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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पाण्डेय अब्र के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

yog divas

सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

इस कविता में कवि राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ सहज योग को अपनाने और उसके लाभों के बारे में बता रहे हैं। सहज योग एक ऐसी साधना है जो सरलता से की जा सकती है और इसके माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और…

समर शेष है रुको नहीं

समर शेष है रुको नहीं समर शेष है रुको नहींअब करो जीत की तैयारीआने वाले भारत कीबाधाएँ होंगी खंडित सारी ,राजद्रोह की बात करे जोउसे मसल कर रख देनादेशभक्ति का हो मशाल जोउसे शीश पर धर लेना,रुको नहीं तुम झुको…

रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे

रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगेहर कहीं हम यहाँ गुनगुनाने लगेप्यार की अधखुली खिड़कियों की डगरएक दूजे में हम सामने लगे.इस जनम के ये बन्धन गहराने लगेदूर रहकर भी वो मुस्कुराने लगेग़म यहाँ कम मिलेगा हमारे…

यादों के झरोखे से

यादों के झरोखे से ख़तमिल गयातुम्हारा कोरा देखा, पढ़ा, चूमाऔरकलेजे से लगाकररख लिया अनकही थी जो बातसब खुल गयीकालिमा भरी थी मन मेंसब धुल गयी हृदय की वीणा बज उठीछेड़ दी सरगमचाहते थे तुम कितनामगर वक़्त था कम और तुमनेकुछ…

प्रभात हो गया

प्रभात हो गया उठोप्रात हो गयाआँखें खोलोमन की गठानें खोलो आदित्य सर चढ़करबोल रहा हैऊर्जा संग मिश्रीघोल रहा है नवल ध्वज लेकरअब तुम्हेंजन मन धन के निमित्तलक्ष्य की ओरजाना हैगंतव्य के छोर परपताका फहराना है असीम शक्ति तरंगेंतुम्हारे इंतज़ार में…

ख़यालों पर कविता

ख़यालों पर कविता तुम मेरे ख़यालों में होते होमैं ख़ुशनसीब होता हूँबात चलती है तुम्हारी जहाँमैं ज़िक्र में होता हूँ . पलकें बंद होती नहीं रातों कोयादों को तुम्हारी आदत हैरातों की सियाही कटती नहींमैं फ़िक़्र में होता हूँ. क़तरा…

भोर गीत-राजेश पाण्डेय वत्स

भोर गीत ये सुबह की सुहानी हवाये प्रभात का परचम।प्रकृति देती है ये पलरोज रोज हरदम।। आहट रवि किरणों कीसजा भोर का गुलशन।कर हवाओं संग सैरभर ले अपना दामन।। उठ साधक जाग अभीदिन मिले थे चार।बीते न ये कीमती पलखो…

कलयुग के पापी -राजेश पान्डेय वत्स

कलयुग के पापी भूखी नजर कलयुग के पापीअसंख्य आँखों में आँसू ले आई! लालची नजर *सूर्पनखा* कीइतिहास में नाक कटा आई!! मैली नजर *जयंत काग* केनयन एक ही बच पाई!!! बिना नजर के *सूरदास* को*कृष्ण-लीला* पड़ी दिखाई!! नजर में श्रद्धा…

मोर मया के माटी-राजेश पान्डेय वत्स

मोर मया के माटी छत्तीसगढ़ के माटीअऊ ओकर धुर्रा। तीन करोड़ मनखेसब्बौ ओकर टुरी टुरा।।  धान के बटकी कहाय,छत्तीसगढ़ महतारी। अड़बड़ भाग हमर संगीजन्में येकरेच दुआरी।।  एकर तरपांव धोवय बरआइन पैरी अरपा। महानदी गंगा जईसनखेत म भरथे करपा।।  मया के…

घर वापसी- राजेश पाण्डेय वत्स

घर वापसी नित नित शाम को, सूरज पश्चिम जाता है। श्रम पथ का जातक फिर अपने घर आता है।  भूल जाते हैं बातें थकान और तनाव की ,अपने को जब जबपरिवार के बीच पाता है।  पंछियों की तरह चहकतेघर का हर सदस्य,घर का छत…