कविता
- नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ बाल गीत
- वृक्ष लगाएं धरती बचाएं/ नीलम त्यागी ‘नील’
- प्रेरक कविता/ डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी
- हो रहा पर्यावरण नुकसान/एस के कपूर “श्री हंस”
- सरस्वती वंदना/डॉ0 रामबली मिश्र
- जलती धरती/मनोज कुमार
- जलती धरती/प्रेमचन्द साव “प्रेम”,बसना
- शिवरात्रि विशेष/डॉ0 रामबली मिश्र
- अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचना/सुशी सक्सेना
- जलती धरती/पूनम त्रिपाठी
Browsing Tag
$सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ (7 मार्च, 1911 – 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ। बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन्1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।
असाध्य वीणा अज्ञेय जी की एक लम्बी कविता है। इस कविता की रचना उन्होंने सनˎ1957-58 के जापान प्रवास के बाद 18-20 जून…
जो कहा नही गया / अज्ञेय
जो कहा नही गया / अज्ञेयहै,अभी कुछ जो कहा नहीं गया ।उठी एक किरण, धायी, क्षितिज को नाप गई,सुख की स्मिति कसक…
मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेय
मैंने आहुति बन कर देखा / अज्ञेयमैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू…
उधार / अज्ञेय
उधार / अज्ञेयसवेरे उठा तो धूप खिल कर छा गई थीऔर एक चिड़िया अभी-अभी गा गई थी।मैनें धूप से कहा: मुझे थोड़ी…
नंदा देवी / अज्ञेय
नंदा देवी / अज्ञेयनंदा,बीस-तीस-पचास वर्षों मेंतुम्हारी वनराजियों की लुगदी बनाकरहम उस परअखबार छाप चुके…
धूल-भरा दिन / अज्ञेय
धूल-भरा दिन / अज्ञेयपृथ्वी तो पीडि़त थी कब से आज न जाने नभ क्यों रूठा,पीलेपन में लुटा, पिटा-सा मधु-सपना लगता…
कलगी बाजरे की / अज्ञेय
कलगी बाजरे की / अज्ञेयहरी बिछली घास।दोलती कलगी छरहरे बाजरे की। अगर मैं तुम को ललाती सांझ के नभ की अकेली…
यह दीप अकेला / अज्ञेय
यह दीप अकेला / अज्ञेययह दीप अकेला स्नेह भराहै गर्व भरा मदमाता परइसको भी पंक्ति को दे दोयह जन है :…