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यहाँ पर हिन्दी कवि/ कवयित्री आदर० सुशील शर्मा के हिंदी कविताओं का संकलन किया गया है . आप कविता बहार शब्दों का श्रृंगार हिंदी कविताओं का संग्रह में लेखक के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा किये हैं .

  • क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं

    क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं

    क्रिकेट जीवन नहीं हो सकता
    क्रिकेट भारतियों की
    रूह में समाया है
    उसने कब्जाया है
    हमारी भावनाओं को
    क्रिकेट बन गया है धर्म
    जो नहीं होना चाहिए।

    हम पूजते हैं क्रिकेट
    और उसके खिलाडियों को
    लुटा देते हैं अपना सबकुछ
    बना देते हैं उनको भगवान
    ऑस्टेलिया ,इंग्लैंड ,न्यूजीलैंड
    क्यों है क्रिकेट में सबसे ऊपर
    क्योंकि इनके लिए क्रिकेट
    बस एक खेल है
    धर्म नहीं
    ना ही ये अपने खिलाडियों को
    भगवान मानते हैं
    ये नहीं सोचते कि
    हम खेल में हारेंगे या जीतेंगे
    ये नहीं सोचते कि क्रिकेट मैच हारने
    पर दुनिया खत्म हो जाएगी।
    इनके देश में विश्वकप में हार में
    नहीं मनाया जाता है राष्ट्रीय शोक
    न ही जीत में ये पागल होते हैं।
    इनके देश में न ही कोई
    क्रिकेट का भगवान है
    न कोई मास्टर ब्लास्टर
    न कोई किंग है।
    इस लिए ये जीतते हैं
    बार बार विश्व कप
    ट्राफी को रखते हैं
    अपने पैरों के नीचे।

    एथलेटिक्स ,हॉकी ,
    भाला फेंक ,मुक्केबाजी
    सब में हम हारते हैं
    लेकिन मन सिर्फ
    क्रिकेट की हार से दुखता है
    भारत अगर तुम्हें जीतना है
    क्रिकेट में विश्वकप
    तो क्रिकेट को क्रिकेट की तरह खेलो
    मत जोड़ो उसे अपनी आत्मा से
    न ही किसी खिलाडी को दो
    भगवान का दर्जा
    क्रिकेट बस क्रिकेट है
    जीवन नहीं।

    सुशील शर्मा

  • अखिल विश्व के राम / सुशील शर्मा

    अखिल विश्व के राम / सुशील शर्मा

    राम प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता तक का त्याग किया

    राम राष्ट्र की जीवन धारा नवगीत
    सुशील शर्मा

    अखिल विश्व के राम / सुशील शर्मा

    shri ram hindi poem.j

    राम राष्ट्र की जीवन धारा
    अखिल विश्व के राम हैं।
    जन जन के हृदयों में बसते
    राम प्रेम के धाम हैं।

    जीवन की सुरभित नदिया की,
    वो अविरल जल धारा हैं।
    राम सदा प्राणों में बसते,
    उन पर तन मन वारा है।

    राम धर्म हैं राम कर्म हैं,
    लाखों उन्हें प्रणाम हैं।

    राम सत्य संदेश सदा से,
    राम वीरता के प्रतिमान।
    भारत के तन मन में बसते,
    राम आत्मा के सम्मान।

    राष्ट्र अस्मिता के धारक हैं,
    जीवन के सुख धाम हैं।

    राम सनातन पुरुष हमारे,
    हम उनके अनुगामी हैं।
    जनकदुलारी के वो प्रियवर
    हम सबके मन स्वामी हैं।

    राम प्रेम के हैं संवाहक
    जीवन मंत्र सुधाम हैं।

    हम सब तो हैं पुत्र तुम्हारे
    हम सब धुर अज्ञानी हैं।
    अखिल विश्व के पालनहारे
    राहें सब अनजानी हैं।

