कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार
कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ। कजरारी आँखें हुई, काजल जैसी रात।सपनों में आकर कहे, मुझसे मन की बात। कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी…
कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ। कजरारी आँखें हुई, काजल जैसी रात।सपनों में आकर कहे, मुझसे मन की बात। कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी…