Tag: #राजेश पाण्डेय अब्र

यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर0 राजेश पाण्डेय अब्र के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    इस कविता में कवि राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ सहज योग को अपनाने और उसके लाभों के बारे में बता रहे हैं। सहज योग एक ऐसी साधना है जो सरलता से की जा सकती है और इसके माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और शांति की प्राप्ति कर सकता है। यह योग व्यक्तिगत विकास, मानसिक शांति, और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने का एक मार्ग है।

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    सहज योग तुम कर लेना / राजेश पाण्डेय *अब्र*

    तम की एक अरूप शिला पर
    तुमको कुछ गढ़ते जाना है
    भाग्य नहीं अब कर्म से अपने
    राह में कुछ मढ़ते जाना है,

    चरण चूमते जाएँगे सब
    तुम कर्म की राह पकड़ लेना
    भाग्य प्रबल होता है अक्सर
    इस बात को तुम झुठला देना,

    संकट काट मिटाकर पीड़ा
    लक्ष्य विजय तुम कर लेना
    भाग्य नहीं वीरों की कुंजी
    सबल कदम तुम धर लेना,

    दर्प से क्या हासिल होता है
    सहज योग तुम कर लेना
    सुस्त नहीं अब पड़ो पहरुए
    कर्म सफल तुम कर लेना.

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर

    सहज योग का अभ्यास करना एक ऐसी साधना है जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। राजेश पाण्डेय ‘अब्र’ ने इस कविता में सहज योग के माध्यम से आत्मज्ञान और शांति की प्राप्ति का संदेश दिया है और इसे अपने जीवन में अपनाने की प्रेरणा दी है।

  • समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं

    समर शेष है रुको नहीं
    अब करो जीत की तैयारी
    आने वाले भारत की
    बाधाएँ होंगी खंडित सारी ,
    राजद्रोह की बात करे जो
    उसे मसल कर रख देना
    देशभक्ति का हो मशाल जो
    उसे शीश पर धर लेना,
    रुको नहीं तुम झुको नहीं


    अब मानवता की है बारी
    सुस्त पड़े सब शीर्ष पहरुए
    जनमानस दण्डित सारी,
    कालचक्र जो दिखलाए तुम
    उसे बदलकर रख देना
    कठिन नहीं है कोई चुनौती
    दृढ़ निश्चय तुम कर लेना,
    तोड़ो भी सारे कुचक्र तुम
    आदर्शवाद को तज देना
    नयी सुबह में नयी क्रांति का
    गीत वरण तुम कर लेना ।

    राजेश पाण्डेय अब्र
       अम्बिकापुर

  • रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे

    रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे

    रफ़्ता-रफ़्ता मेरे पास आने लगे
    हर कहीं हम यहाँ गुनगुनाने लगे
    प्यार की अधखुली खिड़कियों की डगर
    एक दूजे में हम सामने लगे.
    इस जनम के ये बन्धन गहराने लगे
    दूर रहकर भी वो मुस्कुराने लगे
    ग़म यहाँ कम मिलेगा हमारे सिवा
    दर्द की छाँव भी अब सुहाने लगे.
    रिश्तों की कसौटी पे आने लगे
    वो हमें हम उन्हें अपनाने लगे
    मैने उनसे न जाने क्या कह दिया
    ख़्वाब मेरे उन्हें रास आने लगे.
    हरकदम हमकदम वो दीवाने लगे
    तिश्नगी अपनी मुझसे बुझाने लगे
    इश्क़ ने उनपे जादू ऐसा किया
    मुझको अपना वो रब अब बताने लगे.
    गीत मेरे उन्हें अब लुभाने लगे
    लब हिले उनके वो गुनगुनाने लगे
    ज़िन्दगी ने हमें ऐसा तोहफ़ा दिया
    प्यार में है ख़ुदा सब बताने लगे.

    राजेश पाण्डेय अब्र
        अम्बिकापुर

  • यादों के झरोखे से

    यादों के झरोखे से

    ख़त
    मिल गया
    तुम्हारा कोरा देखा, पढ़ा, चूमा
    और
    कलेजे से लगाकर
    रख लिया अनकही थी जो बात
    सब खुल गयी
    कालिमा भरी थी मन में
    सब धुल गयी हृदय की वीणा बज उठी
    छेड़ दी सरगम
    चाहते थे तुम कितना
    मगर वक़्त था कम

    और तुमने
    कुछ नहीं लिखकर भी
    जैसे
    सब कुछ लिख दिया
    मैंने
    देखा, पढ़ा, चूमा
    फिर
    कलेजे से लगाकर
    रख लिया


    राजेश पाण्डेय*अब्र*
      अम्बिकापुर

  • प्रभात हो गया

    प्रभात हो गया

    उठो
    प्रात हो गया
    आँखें खोलो
    मन की गठानें खोलो आदित्य सर चढ़कर
    बोल रहा है
    ऊर्जा संग मिश्री
    घोल रहा है नवल ध्वज लेकर
    अब तुम्हें
    जन मन धन के निमित्त
    लक्ष्य की ओर
    जाना है
    गंतव्य के छोर पर
    पताका फहराना है असीम शक्ति तरंगें
    तुम्हारे इंतज़ार में हैं उठो !
    मेघनाद की तरह
    हुंकार भरो
    घन गर्जन करो बढो!
    हासिल करो
    विजयी बनो
    इतिहास रचो
    समर तुम्हारा है भाग्य से नहीं
    कर्म से दुनियाँ को
    अपना बनाना है उठो !
    प्रात हो गया
    प्रभात हो गया।


    राजेश पाण्डेय *अब्र*
       अम्बिकापुर