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लौट आओ बसंत

लौट आओ बसंत


न खिले फूल न मंडराई तितलियाँ
न बौराए आम न मंडराए भौंरे
न दिखे सरसों पर पीले फूल
आख़िर बसंत आया कब..?

पूछने पर कहते हैं–
आकर चला गया बसंत !
मेरे मन में रह जाते हैं कुछ सवाल
कब आया और कब चला गया बसंत ?
कितने दिन तक रहा बसंत ?
दिखने में कैसा था वह बसंत ?

कोई उल्लास में दिखे नहीं
कोई उमंग में झूमे नहीं
न प्रेम पगी रातें हुई
न कोई बहकी बहकी बातें हुई

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मस्ती और मादकता सब भूल गए
न जाने कितने होश वाले और समझदार हो गए

अरे छोड़ो भी इतनी समझदारी ठीक नहीं
कहीं सूख न जाए हमारी संवेदनाओं की धरती

प्रेम से मिले हम खिले हम महके हम
मुरझाए से जीवन में फिर से बसंत उतारे हम ।

नरेंद्र कुमार कुलमित्र
9755852479

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