पनघट मरते प्यास
पनघट मरते प्यास {सरसी छंद 16+11=27 मात्रा,चरणांत गाल, 2 1}.नीर धीर दोनोे मिलते थे,सखी-कान्ह परिहास।था समय वही,,अब कथा बने,रीत गये उल्लास।तन मन आशा चुहल वार्ता,वे सब दौर उदास।मन की प्यास शमन करते वे,पनघट मरते प्यास।। वे नारी वार्ता स्थल थे,रमणी अरु गोपाल।पथिकों का श्रम हरने वाले,प्रेमी बतरस ग्वाल।पंछी जल की बूंद आस के,थोथे हुए दिलास।मन … Read more