
    पर केवल कविता प्रेमी ही सुन सकेंगे चिड़ियों के गान
    कविताओं के ज़रिए

    दुनियाँ में प्रेम रहे या न रहे
    कविताओं में हमेशा सुरक्षित बचा रहेगा प्रेम
    पर केवल कविता प्रेमी ही समझ सकेंगे प्रेम का मर्म
    कविताओं के ज़रिए

    दुनियाँ में उजास रहे या न रहे
    कविताओं में हमेशा सुरक्षित बचा रहेगा उजास
    पर केवल कविता प्रेमी ही जी सकेंगे उजास भरी जिंदगी
    कविताओं के ज़रिए

    दुनियाँ में सच रहे या न रहे
    कविताओं में हमेशा सुरक्षित बचा रहेगा सच
    पर केवल कविता प्रेमी ही सच को अनावृत कर सकेंगे
    कविताओं के ज़रिए

    दुनियाँ में क्रांति रहे या न रहे
    कविताओं में हमेशा सुरक्षित बची रहेगी क्रांति
    पर केवल कविता प्रेमी ही फिर से ला पाएंगे क्रांति
    कविताओं के ज़रिए

    चिड़ियों का कलरव
    मनुष्यों के लिए प्रेम
    जीने के लिए उजास
    बोलने के लिए सच
    और
    विरोध के लिए क्रांति
    कविताओं में सुरक्षित बची रहेगी हमेशा।

    — नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
    9755852479