साल आता रहा दिन गुजरता रहा

साल आता रहा दिन गुजरता रहा साल आता रहा दिन गुजरता रहाचाँद लाचार होकर पिघलता रहा।।उनको रोटी मिली ना रही आबरुवो तो रुपये की सूरत बदलता रहा।। दूर मुझसे रहे खाई गहरी रहीवक़्त मुझसे मुझी में सिमटता रहा।।पांच वर्षों में इक बार कम्बल बंटेठंढ से उनका कस्बा क्यूँ डरता रहा।। उनकी नज़रों का है कुछ … Read more