कुम्हार को समर्पित कविता -निहाल सिंह

कुम्हार को समर्पित कविता -निहाल सिंह फूस की झोपड़ी तले बैठकर।चाक को घुमाता है वो दिनभर। खुदरे हुए हाथों से गुंदकेमाटी के वो बनाता है मटकेतड़के कलेवा करने के बादलगा रहता है वो फिर दिन- रातस्वयं धूॅंप में नित प्रति दिन जलकरचाक को घुमाता है वो दिनभर | ऑंखों की ज्योति धुॅंधली पड़ गईचश्मे की … Read more