    अखिल विश्व के रक्षक प्रभु तुम
    अमृत अमिय अभिराम हो।

    सुशील शर्मा

  • प्रणय मिलन कविता-सखि वसंत में तो आ जाते

    प्रणय मिलन कविता-सखि वसंत में तो आ जाते- डॉ सुशील शर्मा

    सखि बसंत में तो आ जाते।
    विरह जनित मन को समझाते।

            दूर देश में पिया विराजे,
           प्रीत मलय क्यों मन में साजे,
           आर्द्र नयन टक टक पथ देखें
           काश दरस उनका पा जाते।
           सखि बसंत में तो आ जाते।

      सुरभि मलय मधु ओस सुहानी,
      प्रणय मिलन की अकथ कहानी,
      मेरी पीड़ा के घूँघट में ,
      मुझसे दो बातें कह जाते।
      सखि बसंत में तो आ जाते।

           सुमन-वृन्त फूले कचनार,
           प्रणय निवेदित मन मनुहार
          अनुराग भरे विरही इस मन को
          चाह मिलन की तो दे जाते ,
          सखि बसंत में तो आ जाते।

          दिन उदास विहरन हैं रातें
          मन बसन्त सिहरन सी बातें
          इस प्रगल्भ मधुरत विभोर में
          काश मेरा संदेशा पाते।
          सखि बसंत में तो आ जाते।

    बीत रहीं विह्वल सी घड़ियाँ,
    स्मृति संचित प्रणय की लड़ियाँ,
    आज ऋतु मधुमास में मेरी
    मन धड़कन को वो सुन पाते।
    सखि बसंत में तो वो आ जाते।

          तपती मुखर मन वासनाएँ।
          बहतीं बयार सी व्यंजनाएँ।
          विरह आग तपती धरा पर
         प्रणय का शीतल जल तो गिराते।
         सखि बसंत में तो आ जाते।

         मधुर चाँदनी बन उन्मादिनी
         मुग्धा मनसा प्रीत रागनी
         विरह रात के तम आँचल में
         नेह भरा दीपक बन जाते।
         सखि बसंत में तो आ जाते।

    डॉ सुशील शर्मा

  • ज्ञान दो वरदान दो माँ

    ज्ञान दो वरदान दो माँ

    सत्य का संधान दो।
    बिंदु से भी छुद्रतम मैं
    कृपा का अवदान दो।

    अवगुणों को मैं समेटे
    माँ पतित पातक हूँ मैं।
    मोह माया से घिरा हूँ,
    निपट पशु जातक हूँ मैं।
    अज्ञानता मन में बसाये ।
    अहम,झूठी शान हूँ मैं।
    लाख मुझ में विषमताएं।
    गुणी तुम अज्ञान हूँ मैं।

    है तिमिर सब ओर माता,
    ज्योति का आधान दो माँ।
    ज्ञान दो वरदान दो माँ,
    सत्य का संधान दो माँ।

    कुटिल चालें चल रही हैं।
    पाप पाशविक वृतियां।
    प्रेम के पौधे उखाड़ें ।
    घृणा पोषक शक्तियां।
    सत्य के सपने सुनहरे।
    झूठ विस्तृत हैं घनेरे।
    पोटरी में सांप लेकर।
    फैले हैं अपने सपेरे।

    ज्ञानमय अमृत पिला कर,
    अभय का तुम दान दो माँ।
    ज्ञान दो वरदान दो माँ,
    सत्य का संधान दो माँ।

    चिर अहम को हरके माता
    इस शिशु को तुम धरो माँ।
    यह जगत पीड़ा का जंगल।
    घाव मन के तुम भरो माँ।
    बुद्धि दो माँ, वृत्ति दो माँ
    ज्ञान का संसार दो।
    मनुज बन मैं जी सकूं,
    गुण का वो आधार दो।

    मैं शिशु तुम माँ हो मेरी
    ज्ञान स्तनपान दो
    ज्ञान दो वरदान दो माँ
    सत्य का संधान दो माँ।

    लेखनी अविरल चले माँ,
    सत्य शुद्ध विचार हों।
    दीन दुखियों की कराहें
    भाव के आधार हों।
    लालसा न मान की हो
    अपमान का कोई भय न हो।
    सबके लिये सद्भावना हो
    मन कभी दुखमय न हो।

    हे दयामयी शरण ले लो,
    सदगुणी संज्ञान दो माँ।
    ज्ञान दो वरदान दो माँ
    सत्य का संधान दो माँ।

    सुशील शर्मा