कंगन की खनक समझे चूड़ी का संसार
![HINDI KAVITA || हिंदी कविता](https://kavitabahar.com/wp-content/uploads/2020/11/HINDI-KAVITA-595x600.jpg)
नारी की शोभा बढ़े, लगा बिंदिया माथ।
कमर मटकती है कभी, लुभा रही है नाथ।
कजरारी आँखें हुई, काजल जैसी रात।
सपनों में आकर कहे, मुझसे मन की बात।
कानों में है गूँजती, घंटी झुमकी साथ।
गिर के खो जाए कहीं, लगा रही पल हाथ।
हार मोतियों का बना, लुभाती गले डाल।
इतराती है पहन के, सबसे सुंदर माल।
कंगन की खनक समझे, चूड़ी का संसार।
प्रिय मिलन को तड़प रही, तू ही मेरा प्यार।
अर्चना पाठक ‘निरंतर’
अम्बिकापुर