विरोधाभासपूर्ण कविता
आर आर साहू, छत्तीसगढ़
हो न यदि संवेदना पर पीर की,
मोल क्या जानोगे श्री रघुवीर की!
दुष्ट दुर्योधन दुशासन हैं जहाँ,
दुर्दशा है द्रौपदी के चीर की।
सत्य को सूली लगाकर आज वो,
छद्म पूजा कर रहे तस्वीर की।
रौशनी की ओट ले फूली-फली,
सल्तनत अंधेर के जागीर की।
पाप को मन में छिपा तन धो लिया,
कर तिजारत आज गंगा-नीर की।
स्वार्थ ने षड्यंत्र से शोषण किया,
फिर नसीहत दे गया तकदीर की।
सर हजारों आज तक टकरा रहे,
भित्तियाँ दिखतीं नहीं प्राचीर की।
न्याय पाने और देने के लिए,
तोड़ कड़ियाँ द्वेष के जंजीर की।
सरहदों पे कट रहे राँझे यहाँ,
खून से लथपथ कहानी हीर की।
सिर्फ प्रत्यञ्चा कभी काफी नहीं,
लक्ष्य में है कामयाबी तीर की।
टाँकती कन्याकुमारी केश पर,
प्यार से केशर-कली कश्मीर की।
रेखराम साहू (बिटकुला बिलासपुर छग )